2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी युवाओं को देश की ताक़त बताते थे। अब उन्होंने परोक्ष रूप से जनसंख्या को मुसीबत बताने का अभियान छेड़ दिया है। इस बार स्वतंत्रता दिवस वाले दिन लाल क़िले से प्रधानमंत्री ने जनसंख्या का मुद्दा उठाया और अब असम की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने फ़ैसला लिया है कि 1 जनवरी 2021 से असम में उन व्यक्तियों को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी, जिनके दो से ज़्यादा बच्चे हैं। बढ़ती बेरोज़गारी, भयावह मंदी और आर्थिक कुप्रबंधन के बीच अब सरकार ने यह बताना शुरू कर दिया है कि बढ़ती जनसंख्या मुसीबत है और वह इसमें कुछ नहीं कर सकती।
नरेंद्र मोदी 2014 में युवाओं को देश की ताक़त बताकर और हर साल 1 करोड़ लोगों को नौकरियां देने का वादा कर सत्ता में आए थे। दूसरी बार प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई मोदी सरकार के सामने इस बार आर्थिक मंदी सबसे बड़ी चुनौती है। स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने जनसंख्या विस्फोट का मसला उठाते हुए यह संदेश देने की कोशिश की कि हम समाज की जिम्मेदारी पर या उसके नसीब पर बच्चों को नहीं छोड़ सकते।
2014 के पहले अनोखे सपने
मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स में 6 फ़रवरी 2013 को विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए युवा जनसंख्या पर जोर दिया था। तब उन्हें यह आबादी देश की ताक़त और ग्रोथ इंजन नज़र आ रही थी। मोदी ने कहा था, “मेरा देश दुनिया का सबसे नौजवान देश है। 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 साल से नीचे है। यूरोप बूढ़ा हो चुका है, चीन बूढ़ा हो चुका है। भारत विश्व में सबसे नौजवान देश है, इतने बड़े अवसर का हम उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, यह सबसे बड़ी चुनौती है। हमारे पास अपार भू-संपदा, प्राकृतिक संसाधन हैं, लेकिन हम उसका सही इस्तेमाल करके समृद्धि की ओर जा नहीं पा रहे हैं। हम अवसर को खोते जा रहे हैं।” इसके बाद भी मोदी हर चुनावी जनसभा में इसका उल्लेख करते थे कि युवा हमारी ताक़त हैं।
तरह-तरह की योजनाएं, परिणाम शून्य
2014 में केंद्र की सत्ता संभालने के बाद 5 साल तक मोदी ने कभी भी जनसंख्या विस्फोट का मसला नहीं उठाया। स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्मार्ट सिटी मिशन और इस तरह की तमाम योजनाओं में सरकार लगी रही। जब सरकार से पूछा जाता कि रोज़गार कहां है, तो भ्रामक आंकड़े (https://hindi।business-standard।com/storypage।php?autono=150423) सामने आते।
सरकार के क़रीब साढ़े तीन साल बीतने के बाद भी नौकरियों का सृजन न होने को लेकर विपक्ष के हमले तेज हो गए। नोटबंदी और अस्पष्ट जीएसटी ने नौकरियों का संकट बहुत ज़्यादा बढ़ा दिया।
स्वरोज़गार में छिपाया मुंह
नौकरियों के अकाल के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहना शुरू किया कि युवाओं को उद्यमी बनाया जा रहा है। वह युवाओं से आह्वान करने लगे कि आप लोग नौकरी माँगने वालों के बजाय नौकरी देने वाले बनें। हालांकि यह भी प्रधानमंत्री का कुतर्क ही था, क्योंकि हर कोई जॉब क्रियेटर नहीं बन सकता, जॉब क्रियेटर की संख्या कम होती है और ज़्यादातर जॉब सीकर्स यानी रोज़गार माँगने वाले ही होते हैं। यानी किसी भी समाज में नौकरी देने वालों की संख्या कम और नौकरी करने वालों की संख्या ज़्यादा होती है। लेकिन प्रधानमंत्री अपने भाषणों में हर युवा को नौकरी देने वाला बनाने में लगे रहे।
2014 के चुनाव से पहले भारत में युवा शक्ति की तादाद बताने वाले मोदी एकमात्र व्यक्ति नहीं थे। मनमोहन सिंह के कार्यकाल में जब भारत पहली बार ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बना, तभी वैश्विक रूप से चर्चा शुरू हो गई कि भारत की युवा शक्ति तेजी से अर्थव्यवस्था बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रही है। युवा शक्ति का लाभ उठाकर जनसंख्या को रफ्तार देने वालों में चीन सहित कई देशों का नाम सामने आता है। भारत में अभी भी युवा पीढ़ी की ताक़त के उचित इस्तेमाल से अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार दी जा सकती है। लेकिन भारत जनांकिकीय लाभांश गंवाने की ओर है।
हिंदुओं की जनसंख्या बढ़ाने पर जोर
कथित हिंदूवादी विचारधारा के लोग हिंदुओं को ज़्यादा बच्चे पैदा करने पर जोर देते रहे हैं। उन्नाव से बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने 7 जनवरी 2015 को हिंदुओं से ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे पैदा करने का आह्वान किया। स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने 18 जनवरी 2015 को आह्वान किया कि मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए हिंदुओं को 10 बच्चे पैदा करने की ज़रूरत है। आरएसएस ने 22 अगस्त 2016 को हिंदुओं को जन्म दर बढ़ाने का आह्वान किया। बलिया के बीजेपी विधायक ने 26 जुलाई 2018 को आह्वान किया कि हिंदुओं को कम से कम 5 बच्चे पैदा करने चाहिए।
