बजाज कंपनी के बाद पारले कंपनी की ओर से भी ज़हरीले न्यूज़ चैनलों के बहिष्कार की घोषणा को एक अप्रत्याशित और सुखद क़दम के तौर पर लिया जा रहा है। सोशल मीडिया पर व्यक्त की जा रही टिप्पणियों में इसे देखा जा सकता है।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के प्रति आरएसएस का प्रेम वास्तवकि है या हिन्दुत्व के तहत सभी हिन्दुओं को एकजुट करने में वह उन्हें एक टूल के रूप में इस्तेमाल कर रही है?
यूपी पुलिस ने पीएफ़आई से जुड़े होने के आरोप में हाथरस जा रहे चार लोगों को गिरफ़्तार तो किया है, लेकिन परिजनों का आरोप है कि उन्हें केस डायरी तक नहीं दी गई है। उन्हें मिल भी गई तो क्या वे केस डायरी समझ पाएँगे? केस डायरी ऊटपटांग और डर पैदा करने वाला क्यों?
सच बात तो ये है कि ये घोटाला बहुत बड़े घोटाले का एक छोटा सा हिस्सा भर है। वास्तव में टीआरपी यानी रेटिंग सिस्टम अपने आप में एक घोटाला है और इस घोटाले ने पूरे मीडिया को भ्रष्ट करने में भूमिका निभाई है।
टीआरपी का खेल अच्छी पत्रकारिता को धीरे धीरे ख़त्म करता जाता है और लोगों की समस्याएं और जन उपयोगी सामग्री टीवी से दूर होता जाता है। कैसे, समझें इस लेख में।
टीआरपी रेटिंग में गड़बड़ी का सबसे बड़ा कारण बहुत कम संख्या में बॉक्स का लगाया जाना है। देश में इस समय 44 हज़ार बॉक्स लगे हैं। जबकि टीवी सेट की संख्या 20 करोड़ है और क़रीब 80 करोड़ लोग रोज़ टीवी देखते हैं।
भारत ने चीन को भी एक संदेश दिया है कि जिस तरह वह भारत की सम्प्रभुता का सम्मान नहीं करता है उसी तरह भारत भी चीन की प्रादेशिक एकता का सम्मान करने के लिये प्रतिबद्ध नहीं है।
जब पूरा देश और मीडिया न्यायालय से पहले ख़ुद ही न्यायालय बन बैठा था और रिया चक्रवर्ती को अपराधी साबित करने में जुटा हुआ था, मुंबई हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उसे ज़मानत दे दी कि रिया पर कोई आपराधिक मामला नहीं बन रहा है।
पत्रकारिता की साख और सम्मान को गिराने में टीवी न्यूज़ मीडिया ने प्रिंट के मुक़ाबले बहुत तेज़ी से शर्मनाक योगदान दिया है और इसकी क़ीमत पूरी इंडस्ट्री को चुकानी पड़ेगी।
लोक नायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) की पुण्यतिथि के तीन दिन बाद यानी ग्यारह अक्टूबर को उनकी जयंती है। सोचा जा सकता है कि वे आज अगर हमारे बीच होते तो क्या कर रहे होते!
हाथरस केस में जिस ‘जस्टिस फ़ॉर हाथरस विक्टिम.कॉर्र्ड.को’ के ज़रिए ‘दंगा फैलाने की साज़िश का पर्दाफाश’ हुआ वह 30 सितंबर को बनी थी। वेबसाइट ने महज ढाई घंटे में ऐसी क्या स्थिति पैदा कर दी कि शव को आधी रात को जलाना पड़ा?
यह सर्वविदित है कि आरएसएस में ब्राह्मणों का वर्चस्व है जबकि योगी आदित्यनाथ की हिन्दू युवा वाहिनी में ठाकुरों का दबदबा है। हाल की घटनाओं से ऐसा लगता है जैसे संघ और योगी के दरम्यान शह और मात का खेल चल रहा है।