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अमेरिका में राहुल के बाद पीएम मोदी! 

भारत के नेता सचमुच महान हैं। वे सात समंदर पार जाकर राजनीति करते हैं। अमेरिका में भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से लेकर कांग्रेस के हीरो राहुल गांधी तक को तवज्जो दी जाती है क्योंकि अमेरिका आखिरकार एक लोकतांत्रिक देश है। व्यापार उसकी रगों में भी है।

अमेरिका में राहुल गांधी ने विभिन्न मंचों से भारत सरकार, सत्तारूढ़ भाजपा पर राजनीतिक हमले किये। उधर अमेरिका ने प्रधानमंत्री मोदी को 'स्टेट डिनर’ पर आने का न्योता दिया है। मोदी अमेरिकी संसद को भी संबोधित करेंगे। 

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ये वही अमेरिका है जिसने मोदी को प्रधानमंत्री बनने से पहले अमेरिका में प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी। लेकिन अब मोदी को स्टेट डिनर पर आमंत्रित करने के सवाल पर अमेरिका को द्विपक्षीय संबंधों की दुहाई देना पड़ रही है। व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी का कहना है कि भारत अलग-अलग स्तरों पर अमेरिका का मज़बूत सहयोगी है। आपको याद होगा कि शंगरी ला डायलॉग में रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन भी कह चुके हैं कि हम भारत के साथ उन्हें आगे बढ़ाने की दिशा में बढ़ रहे हैं। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में अमेरिकी दौरे पर होंगे। उनके इस दौरे को कई मायनों में अहम माना जा रहा है। किर्बी ने कहा कि मैं और भी कई बातें बता सकता हूं। कई अनगिनत कारण हैं कि भारत इतनी अहमियत क्यों रखता है? सिर्फ द्विपक्षीय संबंध ही नहीं बल्कि बहुपक्षीय स्तर पर भी अहमियत रखता है। इसके साथ ही राष्ट्रपति बाइडेन इन तमाम मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ और गहराई से बात करने की दिशा में देख रहे हैं। जाहिर है कि भारत का प्रधानमंत्री कोई भी हो लेकिन भारत अमेरिका के लिए हमेशा महत्वपूर्ण रहने वाला है।

राहुल गांधी ने बीते दिनों अमेरिका के छह दिवसीय दौरे पर मोदी सरकार को निशाने पर लिया। 'नेशनल प्रेस क्लब' में आयोजित एक कॉन्‍फ्रेंस में राहुल बोले थे, 'भारत में लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ना हमारा काम है। यह एक ऐसी चीज है, जिसे हम समझते हैं। जिसे हम स्वीकार करते हैं और जो हम करते हैं।' एक कार्यक्राम में वह बोले थे कि भारत के लोकतंत्र से पूरी दुनिया का लोकहित जुड़ा है। अगर इसमें बिखराव होता है तो इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। 
राहुल ने अमेरिका में बसे भारतीयों से अनुरोध किया था कि वे भारत वापस आएँ। लोकतंत्र के साथ भारतीय संविधान की रक्षा में खड़ें हों। कांग्रेस नेता पहले भी विदेशी मंचों पर भारतीय लोकतंत्र पर ख़तरा होने की बातें कहते रहे हैं। बीजेपी इस पर कड़ी आपत्ति जताती रही है।

अमेरिका में एक बार फिर राहुल गांधी ने संसद की सदस्यता के मुद्दे पर केंद्र सरकार पर हमला बोला और कहा, चूंकि उन्होंने संसद में अडानी-हिंडनबर्ग का मुद्दा उठाया था, इसलिए बदले में उन्हें गिफ्ट (सजा) मिला है। राहुल गांधी ने कहा कि वह पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिसे मानहानि के मामले में सबसे बड़ी सजा दी गई है।

मोदी और राहुल गांधी में बुनियादी फर्क ये है कि राहुल गांधी इस समय भारत के किसी सदन के सदस्य नहीं हैं जबकि मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। मोदी की मजबूरी ये है कि उन्हें चाहे, अनचाहे राहुल के सवालों का सामना करना पड़ता है। वे राहुल की तरह न तो प्रेस का मुकाबला करते हैं और न किसी मंच पर बिना टेलीप्रॉम्टर के बोल पाते हैं।

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भारत से बाहर भारत की राजनीति पर चर्चा करने में राहुल गांधी सिद्धहस्त हैं, जबकि मोदी को मजबूरन बोलना पड़ता है। मोदी के सामने यदि कांग्रेस और राहुल न हों तो उन्हें बोलने में दिक्कत होती है, क्योंकि भारत के दुनिया के तमाम देशों से द्विपक्षीय संबंध आज के या 9 साल पुराने नहीं बल्कि 75 साल पुराने हैं। और इनकी आधारशिला कांग्रेस की सरकारों ने ही रखी थी। मोदी जी इस आधार को हिला नहीं सकते।

बहरहाल, परिदृश्य रोचक और रंगीन है। भारत की पहचान पद के साथ परंपरा से भी है। कोई भी देश भारत को अकेले मोदी या राहुल गांधी की वजह से इज्जत नहीं देता। ये सम्मान दशकों की पूंजी है।

(साभार - राकेश अचल के फ़ेसबुक पेज से)

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राकेश अचल
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