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अब असम गण परिषद ने भी छोड़ा बीजेपी का साथ

लोकसभा चुनाव के पहले आज बीजेपी को एक और तगड़ा झटका लगा। असम में उसके सहयोगी दल असम गण परिषद ने उसका साथ छोड़ दिया है। असम गण परिषद के अध्यक्ष अतुल बोरा ने इसका एलान किया। बोरा ने कहा, ‘उन्होंने सिटिजनशिप विधेयक 2016 पर केंद्र सरकार को बहुत समझाने की कोशिश की कि वह इस बिल को पास न करे लेकिन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ़ कहा है कि यह विधेयक मंगलवार को लोकसभा से पास किया जाएगा। इसके बाद गठबंधन में बने रहने का कोई सवाल नहीं उठता है।’

असम गण परिषद का मानना है कि इस विधेयक के क़ानून बनने के बाद बांग्लादेशी हिंदुओं के आने से असम बर्बाद हो जाएगा। सिटिजनशिप विधेयक 2016 के तहत अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, पारसी, सिख, जैन और ईसाई प्रवासियों को देश की नागरिकता मिली है। असम गण परिषद इस विधेयक का लंबे समय से विरोध कर रही है।

असम की 126 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी के 61 विधायक हैं, जबकि, असम गण परिषद के बारह। असम गण परिषद के गठबंधन से बाहर निकलने के बाद भी सर्वानंद सोनोवाल की सरकार को कोई ख़तरा नहीं है। उसके पास अभी भी बोडो पीपल्स फ़्रंट के 14 विधायकों का समर्थन हासिल है।

टीडीपी-पीडीपी पहले ही हो चुके हैं अलग

असम गण परिषद के पहले चंद्र बाब नायडू की तेलुगु देशम पार्टी बीजेपी से अलग हो चुकी है। महाराष्ट्र की शिवसेना लगातार मोदी सरकार पर तीखे हमले कर रही है। बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना को चेतावनी देते हुए यहाँ तक कहा है कि बीजेपी राज्य में सभी 48 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने को तैयार है। इधर, उत्तर प्रदेश में अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी अपनी नाराज़गी जता चुकी है। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ उसका गठबंधन पहले ही टूट चुका है।

साफ़ है जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं वैस-वैसे बीजेपी के सहयोगी दलों में खलबली मची हुई है। असम गण परिषद का बीजेपी का साथ छोड़ना इसी खलबली का नतीजा है। जाहिर है बीजेपी को यदि 2019 का चुनाव जीतना है तो सहयोगी दलों को साथ रखने की कोशिश करनी होगी, नहीं तो यह संदेश जाएगा कि बीजेपी एक डूबता जहाज है और साथी जहाज छोड़-छोड़ कर भाग रहे हैं।

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क़मर वहीद नक़वी
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