सरकार ने एक ऐसी फ़ौज खड़ी कर दी है जो सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर विरोधियों पर टिड्डी दल की तरह धावा बोलती है और सामने वाले की छवि को पलक झपकते ही तार-तार कर देती है।
क्या इस देश में महात्मा गांधी की बताई राह का 'टूलकिट' यानी योजना तैयार करके संगठित अहिंसक आंदोलन करना गुनाह है? यदि ऐसा है तो फिर बापू के नेतृत्व में चला हमारी आज़ादी का समूचा नागरिक अवज्ञा आंदोलन राजद्रोह ही था?
क्या कृषि क़ानून केवल कारपोरेट घरानों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए हैं? क्या इसका कोई वैचारिक आधार भी हो सकता है? क्या मोदी सरकार की कारपोरेटपरस्त आर्थिक नीति के पीछे कोई समाजनीति भी है?
राहुल गांधी जिस समय हिंदुत्व की छवि के प्रतीक प्रधानमंत्री पर लोकसभा में हमले की तैयारी कर रहे थे, प्रियंका संगम में डुबकी लगाकर हिंदुत्व का स्नान कर रही थीं, भगवान सूर्य की पूजा कर उन्हें अर्घ्य दे रही थीं।
चौहान ने अपने मंत्रियों और विधायकों से इस समस्या पर तो खुला विचार-विमर्श किया ही कि वे पिछला चुनाव क्यों हारे। लेकिन उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को सफलता, लोकप्रियता और जन-सेवा के जो गुर बताए हैं, वे सिर्फ बीजेपी ही नहीं, सभी पार्टियों के लिए अनुकरणीय हैं।
ट्विटर पर कार्रवाई के बीच सूचना एवं तकनीकी मंत्री रविशंकर प्रसाद अपने ख़ास अंदाज़ में बारंबार कह रहे हैं कि विदेशी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को भारतीय संविधान एवं क़ानूनों का पालन करना ही पड़ेगा।
गृह मंत्रालय को तलाश है देश में ऐसे साइबर-वालंटियर्स की जो कई गंभीर अपराधों, आतंकवाद, कट्टरवाद और राष्ट्र-विरोधी ग़ैर-क़ानूनी कंटेंट देने वालों की पहचान करें और उनके बारे में मंत्रालय को बताएं।
सरकार ने सुधारों के नाम पर जनता के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस को बयानबाजियों और दूसरे के धरनों व रैलियों में जाने से इतर अपनी रणनीति साफ़ करने की ज़रूरत है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चौधरी चरण सिंह का हवाला देकर और हाशिए वाले किसानों की दयनीय स्थिति की तरफ़ इशारा कर अपनी सरकार के कृषि सुधार क़ानूनों का बचाव किया है।
कांग्रेस के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद की संसद से बिदाई अपने आप में एक अपूर्व घटना बन गई। पिछले साठ—सत्तर साल में किसी अन्य सांसद की ऐसी भावुक विदाई हुई हो, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता।
सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर जैसी हस्तियों की ट्वीट की जाँच का फ़ैसला लेकर महाराष्ट्र सरकार और इसमें शामिल तमाम पार्टियाँ सवालों के घेरे में आ गयी हैं।
रियाना (रिहाना) के ट्वीट के बाद भारत की कुछ खेल हस्तियों और मशहूर हस्तियों ने अपनी राय रखी। इसने सारी दुनिया का ध्यान खींचा है। क्या इससे देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ी है?
क्या कोई आज़ादी दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल बीजेपी में उपलब्ध है? उसके अनुमानित 18 करोड़ सदस्यों में क्या कोई यह सवाल पूछने की हिम्मत कर सकता है कि पार्टी और सरकार हक़ीक़त में कैसे चल रही हैं?
कई परियोजनाओं के तहत धड़ल्ले से साफ़ किए जा रहे जंगल और पहाड़ों को काटने के लिए किए जा रहे विस्फोट ही वहाँ आपदा को न्योता दे रहे हैं। चमोली ज़िले में ग्लेशियर टूटने से आई आपदा को इसी रूप में देखा जा सकता है।