1971 में पाकिस्तान को शिकस्त देने और उसके दो टुकड़े करने के 50 साल पूरे होने के मौक़े पर कांग्रेस और केंद्र सरकार दोनों ही बड़े कार्यक्रम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां दिल्ली में नेशनल वॉर मैमोरियल में आयोजित कार्यक्रम में इस युद्ध के शहीदों को श्रद्धांजलि दी तो वहीं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी देहरादून में आयोजित रैली में ऐसे पूर्व सैनिकों को सम्मानित किया जो इस युद्ध में लड़े थे। कांग्रेस इस मौक़े पर विजय दिवस भी मना रही है।
ऐसा करके कांग्रेस राष्ट्रवाद की पिच पर तगड़े ढंग से बैटिंग करने वाली बीजेपी को यह बताना चाहती है कि यह इंदिरा गांधी की क़यादत वाली कांग्रेसी सरकार थी जिसने दुश्मन मुल्क के दो टुकड़े कर दुनिया का भूगोल बदल दिया था।
जबकि मोदी सरकार के राज में पुलवामा, उड़ी और पठानकोट में हुए हमले उसके राष्ट्रवाद और देश के मजबूत हाथों में होने की बात को झूठा साबित करते हैं।
उत्तराखंड में चूंकि पूर्व व वर्तमान सैनिकों की आबादी सरकार बनाने में एक बड़ा रोल अदा करती है, इसलिए कांग्रेस इस रैली के जरिये सैनिकों को साधने के साथ ही राज्य में चुनाव अभियान का भी आगाज़ करने जा रही है।
कांग्रेस ने 1971 के युद्ध में क्या हुआ था, इसे लोगों तक पहुंचाने के लिए कार्यक्रम भी किए हैं और पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी की अध्यक्षता में बनी एक कमेटी ने इन कार्यक्रमों को तैयार किया था।
क्यों टूटा था पाकिस्तान?
इस युद्ध का कारण यह था कि 1947 में बने पाकिस्तान के दो हिस्से थे, पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान। पूर्वी पाकिस्तान में बांग्ला बोली जाती थी जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबी और उर्दू। इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को दिक्कत तो होती ही थी, साथ ही अलग मुल्क़ बनने के बाद से ही सत्ता में भी बड़ी भागीदारी पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों की ही थी।
इसके ख़िलाफ़ पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबरदस्त नाराज़गी थी। यह नाराज़गी बढ़ती गई और एक वक़्त ऐसा आया कि पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने अलग होने का फ़ैसला कर लिया और भारत की मदद से यह एक अलग मुल्क़ बना जिसे बांग्लादेश नाम दिया गया।
1971 के युद्ध में दोनों ही देश पूरी ताक़त के साथ लड़े थे। तब दोनों देश परमाणु शक्ति संपन्न नहीं थे, वरना युद्ध का अंजाम बहुत बुरा हो सकता था।
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