प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर दोनों तेलुगु राज्यों- आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में राजनेताओं के बीच दिलचस्प राजनीतिक जंग छिड़ी हुई है। हर कोई अपने प्रतिद्वंद्वी को नरेंद्र मोदी से जोड़कर राजनीतिक फ़ायदा उठाना चाहता है। चंद्रबाबू नायडू, के. चंद्रशेखर राव (केसीआर), जगन मोहन रेड्डी और पवन कल्याण - ये चारों बड़े नेता अपने-अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर नरेंद्र मोदी को हथियार बनाकर हमले बोल रहे हैं। इन सभी को लगता है कि अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को मोदी का क़रीबी साबित कर वे राजनीतिक लाभ उठा सकते हैं। ये सभी राजनेता यह मानते हैं कि दोनों तेलुगु राज्यों में ज़्यादातर लोग नरेंद्र मोदी को नापसंद करते हैं। नोटबंदी, जीएसटी, पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों, लगातार बढ़ती महंगाई ने लोगों को इतना परेशान किया है कि नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़ लोगों की नाराज़गी चरम पर है। यही वजह है कि एक समय नरेंद्र मोदी के बेहद क़रीबी रहे नेता भी उनसे पल्ला झाड़ रहे हैं और अपने राजनीतिक विरोधियों का मोदी से रिश्ता साबित कर ज़्यादा से ज़्यादा वोट बटोरने की फ़िराक़ में हैं।
आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू केसीआर को 'मिडिल मोदी' और जगन मोहन रेड्डी को 'जूनियर मोदी' बताते हुए आरोप लगा रहे हैं कि केसीआर और जगन मोदी से मिले हुए हैं और मोदी के इशारों पर काम कर रहे हैं।
- चंद्रबाबू के बेटे और आंध्र सरकार में मंत्री लोकेश ने कहा है कि मोदी से क़रीबी की वजह से जगन मोहन रेड्डी को अपना नाम बदलकर जगन मोदी रेड्डी रख लेना चाहिए। चंद्रबाबू का यह भी कहना है कि मोदी ने ही फ़िल्मस्टार पवन कल्याण को भी उनके ख़िलाफ़ भड़काया है।
चंद्रबाबू रहे हैं मोदी के क़रीब : जगन
उधर, जगन का प्रत्यारोप है कि चंद्रबाबू ही पूरे चार साल तक मोदी के साथ रहे और केंद्र में सत्ता के हिस्सेदार भी। मोदी सरकार ने जितने भी ग़लत फ़ैसले लिए उनके लिए चंद्रबाबू भी समान रूप से ज़िम्मेदार हैं। जगन का आरोप है कि जब चंद्रबाबू को लगा कि मोदी की लोकप्रियता ढलान पर है तब वह अपनी साख बचाने के लिए मोदी से दूर हो गए।
- सूत्रों का कहना है कि नरेंद्र मोदी ने जगन मोहन रेड्डी को चंद्रबाबू के मुकाबले ज़्यादा तवज्जो देना शुरू कर दिया था, इसी से नाराज़ होकर चंद्रबाबू ने मोदी का साथ छोड़कर राहुल गाँधी का हाथ थाम लिया।
मोदी का विरोध करके मिलेंगे वोट?
चंद्रबाबू इस समय मोदी के सबसे बड़े आलोचकों में से एक हैं। वह सभी मोदी विरोधी ताक़तों को एकजुट करने की जी-तोड़ कोशिश में हैं। अपने विरोधियों पर हमले करने के लिए वह मोदी से उनके 'क़रीबी रिश्ते' को हथियार बनाकर इस्तेमाल कर रहे हैं। दिलचस्प यह भी है कि कांग्रेस भी केसीआर को मोदी समर्थक साबित करने की कोई कोशिश नहीं छोड़ रही है।- ख़ुद राहुल गाँधी केसीआर की तुलना नरेन्द्र मोदी से कर चुके हैं। राहुल गाँधी ने उड़ीसा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के नेता नवीन पटनायक के ख़िलाफ़ भी इसी हथियार का इस्तेमाल किया है। राहुल गाँधी का आरोप है कि नवीन पटनायक भी मोदी जैसे ही हैं। दोनों एक समान हैं और दोनों से ग़रीबों को कोई फ़ायदा नहीं हुआ है।
बीजेपी अलग-थलग
इन सब के बीच इस बात में भी दो राय नहीं कि बीजेपी तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में अलग-थलग पड़ गयी है और कोई भी पार्टी उससे गठजोड़ नहीं करना चाहती है। चुनाव के बाद स्थिति बदल सकती है, बशर्ते बीजेपी दूसरे राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करे और सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में उभरे। चुनाव तक तो ये सभी क्षेत्रीय नेता बीजेपी और मोदी के नाम से ही दूर भागते दिखेंगे। ग़ौर करने वाली बात यह है कि पिछ्ले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने तेलंगाना से एक और आंध्र से दो लोकसभा सीटें जीती थीं। सर्वे रिपोर्टों की मानें तो इस बार बीजेपी को तेलंगाना और आंध्र से एक भी सीट नहीं मिलेगी। जबकि बीजेपी यह उम्मीद लगाए बैठी है कि चुनाव के बाद केसीआर की तेलंगाना राष्ट्र समिति और जगन की वाईएसआर कांग्रेस उसका समर्थन करेंगी।
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