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क्या योगी की सरकार पर अंकुश लगाने की व्यवस्था हो गयी? 

सम्भवत: ब्रजेश पाठक और स्वतंत्र देव सिंह योगी की पसन्द से ताकतवर बने हैं लेकिन केशव प्रसाद मौर्य, अरविंद कुमार शर्मा, जितिन प्रसाद और नए मंत्रियों की फौज से आलाकमान ने योगी की भी पर्याप्त घेरेबन्दी कर दी है।
अरविंद मोहन

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अभूतपूर्व और ऐतिहासिक चुनावी जीत में एक मुख्यमंत्री और एक उप मुख्य मंत्री कैसे चुनाव हार गये ? पुष्कर सिंह धामी और केशव प्रसाद मौर्य हारकर भी जीते हैं और मुख्यमंत्री  और उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो चुके हैं। जाहिर तौर पर उनसे पार्टी के ही कई ऐसे लोग डरते थे जो उनको हराने या बनाने में सक्षम हैं। और जरा भी राजनीति समझने वाले को ऐसे लोगों की पहचान करना मुश्किल नहीं है। 

केशव प्रसाद मौर्य को पिछले चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष बनाना और उनको मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बताने की कोशिश करना, ज़रूरी था  गैर-यादव पिछडों का वोट भाजपा की तरफ लाने के लिये। लेकिन इससे बडी सच्चाई ये है कि चुनाव नतीजे आते ही बैकडोर से मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ। कोरोना के बाद मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा जब चली तब मौर्य कहा करते थे कि मुख्यमंत्री का फैसला बाद में होगा। 

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अब हम इस चर्चा को यहीं रोकते हैं कि केशव कैसे हारे, पर किसी को भी उलझन हो सकती है कि जो योगी इतने ताकतवर हैं, और इस चुनाव से और भी ताकतवर होकर उभरे हैं, वे किस तरह एक हारे हुए विरोधी को दोबारा उपमुख्यमंत्री बनाने पर राजी हो गए। जाहिर है कि ऐसा ‘ऊपरी’ दबाव या एक लम्बी रणनीति के तहत हुआ।

इसमें कोई योगी को घेरने और उनको बेलगाम न होने देने की व्यवस्था देख सकता है तो कोई गैर-यादव पिछडा वोट-बैंक पर मौर्य के असर को कारण बता सकता है। योगी ज्यादा से ज्यादा इतना ही कर सके कि उनके विभाग हल्के कर दिया। 

Yogi cabinet 2.0 ministers in Uttar pradesh - Satya Hindi
हो सकता है कि हाई कमान ने ही मौर्य को भी औकात बताई हो क्योंकि जिस तरह के दो भारी-भरकम विभाग मोदी के प्रिय माने जाने वाले पूर्व आईएएस अधिकारी अरविन्द शर्मा को (जिनके कामकाज और सक्रियता पर योगी ने इधर काफी समय से चेक रखा था) दिए गए वह योगी अपनी मर्जी से तो देने वाले न थे। 
योगी की इतनी ही चली कि बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा, पीडब्लूडी मंत्री आशुतोष टंडन और सिद्धार्थनाथ सिंह को सरकार में नहीं लिया गया।

सम्भवत: ब्रजेश पाठक और स्वतंत्र देव सिंह योगी की पसन्द से ताकतवर बने हैं लेकिन मौर्य, शर्मा, जितिन प्रसाद और नए मंत्रियों की फौज से आलाकमान ने योगी की भी पर्याप्त घेरेबन्दी कर दी है।

असल में उत्तर प्रदेश की सत्ता मुल्क में दूसरे नम्बर के सबसे ताकतवर राजनेता का स्थान मानी जाती है। ऐसा ऐतिहासिक अनुभव भी है और कई लोग इस भ्रम में मारे भी गए हैं। लेकिन जब योगी पांच साल राज करके दोबारा सत्ता में आने का करिश्मा कर रहे हों तो उनसे ‘डरने’ वाले कौन कौन होंगे यह सिर्फ़ कल्पना की चीज नहीं हो सकती और इस मंडली का काम चुनाव में कुछ मोहरे पिटवाना या कुछ विधायकों-मंत्रियों का टिकट काटना न काटना भर नहीं है। 

