भीमा कोरेगांव का विजय स्मारक आज दलित स्वाभिमान और शौर्य का प्रतीक है। प्रतिवर्ष 1 जनवरी को पूरे देश से दलित यहां पहुंचकर पेशवा के ख़िलाफ़ महारों की वीरता और शौर्य का जश्न मनाते हैं।
नए साल का स्वागत हमें ख़ुशियाँ मनाते हुए करना चाहिए या कि पीड़ा भरे अश्रुओं के साथ? किसान आंदोलन से लेकर कोरोना संक्रमण की पीड़ा तक, लोगों की ताज़ा और पुरानी याददाश्त में भी कोई एक साल इतना लम्बा नहीं बीता होगा कि वह ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले!
आज भारत में मीडिया के एक बड़े वर्ग ने जनता का सम्मान खो दिया है और वह सत्ताधारी दल के लिए 'गोदी मीडिया' (बेशर्म, बिका हुआ, चाटुकार प्रवक्ता) बन गया है।
सरकार और किसान नेताओं के बीच अब जो बातचीत होने वाली है, मुझे लगता है कि यह आख़िरी बातचीत होगी। या तो सारा मामला हल हो जाएगा या फिर यह दोनों तरफ़ से तूल पकड़ेगा।
आज किसानों के आंदोलन के समय भी एक तबक़ा तीन कृषि क़ानूनों का विरोध महज़ इस आधार पर कर रहा है कि इससे कॉर्पोरेट घरानों की ज़ेबें भरेंगी और किसान कंगाल हो जायेगा। कृषि क़ानून में कई ख़ामियाँ हैं।
बीजेपी का लक्ष्य किसी भी क़ीमत पर हर राज्य में अपनी सरकार बनाना है। इसलिए अरुणाचल प्रदेश का घटनाक्रम इस बात का भी संकेत है कि बिहार की राजनीति में आने वाले दिनों में चौंकाने वाली घटनाओं के साथ बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
सिस्टर अभया की हत्या किसी विधर्मी ने नहीं की थी! वे अगर अपनी ही जमात के दो पादरियों और एक सिस्टर को 27 मार्च 1992 की अल सुबह कॉन्वेंट के किचन में आपत्तिजनक स्थिति में देखते हुए पकड़ नहीं ली जातीं तो निश्चित ही आज जीवित होतीं।
देश में कोरोना वैक्सीन अगले महीने से लगनी शुरू होनी है। लेकिन इससे पहले ही इस पर फ़तवे की तलवार लटक गई है। मुसलिम धर्म गुरुओं नें कोरोना वैक्सीन के हलाल या हराम होने को लेकर बहस छेड़ दी है।