‘भारत जोड़ो यात्रा’ दो सप्ताह बाद तीन महीने पूरे कर लेगी। राहुल गांधी तब तक यात्रा के निर्धारित लक्ष्य का आधे से ज़्यादा फ़ासला तय कर चुके होंगे। अद्भुत नज़ारा है कि लोगों के झुंड बावन-वर्षीय नेता के आगे और पीछे टूटे पड़ रहे हैं। सत्तारूढ़ भाजपा सहित विपक्षी दलों के नेता हतप्रभ हो देश के भावी राजनीतिक परिदृश्य का अनुमान लगा रहे हैं। यात्रा के सहभागियों को लेकर अब तो प्रधानमंत्री ने भी राहुल पर हमलों की शुरुआत कर दी है।
मोदी ने इसकी शुरुआत गुजरात से की है जहां राहुल के कदम पड़ने अभी बाक़ी हैं। कांग्रेस के नेताओं के बीच होड़ मची है कि राहुल का हाथ थामकर साथ चलने का कोई फ़ोटो मीडिया में जगह पा जाए।
उनके लिए पार्टी में अपनी हैसियत उजागर करने का अब यही आधार कार्ड बन गया है।
दूसरी ओर, वह जनता जो यात्रा के गुज़र जाने के बाद सड़कों पर पीछे छूटती जा रही है और जिसे आने वाले दिनों में पहले की तरह ही ज़मीनी हक़ीक़तों से जूझना है, उसके मन में एक महत्वपूर्ण सवाल उठ रहा है!
सवाल यह है कि तीन हज़ार सात सौ पचास किलो मीटर या उससे ज़्यादा चल लेने, महात्मा गांधी की नज़रों से असली भारत देख लेने, लाखों लोगों के ‘मन की बात’ और तकलीफ़ें सुन-समझ लेने के बाद यात्रा जब एक दिन पूरी हो जाएगी, सभी सहयात्री अपने ठिकानों के लिए रवाना हो जाएँगे, राहुल के कदम किस दिशा की तरफ़ बढ़ने वाले हैं?
तब तक उन्हें यह भी पता चल जाएगा कि दिन सड़कों पर और कंटेनरों में कष्ट-साध्य रातें बिताने के बाद जितना भी पुण्य उन्होंने अर्जित किया है वह हिमाचल और गुजरात के चुनावों में पार्टी के लिए कितनी सीटों में तब्दील हुआ है।
परिस्थितियों के मुताबिक़, जवाब के लिए इस तर्क को तो सुरक्षित रखा ही जा सकता है कि यात्रा राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए थी ही नहीं!
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कांग्रेस और स्वयं के भविष्य को लेकर बात करने से राहुल चाहे जितना बचना चाह रहे हों, यात्रा की समाप्ति के दिन जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, पार्टी में उनके लिए कामों का ढेर जमा होता जा रहा है जबकि उन्होंने अपने आप को सभी ज़िम्मेदारियों से आज़ाद कर रखा है।
मसलन, राजस्थान में यात्रा के प्रवेश के ठीक पहले अजय माकन ने राज्य के प्रभारी पद से यह कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया कि इतने दिनों के बाद भी नए पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक बग़ावती नेताओं के ख़िलाफ़ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की। ऐसे में अपमानजनक तरीक़े से राज्य का प्रभारी बने रहने का कोई औचित्य नहीं है।
राहुल पीएम उम्मीदवार होंगे!
इस बीच खड़गे ने एक काम अवश्य कर दिखाया। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के हैदराबाद पड़ाव के दौरान एक नवंबर को हुई एक जनसभा में खड़गे ने घोषणा कर दी कि कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में 2024 में केंद्र में सरकार बनाएगी। यानी राहुल संयुक्त विपक्ष के पीएम उम्मीदवार होंगे। राहुल गांधी इस अवसर पर उपस्थित थे। उन्होंने खड़गे के कहे पर कोई टिप्पणी नहीं की। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ जब हैदराबाद पार कर महाराष्ट्र के अकोला पहुँची तो 2024 में पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर पत्रकार वार्ता में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उनका उत्तर था : हम अभी इस बारे में नहीं सोच रहे हैं। हमारा काम अभी भारत जोड़ो यात्रा है।
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इस सवाल को लेकर चिंता ज़ाहिर करना प्रारंभ हो जाना चाहिए कि अपनी महत्वाकांक्षी यात्रा की समाप्ति के बाद राहुल गांधी कांग्रेस और देश को किस तरह का नेतृत्व और दिशा प्रदान करने वाले हैं! वे देश की जनता को निराश तो नहीं करने वाले हैं? राहुल गांधी द्वारा अचानक से उठा लिए जा सकने वाले कदमों को लेकर कांग्रेस और देश में हमेशा धुकधुकी बनी रहती है। इसमें यह भी शामिल है कि छुट्टियाँ मनाने के लिए वे किसी विदेश यात्रा पर तो नहीं निकल जाएँगे?
इस बात से संदेह दूर हो जाना चाहिए कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के ज़रिए राहुल ने 137-वर्षीय पुरानी कांग्रेस को अब अपने अस्तित्व के लिए पूरी तरह से अपने ऊपर निर्भर कर दिया है। वे कांग्रेस के नरेन्द्र मोदी बन गए हैं। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि 26 अक्टूबर को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद का कार्यभार ग्रहण कर लेने के बाद से खड़गे ने कोई भी साहसपूर्ण निर्णय नहीं लिया है। क्या निर्णयों के लिए खड़गे, राहुल की दिल्ली वापसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं?
महाराष्ट्र के एक प्रतिष्ठित नेता और पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के अपने राज्य में प्रवेश के दौरान राहुल गांधी से मुलाक़ात के बाद एक महत्वपूर्ण खुलासा किया था। बहुत लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। चव्हाण ने कहा था कि राहुल का इरादा मोदी सरकार के ख़िलाफ़ एक मज़बूत ‘जन आंदोलन’ खड़ा करने का है। चव्हाण ने यह भी कहा था राहुल नहीं चाहते हैं कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ कांग्रेस आधारित आंदोलन हो।
सवाल यह है कि क्या चव्हाण द्वारा किया गया खुलासा सही है? उस पर भरोसा किया जा सकता है? ऐसा तो नहीं होगा कि अपनी किसी अगली पत्रकार वार्ता में राहुल इस संबंध में पूछे जाने वाले प्रश्न का भी उसी तरह से जवाब पेश कर दें जैसा उन्होंने अकोला में अपनी पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर दिया था?
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