योगी की महत्वाकांक्षा बेलगाम हुई हो इसका प्रमाण अभी नहीं है। लेकिन वे आज्ञाकारी तोता तो नहीं ही हैं।
अरविन्द शर्मा को वीआरएस से लेकर अब तक ‘प्रतीक्षा’ कराना हो या केशव प्रसाद मौर्य को औकात में रखना, बडबोले पुराने मंत्रियों की छंटनी हो या पन्द्रह दिन लगाकर एक एक मंत्री के नाम पर अडना, यह बताता है कि वे संसद में बुक्का फाडकर रोने वाले योगी नहीं हैं। वे अब काफी लोगों को रुलाने की स्थिति में आ चुके हैं। और मंत्रिमंडल बनाने में ही नहीं विभागों के बंटवारे में भी उन्होंने अपनी ठीक-ठाक चलाई है।
Yogi cabinet 2.0 ministers in Uttar pradesh - Satya Hindi

मोदी और शाह 

लेकिन नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी कच्ची गोलियां नहीं खेले हैं। अपनी राजनीति के लिए एक अंजान प्रदेश पर उन्होंने किस तरह देखते-देखते पकड बना ली है, यह योगी बाबा भी देख ही रहे होंगे। बिना मन ही सही अमित शाह को भी काफी जगह से बुलावा आया चुनाव प्रचार के लिए। मोदी जी की बात ही अलग है। वे तो आज की भाजपा की गाडी खींचने वाले एकमात्र इंजन हैं। और उनका खेल क्या है, इसे मंत्रिमंडल और विभागों के बंटवारे से भी ज्यादा एक अन्य मामले से समझना आसान है। 

उत्तर प्रदेश में इस बार सारे मंत्रियों का स्टाफ नया होगा। जिस किसी ने पहले किसी मंत्री के साथ काम किया है वह बाहर हो चुका है। नए मंत्रियों के लिए अपना स्टाफ चुनने का विकल्प नहीं है। ऐसे सारे स्टाफ को सिर्फ डिजिटल नम्बर दे दिया गया है और मंत्रियों को रैंडम प्रणाली से उसी में से अपना स्टाफ चुनना है।

कहने को तो स्टाफ के चुनाव में जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र और निजी पसन्द नापसन्द को समाप्त करना है पर असल में यह नए मंत्रियों पर चौबीस घंटे की ‘निगरानी’ की व्यवस्था है। 

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इस बार निजी स्टाफ में महिलाओं का अनुपात काफी बढाने की तैयारी है। पहली बार सत्ता सम्भालते समय भी मोदी जी ने भाजपा के सभी सांसदों के निजी स्टाफ के चुनाव में काफी दमदार ढंग से दखल दिया था। 

इसलिए दोबारा मुख्यमंत्री बने आदित्यनाथ योगी भले ही अपने 35 में से 33 विभाग बचाने में सफल रहे हों, अपने प्रिय ब्रजेश पाठक को उप मुख्यमंत्री बनवा सके हों, स्वतंत्रदेव सिंह को सात विभाग दे पाए हों (माना जाता है कि वे स्वतंत्र देव सिंह को मौर्य की जगह उपमुख्यमंत्री बनाना चाहते थे), बेबी रानी मौर्य को तीसरा उप-मुख्यमंत्री बनने से रोक पाए हों लेकिन उनकी मर्जी के खिलाफ भी काफी फैसले हुए हैं और हर किसी पर चौबीस घंटे निगरानी की जो व्यवस्था बन गई है वह उनको भी नजर से बाहर नहीं होने देगी।

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