समाजवादी पार्टी ने गोरखपुर सदर सीट से ब्राह्मण चेहरा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मैदान में उतार दिया है। पूर्वांचल की कुछ सीटों पर सपा प्रत्याशियों की घोषणा आज की गई। कई सीटों पर अखिलेश ने ओबीसी प्रत्याशी उतारकर गजब का संतुलन बनाया है।
सपा ने गोरखपुर सदर सीट से सभावती शुक्ला को टिकट दिया है। अब इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है। भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर यहां पहले से ही योगी के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं।योगी के खिलाफ सपा से उतरी सुभावती शुक्ला बीजेपी बैकग्राउंड से ही हैं। हालांकि बीजेपी यहां से लगातार जीतती रही है, ऐसे में उसकी जीत को लेकर कोई सवाल नहीं है लेकिन पहले की तरह यहां मुकाबला बीजेपी के लिए मुश्किल हो गया है।
सपा की सभावती शुक्ला बीजेपी के दिवंगत नेता उपेन्द्र दत्त शुक्ला की पत्नी हैं। योगी जब यहां से लोकसभा चुनाव लड़ते थे तो चुनाव की कमान उपेन्द्र ही संभालते थे। योगी ने अपना चुनाव उत्तराधिकारी उपेन्द्र शुक्ला को ही घोषित कर रखा था। लेकिन उपेन्द्र के निधन के बाद बीजेपी और उसकी सरकार ने परिवार की उपेक्षा कर दी। उपेन्द्र के बेटों ने मुख्यमंत्री योगी से मिलने की कोशिश की लेकिन उन्हें समय नहीं दिया गया। हालांकि जब उपेन्द्र जिन्दा थे तो योगी का फोन अक्सर उनके पास आता था। सभावती शुक्ला का आरोप है कि योगी ने जानबूझकर ऐसा किया।
हाल ही में उपेन्द्र की पत्नी सभावती शुक्ला ने दोनों बेटों के साथ लखनऊ में जाकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। इन लोगों से अखिलेश से कहा था कि वे सपा को गोरखपुर में मजबूत करने के लिए सपा में आना चाहते हैं। इस मुलाकात के बाद अखिलेश ने सभावती शुक्ला को गोरखपुर से चुनाव लड़ने का आफर दिया। जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
जनवरी के पहले सप्ताह में ही सभावती शुक्ला को गोरखपुर सदर से लड़ने की हरी झंडी मिल गई थी लेकिन टिकट की घोषणा आज की गई।
क्या है जाति समीकरण
गोरखपुर सदर का जातीय समीकरण काफी दिलचस्प है। यहां करीब चार लाख मतदाता हैं। जिनमें सबसे ज्यादा 40 हजार ओबीसी (निषाद, केवट, मल्लाह) और 30 हजार दलित मतदाता हैं। इसी तरह करीब 30ृ-30 हजार ब्राह्मण और ठाकुर मतदाता हैं। इनके अलावा 40 हजार ही मुस्लिम मतदाता हैं। यहां पर मठ भूमिका बड़ी है। मठ से जुड़े लोग ही बीजेपी को जिताते हैं। लेकिन चंद्रशेखर और सुभावती शुक्ला के उतरने से चुनाव दिलचस्प हो गया है।
दलित और ब्राह्मण वोट अगर अपने-अपने जाति समीकरण के हिसाब से अपने बिरादरी के प्रत्याशी को गया तो बीजेपी के लिए मुकाबला पहले जैसा नहीं होगा। मुस्लिम वोट भी किसी न किसी तरफ झुकेंगे। इस तरह बीजेपी के लिए बहुत आसान सी लगने वाली यह सीट उतनी आसान नहीं है।
गोरखपुर, बस्ती, फैजाबाद मंडलों पर असर डालने वाले दो बड़े ओबीसी नेता ओमप्रकाश राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य इस समय सपा के साथ हैं। इन तीनों मंडलों में फिलहाल बीजेपी की सबसे ज्यादा सीटें हैं लेकिन राजभर और मौर्य ने बीजेपी के समीकरण को बिगाड़ दिया है। गोरखपुर इलाके के असरदार और विवादित ब्राह्मण नेता हरिशंकर तिवारी भी इस समय सपा के साथ हैं। ब्राह्मणों की योगी से नाराजगी जाहिर हो चुकी है।
इस तरह सारे फैक्टर फिलहाल बीजेपी के खिलाफ हैं। लेकिन मतदान वाले दिन ये फैक्टर कितना वोट सपा को ट्रांसफर करा पाते हैं, इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।
गोरखपुर सदर से देश की आजादी के बाद से तीन बार (1951, 1957 और 1962) यहां मुस्लिम विधायक बनता रहा है। 1967 में यहां से जनसंघ का विधायक चुना गया। 1969 के चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट फिर छीन ली। 1974 में फिर जनसंघ जीती। 1977 में जनता पार्टी (जिसमें तब की बीजेपी शामिल थी) ने यह सीट जीती। इसके बाद यहां लगातार दो बार कांग्रेस जीती।
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) February 7, 2022
लेकिन 1989 से अब तक यह सीट गोरखपुर मठ के पास रही। जिसमें एक बार हिन्दू महासभा और सात बार बीजेपी का विधायक बनता रहा है। यह ट्रेंड बताता है कि बीजेपी अब यहां बहुत मजबूत है। इसलिए योगी के लिए कोई दिक्कत नहीं है।
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