कर-लोकपाल की ज़रूरत मुख्य आर्थिक सलाहकार के. वी. सुब्रमण्यन ने साल 2021 के आर्थिक सर्वेक्षण में बताई है। उनके अनुसार कर-लोकपाल, आयकरदाताओं सहित तमाम करदाताओं के अधिकारों की निगरानी के लिए ज़रूरी है।
किसानों का चक्का-जाम बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया और उसमें 26 जनवरी- जैसी कोई घटना नहीं घटी, यह बहुत ही सराहनीय है। केंद्र सरकार कृषि क़ानूनों को मानने या न मानने की छूट राज्यों को क्यों नहीं दे देती?
सरकार का मानना है कि अम्बानी (याने कॉरपोरेट घरानों) पर टैक्स लगाकर उस पैसे से ग़रीबों की स्थिति बेहतर करने की जगह सरकार को विकास के पहले दौर में ग़रीबों की निरपेक्ष ग़रीबी जैसे मौलिक सुविधाओं का अभाव ख़त्म करना होगा। उसके अनुसार सापेक्ष गरीबी (जो शुद्ध रूप से असामनता-जनित होती है) तो अमेरिका में भी है।
किसान आन्दोलन पर सरकार यही सन्देश दे रही है कि किसान नागरिक अधिकारों से विहीन नागरिक बनते जा रहे हैं। उनके बारे में बिना चर्चा कानून बनाने से लेकर उनको इस स्थिति मेँ लाने तक यही चल रहा है।
4 फरवरी 2021 को ऐतिहासिक चौरी चौरा घटना के शताब्दी वर्ष समारोह का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। प्रधानमंत्री ने चौरी चौरा के शहीदों को याद करते हुए, इतिहास में उनकी अवहेलना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
जब मैंने अखबारों में पढ़ा कि गोरखपुर के चौरी-चौरा कांड का शताब्दी समारोह मनाया जाएगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसका उदघाटन करेंगे तो मेरा मन कौतूहल से भर गया।
मोदी समर्थक बॉलीवुड और क्रिकेट के स्टारों ने भी विदेशी हस्तियों द्वारा किसान आंदोलन के समर्थन को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करार देते हुए उनकी आलोचना की है।
क्या कभी कोई कल्पना कर सकता था कि मास्को से व्लादिवस्तोक तक दर्जनों शहरों में हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आएँगे और ‘पुतिन तुम हत्यारे हो’, ऐसे नारे लगाएँगे? लेकिन आजकल पूरा रूस जन-प्रदर्शनों से खदबदा रहा है।
किसान ‘कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग’ से लड़ रहे हैं और पत्रकार ‘कांट्रैक्ट जर्नलिज़्म’ से। व्यवस्था ने हाथियों पर तो क़ाबू पा लिया है पर वह चींटियों से डर रही है। ये पत्रकार अपना काम सोशल मीडिया की मदद से कर रहे हैं।
2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के बाद, मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर और इन क्षेत्रों के अन्य पश्चिमी जिलों के किसान धार्मिक क्षेत्रों में ध्रुवीकृत हो गए थे और हिंदू हिंदुत्ववादी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रबल समर्थक बन गए थे।
नरेंद्र मोदी के नए लुक का रहस्य क्या है? इसके राजनीतिक मायने क्या हैं? ज्यादातर लोगों का मानना है कि नरेंद्र मोदी का नया लुक बंगाल चुनाव के मद्देनज़र है। बंगाल में सियासी फायदे के लिए नरेंद्र मोदी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के वेश में दिख रहे हैं।
किसान आंदोलन में दिल्ली का ऐतिहासिक लाल क़िला भी चर्चा में आ गया है। कुछ जगह उपद्रव होने की ख़बरों के बीच सबसे ज़्यादा फोकस इस बात पर रहा कि कुछ लोगों ने लाल क़िले पर तिरंगे के बजाय दूसरा झंडा फहरा दिया।
क्या कोई सरकार ऐसा बजट ला सकती है, जो देश के हर नागरिक को ये पाँच चीजें मुहय्या करवा दे? यह कठिन है, लेकिन असंभव नहीं है। शिक्षा और चिकित्सा तो बिल्कुल मुफ़्त कर दी जाए।
गोडसे भी हिंदू था और गांधी भी हिंदू थे; पक्का सनातनी हिंदू; रामराज्य का सपना लेने वाला हिंदू; एक ऐसा हिंदू, मृत्यु पूर्व जिसकी जिहृा पर अंतिम शब्द 'राम' ही था; बावजूद इसके नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को हिंदूवाद की राह में रोड़ा माना और हत्या की।