29 जनवरी को सिंघु बॉर्डर पर हुए पथराव की तमाम सचाइयाँ सामने आ गई हैं। यह साफ़ हो गया है कि किसानों के आंदोलन से नाराज़ स्थानीय लोग इस प्रायोजित हिंसा में शामिल नहीं थे।
आज यानी 30 जनवरी को शहीद दिवस है। देश को आज़ादी दिलाने के लिए सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी। जानिए, गांधी क्यों आज भी प्रासंगिक हैं।
जो किसान आंदोलन 25 जनवरी तक भारतीय लोकतंत्र की शान बढ़ा रहा था, वही अब दुख और शर्म का कारण बन गया है। इस आंदोलन ने हमारे राजनीतिक नेताओं के बौद्धिक और नैतिक दिवालिएपन को उजागर कर दिया है।
गणतंत्र दिवस के दिन राजधानी दिल्ली में किसान आंदोलन के संदर्भ में जो कुछ भी घटित हुआ वह बेहद शर्मनाक व निंदनीय तो ज़रूर था परन्तु यह सब पूर्णतया अनअपेक्षित क़तई नहीं था।
गणतंत्र दिवस पर किसानों की परेड में एक गुट द्वारा हिंसा की गई। समूचे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की रिपोर्टिंग आईटीओ, बादली और नांगलोई में होने वाली छिटपुट हिंसा पर ही केंद्रित थी, जबकि 95 फ़ीसदी ट्रैक्टर परेड शांतिपूर्वक रही।
दुष्कर्म करने वाली अधिकांश भारतीय मीडिया का हालिया रिकॉर्ड देखकर उनको जनता का दुश्मन क़रार देना कुछ ग़लत न होगा। किसान आंदोलन में कैसी रही इसकी भूमिका?
सरकार शुरू से कृषि क़ानून वापस नहीं लेने और किसान आंदोलन को कमज़ोर करने के लिए फूट डालने की रणनीति पर चल रही थी। ट्रैक्टर परेड के बाद उसे बहाना मिल गया है।
अयोध्या में बनने जा रहे रामजन्मभूमि मंदिर सहित 70 एकड़ परिसर की भव्यता पर 1,100 करोड़ रुपये ख़र्च होंगे। यह निर्माण कार्य 3 वर्ष में पूरा होने का अनुमान है।
छह महीने के राशन-पानी और चलित चौके-चक्की की तैयारी के साथ राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पहुँचे किसान अपने धैर्य की पहली सरकारी परीक्षा में ही असफल हो गए हैं, क्या ऐसा मान लिया जाए?
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहा किसान आंदोलन निरंकुशता के विरुद्ध लोक के तंत्र को पुन: स्थापित करने का आंदोलन है, ट्रैक्टर परेड लोकविरोधी सरकार को चेतावनी देते हुए लोक की संप्रभुता को प्रदर्शित करने का प्रयास है।
किसान आंदोलन से संघ के एजेंडे को बहुत ज़्यादा नुक़सान होने वाला है। संघ हिंदुत्व के एजेंडे को जल्दी से जल्दी पूरा करने की जुगत में है। क्या इस कारण मोदी और संघ में मतभेद है?
अर्णब गोस्वामी एक ऐसे टीवी मीडिया समाचार वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका मक़सद अभद्र टिप्पणियों के माध्यम से राजनेताओं का चरित्र हनन करना तथा ग़ैरज़रूरी बहस में उलझाकर जनहित से जुड़ी ज़रूरी ख़बरों को हाशिये पर डालना शामिल है।