अब 45 साल बाद वह दिन फिर याद आया है। उन दिनों मैं नवभारत टाइम्स का सह-संपादक था। गर्मियों की छुट्टियों में अपने शहर इंदौर में था। 26 जून की सुबह-सुबह मैं अपने मित्र कुप्प सी. सुदर्शन से मिलने गया, सियागंज के पास एक अस्पताल में। वे बाद में आरएसएस के सरसंघचालक बने। सुदर्शनजी का पाँव टूट गया था। मेरे जाते ही सुदर्शनजी ने अपना ट्रांजिस्टर चलाया। पहली ख़बर सुनते ही रोंगटे खड़े हो गए।
25 जून 1975 की रात को ही आपातकाल की घोषणा हो गई थी और सूर्योदय के पहले जयप्रकाशजी समेत कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। सुदर्शनजी से मिलने के बाद मैं सीधे ‘नई दुनिया’ के कार्यालय पहुँचा। उसके मालिक लाभचंदजी छजलानी, तिवारीजी, प्रधान संपादक राहुलजी बारपुते, अभयजी छजलानी आदि हम सब लोग एक साथ बैठे और यह तय हुआ कि इस मप्र के सबसे लोकप्रिय अख़बार के संपादकीय की जगह खाली छोड़ दी जाए।
अख़बारों पर पाबंदियों के निर्देश तब तक सबके पास पहुँच गए थे। दोपहर की रेल पकड़कर मैं दिल्ली आ गया। नवभारत टाइम्स के सारे पत्रकारों की बैठक 27 जून को हुई, जिसमें सभी पाबंदियों को पढ़ा गया। हमारे संपादक श्री अक्षयकुमार जैन के कमरे में जाकर मैंने कहा कि मैं अपना इस्तीफ़ा अभी ही देना चाहता हूँ। उन्होंने कहा कि मैं आपसे राष्ट्रीय राजनीति पर संपादकीय लिखने के लिए कहूँगा ही नहीं। आप अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ हैं। आप बस, उसी पर लिखते रहिए।
शास्त्री भवन में बैठे एक मलयाली अफ़सर को दिखाए बिना किसी अख़बार का संपादकीय छप ही नहीं सकता था। बड़े-बड़े तीसरमारखां संपादक नवनीत-लेपन विशारद सिद्ध हो रहे थे।
‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के संपादक जाॅर्ज वर्गीज का एक दिन फ़ोन आया कि उन्हें और मुझे कल सुबह गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इंदौर में मेरे पिताजी पहले से ही जेल में थे और अपने छात्र-काल में मैं कई बार जेल काट चुका था। मैंने पूरी तैयारी कर ली थी लेकिन कोई पकड़ने आया नहीं। कई और संस्मरण फिर कभी।
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