प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर 'एक देश-एक चुनाव’ यानी सारे चुनाव एक साथ कराने का अपना इरादा जाहिर किया है। वह बार-बार इसे मुद्दे को क्यों छेड़ रहे हैं? चुनाव आयोग पर क्या असर होगा?
किसान आन्दोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत 29 नवम्बर को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में तीनों क़ानूनों को भाग्य बदलने वाला बताया, लेकिन क्या किसान प्रधानमंत्री का विश्वास करेंगे?
हैदराबाद में नगर-निगम के चुनाव और उसके परिणाम स्थानीय नहीं, अंतरराष्ट्रीय चुनाव साबित हो सकता है। जिन्ना ने तो सिर्फ़ एक पाकिस्तान खड़ा किया था लेकिन अब भारत में दर्जनों पाकिस्तान उठ खड़े हो सकते हैं।
बाबा साहब आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर उनके जीवन संघर्ष और समता-न्याय पर आधारित उनकी उदार लोकतंत्र की अवधारणा से सीखने की ज़रूरत है। वह हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था और हिन्दुत्व की वैचारिकी से जीवन भर जूझते रहे।
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 को नवंबर के आख़िरी सप्ताह में राज्यपाल ने मंजूरी दे दी है। लेकिन धर्मांतरण विरोधी इस क़ानून में लव जिहाद शब्द का प्रयोग भी नहीं हुआ है।
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बीजेपी की हिंदुत्ववादी ध्रुवीकरण की राजनीति उसे किस पैमाने पर कामयाबी दिला सकती है।
केंद्र सरकार के तीन नये कृषि क़ानूनों को लेकर किसानों और सरकार के बीच चल रहे गतिरोध पर जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने प्रधानमंत्री मोदी को खुल ख़त लिखा है और उन्हें एक तरकीब सुझाई है।
उप सभापति हरिवंश ने सितंबर के आख़िरी पखवाड़े में ही तो राज्यसभा में हंगामे के बीच कृषि बिल को भारी विरोध और हंगामे के बीच पास करा दिया था। उसी नये कृषि क़ानूनों के विरोध में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं।
दिल्ली की जनता को फल और सब्जियां मिलना मुहाल हो रहा है और सैकड़ों ट्रक सीमा के नाकों पर खड़े हुए हैं। इससे किसानों को भी नुकसान हो रहा है और व्यापारी भी परेशान हैं।
ललित सुरजन जी चले गए। 74 साल की उम्र भी जाने की कोई उम्र है लेकिन उन्होंने हमको अलविदा कह दिया। देशबंधु अख़बार के प्रधान संपादक थे। वह एक सम्मानित कवि व लेखक थे।
नए कृषि क़ानूनों से क्या कृषि क्षेत्र में कार्पोरेट का बोलबाला हो जाएगा, कांट्रैक्ट खेती होने लगेगी और किसानों के हितों को भारी धक्का लगेगा? क्या सारा लाभ बड़ी-बड़ी कंपनियाँ ले जाएँगी और किसान तथा छोटे व्यापारी देखते रह जाएँगे?