दो वर्ष 11 माह 18 दिन की मशक्कत के बाद 25 नवम्बर 1949 को संविधान का ड्राफ्ट तैयार हुआ था। 30 नवम्बर 1949 के आर एस एस के मुखपत्र आर्गनाइजर में संपादकीय लिखा गया–
"भारत के संविधान की सबसे खराब बात यह है कि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है। …यह प्राचीन भारतीय संविधानिक कानूनों, संस्थाओं, शब्दावली और मुहावरों की कोई बात नहीं करता। इसमें प्राचीन भारत की अद्वितीय संविधानिक विकास-यात्रा के भी कोई निशान नहीं हैं। स्पार्टा के लाइकर्जस या फारस के सोलन से भी काफी पहले मनु का कानून लिखा जा चुका था। आज भी मनु स्मृति की दुनिया तारीफ करती है। भारतीय हिन्दुओं के लिए वह सर्वमान्य व सहज स्वीकार्य है मगर हमारे संविधानिक पंडितों के लिए इन सबका कोई अर्थ नहीं है।"
वर्तमान संघ प्रमुख मोहन भागवत के पूर्व संघ प्रमुख रहे के सुदर्शन ने बीबीसी को दिए साक्षात्कार में संविधान को स्वीकार करने से इंकार किया था। वर्तमान संघ प्रमुख मोहन भागवत अनेक अवसरों पर भारत के संविधान में बदलाव कर उसे भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों के अनुरूप किए जाने की मांग कर चुके हैं। यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि संघ के विचार में मनु स्मृति भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों के अनुरूप है।
1 फरवरी 2000 को अटल सरकार ने न्यायमूर्ति एम एन वेंकटचलैया की अगुवाई में संविधान समीक्षा आयोग का गठन किया। तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण तक ने उसकी आलोचना की।
संविधान हटाने का संघ का इरादा नया नहीं है और भारतीय जनता पार्टी संघ का राजनीतिक अनुषांगिक संगठन है तो बीच-बीच में उसके नेताओं का बयान भी आता रहता है।
यह उनके एजेंडे में शीर्ष प्रथमिकता में है। लेकिन यहाँ यह विचारणीय है कि संघ या भाजपा ऐसा क्यों करना चाहते हैं। संविधान बदलने से क्या हासिल करना चाहते हैं? इस विषय पर अलीगढ़ से भाजपा प्रत्याशी सतीश गौतम के समर्थन में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए भाजपा नेत्री मधु मिश्र ने, संविधान क्यों बदलना आवश्यक है, को थोड़ा विस्तार से बताया। अपने सारगर्भित संबोधन में मधु मिश्र ने कहा- “यहाँ कुछ विप्र बंधुओं के अलावा भी जो बंधु बैठे हैं मैं उनसे क्षमा चाहती हूं। आज तुम्हारे सर पर बैठकर संविधान के सहारे जो राज कर रहे हैं वो कभी तुम्हारे जूते साफ़ किया करते थे। ‘संविधान की बदौलत वो आज तुम्हारे हुजूर हो गए हैं जिन्हें तुम बराबर में बैठाना पसंद नहीं करते’…।”
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