2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी (आप) लंबी सियासी उड़ान भरना चाहती है। पार्टी इन दिनों जबरदस्त जोश में है और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल एलान कर चुके हैं कि आने वाले दो साल में उनकी पार्टी 6 राज्यों में विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। इनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।
आप इससे पहले भी सियासी विस्तार करने के लिए पंख पसार चुकी है लेकिन तब उसे कामयाबी नहीं मिली थी। आप नेताओं का मानना है कि जिस तरह सूरत नगर निगम के चुनाव में पार्टी कांग्रेस को पीछे छोड़कर दूसरे नंबर पर आई है, उसके बाद वह कई राज्यों में कांग्रेस का विकल्प बन सकती है।
कांग्रेस इन दिनों आप के निशाने पर है। आप नेताओं के सोशल मीडिया पेज पर पोस्ट हुए पोस्टर्स इसकी तसदीक करते हैं। इन पोस्टर्स में कहा गया है कि कांग्रेस को वोट देना बीजेपी को वोट देने जैसा है।
इन पोस्टर्स में यह भी कहा गया है कि जहां भी कांग्रेस की अपनी या गठबंधन में सरकार रही है, वहां उसके विधायक बिक जाते हैं। इनमें उत्तराखंड से लेकर पुडुचेरी, कर्नाटक से लेकर अरुणाचल और मध्य प्रदेश से लेकर गोवा तक का उदाहरण दिया गया है।
आप का कहना है कि मध्य प्रदेश, गोवा, कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी लेकिन आज वहां बीजेपी सत्ता में है, ऐसे में मतदाता कांग्रेस के बजाय उसे वोट दें।
आप ने एक पोस्टर जारी कर यह बताया है कि देश भर में उसे कहां-कहां जीत मिल चुकी है। इसमें उसने जम्मू-कश्मीर से लेकर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, कर्नाटक, तेलंगाना और कई राज्यों का जिक्र किया है।
कांग्रेस के सामने चुनौती
निश्चित रूप से आप कांग्रेस के सामने एक चुनौती है लेकिन यह देखना होगा कि क्या वास्तव में आप कांग्रेस का विकल्प बन पाएगी और इससे पहले जब उसने दिल्ली के बाहर चुनाव लड़ा तो मतदाताओं का कितना साथ उसे मिला। बात पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनाव से शुरू करते हैं।
पंजाब में मिली थी जीत
पंजाब में पहली बार में ही आप को अच्छी सफलता मिली थी। हालांकि दावा सरकार बनाने का था लेकिन फिर भी उसने 22 सीटों पर जीत हासिल कर शिरोमणि अकाली दल को पीछे छोड़ दिया था और मुख्य विपक्षी पार्टी बनी थी। उसके बाद उसे उम्मीद जगी थी कि वह 2022 में सरकार बनाएगी लेकिन कुछ दिन पहले ही हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में उसका प्रदर्शन ख़राब रहा और उसे किसी भी नगर निगम में जीत नहीं मिली।
इसके बाद गुजरात में आप ने 2017 के दिसंबर में 30 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन अधिकतर सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी और कुछ उम्मीदवारों को 100 से कम वोट मिले थे।
गोवा में बुरी तरह हारी
मार्च, 2017 में गोवा के विधानसभा चुनाव में पार्टी जोर-शोर से उतरी लेकिन वह एक भी सीट नहीं जीत सकी। उसके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पूर्व नौकरशाह एल्विस गोम्स तक चौथे नंबर पर रहे थे। यह हाल तब हुआ था जब केजरीवाल ने गोवा में ख़ूब पसीना बहाया था। 40 सीटों वाले गोवा राज्य में पार्टी 39 पर चुनाव लड़ी थी लेकिन 38 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गयी थी।नोटा से भी रही पीछे
इसके बाद नंबर आया राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का। इन तीनों राज्यों में 2018 के अंत में विधानसभा चुनाव हुए थे। तीनों ही जगह पार्टी का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा और इसके ज्यादातर प्रत्याशी जमानत तक नहीं बचा सके। इन राज्यों में आप को NOTA (None of the above) से भी कम वोट मिले।
राजस्थान में तो पार्टी के पूर्व नेता कुमार विश्वास को लेकर घमासान हुआ था। पहले कुमार विश्वास को राज्य का प्रभारी बनाया गया लेकिन फिर उन्हें हटा दिया और उनकी जगह दिल्ली के विधायक दीपक वाजपेयी को प्रभारी बनाया गया।
महाराष्ट्र, हरियाणा में भी बुरा हाल
इसके बाद आप ने 2019 में महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन यहां भी हालात बेहद ख़राब रहे। केजरीवाल हरियाणा से ही आते हैं और 2019 के राज्यसभा चुनाव में उन्होंने सुशील गुप्ता को यह कहकर ही टिकट दिया था कि पार्टी को हरियाणा में सरकार बनानी है और गुप्ता को टिकट मिलने से पार्टी को मजबूती मिलेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। राज्य की 90 में से 46 सीटों पर उसने चुनाव लड़ा और उसे 0.48 प्रतिशत वोट मिले जबकि NOTA को 0.53 प्रतिशत वोट मिले थे।
लेकिन इतने राज्यों में हार के बाद भी केजरीवाल ने 2020 का दिल्ली विधानसभा चुनाव दमदार ढंग से लड़ा। बीजेपी की सियासी फ़ौज़, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के सामने वह अकेले कमांडर थे और उन्होंने 70 में से 62 सीटों पर पार्टी को जीत दिलाई थी।
किसान आंदोलन में सियासी मौक़ा
गुजरात के सूरत में मिली जीत और किसान आंदोलन से पार्टी खासी उत्साहित है। उसे लगता है कि वह इसके दम पर उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में कुछ सियासी ज़मीन जुटा सकती है। आप इन दिनों उत्तराखंड में भी जमकर प्रचार कर रही है। सियासी विस्तार की पहली कोशिश में फ़ेल साबित हुई आप इस बार क्या कमाल करेगी, इस पर राजनीतिक विश्लेषकों की पैनी निगाह लगी हुई है।
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