रफ़ाल पर 'द हिन्दू' के खुलासे के बाद बीजेपी और नरेंद्र मोदी सरकार सकते में हैं। 'द हिन्दू' ने यह खुलासा किया है कि रफ़ाल मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय ने फ़्रांस सरकार से सीधे बातचीत कर रही थी। इस बात पर भारत के रक्षा मंत्रालय ने तगड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी और यह कहा था कि इस तरह समानान्तर बातचीत से देश के हितों का नुक़सान होगा। इस ख़बर के आने के बाद राजनीतिक गलियारों में भूचाल आ गया। जहाँ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने आनन फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर प्रधानमंत्री मोदी को रफ़ाल सौदे में घोटाले के लिए सीधे ज़िममेदार ठहराया और उन्हें चोर तक कहा, वहीं बीजेपी पूरी तरीके से रक्षात्मक नज़र आई।
पर्रिकर का खंडन
उधर रफ़ाल डील के समय रहे रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि एक साजिश के तहत सरकार के ख़िलाफ़ प्रचार चलाया जा रहा है और यह देश की एकता और अखंडता के ख़िलाफ़ है। दिलचस्प बात यह है कि पर्रिकर ने इस बारे में कुछ नहीं कहा कि क्या रक्षा मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से हो रही बातचीत पर तगड़ी नाराज़गी जताई थी या नहीं और उसे देश हित के ख़िलाफ़ माना था या नहीं। पिछले दिनों राहुल गाँधी ने गोवा जाकर मुख्यमंत्री पर्रिकर से उनका हालचाल पूछा था। बाद में राहुल ने कहा था कि रफ़ाल सौदे की जानकारी पर्रिकर को नहीं थी। पर्रिकर ने इस बात का खंडन किया था कि राहुल से रफ़ाल पर किसी तरह की कोई बातचीत हुई थी। वह सिर्फ़ उनका हाल पूछने आए थे। उस समय से ही अटकलों का बाज़ार गर्म है।
सरकार के हवाले से यह ख़बर आई थी कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने बातचीत डील में तेज़ी लाने के लिए की थी और सौदे की क़ीमतों में उसकी तरफ़ से कोई दखलअंदाजी नहीं की गई थी।
सरकार ने फ़िलहाल इस सवाल का जवाब नहीं दिया है कि जब रक्षा मंत्रालय आधिकारिक तौर पर फ्रांस की सरकार से बातचीत कर रहा था तो उसने रक्षा मंत्रालय की टीम को भरोसे में लेकर बातचीत क्यों नहीं की।
राहुल गाँधी और विपक्ष के दूसरे लोगो ने यह आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में सीधी बातचीत उद्योगपति अनिल अंबानी को आर्थिक लाभ पहुँचाने के लिए किया था। सरकार की तरफ़ से हमेशा से इस बात का खंडन होता रहा है। शुक्रवार को बीजेपी के नेताओं ने कहा कि 2019 के चुनावों में अपनी होने वाली हार से परेशान कांग्रेस पार्टी कुंठित हो गई है और वह अनाप-शनाप बेबुनियाद आरोप लगा रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री जीतेंद्र सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने रफ़ाल मामले में अपना फ़ैसला सुना दिया है। ऐसे में इन आरोपों का कोई मतलब नहीं है। जीतेंद्र सिह ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इन सारे काग़ज़ात देखने के बाद ही अपना फ़ैसला सुनाया।
नया पेच
'द हिन्दू' अख़बार का दावा है कि मोदी सरकार ने रफ़ाल मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ़ से हो रही बातचीत का ब्योरा सुप्रीम कोर्ट में नहीं दिया था। यानी, सरकार ने यह तथ्य सुप्रीम कोर्ट से छुपा लिया। सरकार की तरफ से यही कहा गया था कि रक्षा सौदों के लिए जो पूर्व निर्धारित प्रक्रिया है, उसका पालन किया गया था और इसी के तहत रक्षा मंत्रालय की सात-सदस्यीय टीम ने फ़्रांसीसी पक्ष से बात की थी। राहुल गाँधी ने भी शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उसने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया और यह तथ्य छुपा लिया था कि रक्षा मंत्रालय ने पीएमओ की कार्रवाई पर तगड़ी नाराज़गी जताई थी। राहुल गाँधी का कहना था कि अगर सुप्रीम कोर्ट को इस बात की जानकारी दी गई होती तो उसका फ़ैसला अलग होता। अब सु्प्रीम कोर्ट को अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।
रफ़ाल मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से सरकार को क्लीन चिट दी थी, हालाँकि उस समय भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रफ़ाल की कीमतों और किसे ऑफ़सेट पार्टनर बनाया जाए, इस पर अदालत को कुछ नहीं कहना क्योंकि ये मामले सरकार को तय करने होते हैं। इस फ़ैसले को बीजेपी ने अपनी जीत बताई थी।
यह फ़ैसला आने के बाद एक नया विवाद खड़ा हो गया था कि सरकार ने सौदे की प्रक्रिया के संदर्भ में सुप्रीमो कोर्ट को ग़लत जानकारी दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि रफ़ाल मामले की जाँच सीएजी ने की थी। सीएजी की रिपोर्ट संसद की लेखानुदान समिति ने जाँची थी औ संसद और जनता के सामने सारे तथ्य आए थे। यानी सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि जब रफ़ाल मामले की जाँच संसद की समिति ने कर ली है तो अदालत को उसमें पड़ने की ज़रूरत नहीं है। बाद में यह खुलासा हुआ कि रफ़ाल की जाँच सीएजी ने की ही नहीं थी तो सीएजी और पीएसी की ओर से जाँच की बात अदालत से कैसे कही गई थी?
टाइपोग्राफ़िक ग़लती?
यह तथ्य सामने आने के बाद राजनीतिक गलियारे में काफ़ी हंगामा मचा था। मोदी सरकार ने सफ़ाई दी कि सरकार की तरफ से जो बात अदालत को बताई गई थी, उसका ग़लत अर्थ निकाला गया और ऐसा टाइप करने की ग़लती से हुआ। सरकार का कहना था कि रफ़ाल सौदे की कुछ जानकारी सीएजी को दी गई थी और हमने सरकार को यह बताया था कि सीएजी की रिपोर्ट की जाँच लेखानुदान समिति करती है और उसके हवाले से संसद और जनता तक जानकारी पहुँचती है। हालाँकि अभी तक यह पता नहीं चला है कि सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को जो हलफ़नामा दिया था, उसका क्या हुआ। अंत में सवाल यह उठता है कि 'द हिन्दू' की ख़बर आने के बाद क्या सुप्रीम कोर्ट रफ़ाल मुद्दे पर नए सिरे से सुनवाई करेगा। सरकार से अख़बार में दी गई जानकारी कि प्रधानमंत्री कार्यालय सीधे फ्रांसीसी पक्ष से बात कर रहा था, को सरकार से मुहैया कराने के लिए कहेगा। सुप्रीम कोर्ट को अब निश्चित तौर पर अख़बार का संज्ञान लेना चाहिए और उसकी रोशनी में अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि अगर सरकार ने यह तथ्य छुपाया है तो यह अदालत को गुमराह करने का मसला बनता है जो एक बेहद गंभीर मामला है। क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसा करेगा, आज की तारीख़ में सबसे बड़ा सवाल यही है।
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