हिंदुओं से ज़्यादा बच्चे पैदा करने का आह्वान नरेंद्र मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद बहुत तेज हो गया था। हालांकि हिंदूवादी संगठन शुरुआत से ही मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंदुओं को भड़काने के लिए कहते रहे हैं कि मुसलमान 4 बीवियां रखकर 40 बच्चे पैदा कर रहे हैं, जिससे आने वाले समय में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने कभी भी उस दौरान नहीं कहा कि जनसंख्या विस्फोट देश के लिए खतरनाक है। यह भी ध्यान रखने की बात है कि 1975 के आपातकाल के दौरान नसबंदी का विरोध अहम मसला था और उस समय विपक्ष के रूप में आरएसएस के आनुषांगिक संगठन नसबंदी का कड़ा विरोध कर रहे थे।
अब सारा जोर जनसंख्या नियंत्रण पर
भारत सरकार अब देश की 80 प्रतिशत हिंदू आबादी के बच्चों को रोज़गार देने की हालत में नहीं है। अब सरकार को जनसंख्या नियंत्रण की याद सता रही है। मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में स्वतंत्रता दिवस के पहले संबोधन में जनसंख्या विस्फोट के मसले पर भाषण में क़रीब 5 मिनट की जगह दी। भाषण में इस बात पर जोर था कि जो व्यक्ति बच्चा पैदा करता है, वह उसकी पूरी जिम्मेदारी खुद उठाए। मोदी का जोर इस बात पर रहा कि लोग बच्चे पैदा कर उसकी जिम्मेदारी समाज पर न डालें। बच्चे को उसके नसीब पर न छोड़ें और इसके लिए सामाजिक जागरूकता की ज़रूरत की बात भी उन्होंने कही।
मोदी ने लाल क़िले से कहा, “हमारा देश उस दौर में पहुंच चुका है जिसमें बहुत सी बातों से अब अपने आपको छिपाए रखने की ज़रूरत नहीं है। चुनौतियों को स्वीकार करने का वक्त आ चुका है। उसमें एक विषय है जनसंख्या वृद्धि। हमारे यहाँ बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट हो रहा है। यह हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए नए संकट पैदा कर रहा है। हमारे देश में एक जागरूक वर्ग है जो इसे भली भांति समझता है। वह अपने घर में शिशु को जन्म देने के पहले भली भांति समझने की कोशिश करता है कि मैं कहीं उसके साथ अन्याय तो नहीं कर दूंगा। उसकी मानवीय जरूरतें पूरी कर पाऊंगा या नहीं। उसके सपने पूरे करने में सहयोग कर पाऊंगा या नहीं।’ उन्होंने छोटे परिवार रखने वालों को देशभक्ति से जोड़ा था।
जनसंख्या नियंत्रण के आह्वान का मतलब
मोदी जब कोई घोषणा करते हैं तो वह राजनीति से परे क़तई नहीं होती। जनसंख्या नियंत्रण का आह्वान करने और उस दिशा में काम करने की घोषणा के पीछे दो वजहें हो सकती हैं। इस समय गिरती अर्थव्यवस्था, लोगों की जाती नौकरियों और बेरोज़गारी के पहाड़ के बीच निराशा फैल रही है। अचानक नौकरी चले जाने के बाद आत्महत्या की ख़बरें अख़बारों में बढ़ रही हैं।
मोदी की इस घोषणा के पीछे एक वजह यह हो सकती है कि वह अपने समर्थकों को यह बताना चाह रहे हों कि बेरोज़गारी के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है, बल्कि जिन लोगों ने बच्चे पैदा किए हैं, वे जिम्मेदार हैं। यह तर्क उन लोगों के लिए अनुकूल होगा, जो बीजेपी समर्थक हैं और नौकरियां कर रहे हैं। ऐसे लोग आक्रामक तरीके़ से यह प्रचार कर सकेंगे कि योग्य लोगों को नौकरियां मिल रही हैं, और जो लोग बेरोज़गार हैं, वे अयोग्य होने या जनसंख्या ज़्यादा होने की वजह से हैं।
समान नागरिक संहिता की तैयारी!
दूसरी संभावना यह बनती है कि सरकार समान नागरिक संहिता लाने की तैयारी कर रही हो। मुसलिमों की आबादी बढ़ने और हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने के ख़तरों को दिखाने वाले हिंदूवादी लोगों के लिए समान नागरिक संहिता अहम मसला है। उन्हें लगता है कि मुसलमानों की जनसंख्या में बढ़ोतरी समस्या की असल वजह है और वे अपनी बेकारी को मुसलमानों की संख्या के पीछे छिपा सकते हैं। हिंदूवादी संगठन बढ़ती बेरोज़गारी की वजह आक्रामक रूप से मुसलमानों को बता सकते हैं, जिससे उन्हें राजनीतिक लाभ मिल सके।
तीसरी संभावना यह बनती है कि प्रधानमंत्री जनसंख्या वृद्धि की समस्या को लेकर वाक़ई गंभीर हों। यह जनसंख्या महानगरों में केंद्रित होकर बुनियादी सुविधाओं पर बोझ बन रही है। हालांकि ताज़ा आंकड़ों से पता चलता है कि जनसंख्या वृद्धि दर कम हो रही है, जिसमें मुसलिम जनसंख्या की वृद्धि दर में तेजी से कमी आई है।
बहरहाल, जिस जनसंख्या को प्रधानमंत्री 2014 के चुनाव के पहले देश के लिए वरदान बताते थे, हिंदूवादी संगठन हिंदुओं से ज़्यादा बच्चे पैदा करने का आह्वान करते थे, अब वे उसे ख़तरा क्यों बता रहे हैं। मतलब साफ़ है कि अब सरकार को सभी मुसीबतों की जड़ जनसंख्या में नज़र आ रही है।
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