म्यांमार में उथल-पुथल मची हुई है। सैन्य हुकूमत की तानाशाही के ख़िलाफ़ आंदोलनकारियों ने सड़कों को पाट रखा है। उन पर गोलियाँ चलाई जा रही हैं। डेढ़ सौ मारे जा चुके हैं। भारत से कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं है?
महामारी का ख़तरा उन लोगों के लिए भी उतना ही है, लेकिन जिस तरह से म्याँमार यानी बर्मा में सेना ने चुनी हुई सरकार को अपदस्थ कर सत्ता पर कब्जा किया है, जनता तमाम ख़तरों को नजरंदाज करते हुए सड़कों पर निकल आई है।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का गंगा स्नान के लिए हरिद्वार आने वालों पर कोविड—19 निगेटिव रिपोर्ट लाने की अनिवार्यता ख़त्म करने वाला आदेश क्या कुंभ मेले को श्रद्धालुओं के लिए 'महामारी का महाकुंभ' साबित कर देगा?
केंद्र सरकार ने ओबीसी की जनगणना कराने की मांग खारिज कर दी है। संसद में सरकार ने कहा है कि ऐसी कोई योजना नहीं है। बीजेपी और बिहार में उसके सहयोगी जदयू के बीच टकराव की पूरी संभावना बन रही है।
केंद्र सरकार अब ऐसा क़ानून बनाने पर उतारू हो गई है, जो दिल्ली की केजरीवाल-सरकार को गूंगा और बहरा बनाकर ही छोड़ेगी। दिल्ली की यह सरकार उप-राज्यपाल की सरकार होगी!
कोई धर्म यह नहीं कहता और कोई नीतिशिक्षा यह नहीं कहती कि प्यासे को पानी मत दो, भूखे को रोटी मत दो। हमारे ऋषि मुनियों ने किसी भी भूखे प्यासे के लिये एक ही धर्म बताया है वह है दया करुणा और प्रेम।
स्वीडेन की वी-डेम और अमेरिकी एनजीओ फ्रीडम हाउस ने भारत में प्रजातंत्र की स्थिति पहले से ख़राब बताई। सत्ताधारी वर्ग यह नहीं समझता कि वर्तमान दौर में देश की हर ख़बर दुनिया भर में पहुँचती है।
अभिव्यक्ति के अधिकार को नियंत्रित करने की मंशा से बीजेपी सरकार ने ‘सोशल मीडिया’ और समस्त डिजिटल प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करने की कोशिश की है। अनुराग कश्यप, तापसी पन्नू का मामला सरकारी शक्ति के दुरुपयोग का ताज़ातरीन मामला है।
अमेरिका की संस्था, केटो इंस्टीट्यूट और कनाडा की संस्था फ्रेजर इंस्टीट्यूट द्वारा जारी दुनिया के 162 देशों की रैंकिंग में भारत की आज़ादी को ‘आधी’ बता दिया गया है और उसकी रैंकिंग 94वें स्थान से गिरकर 111 स्थान पर आ गई है।
सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसे क़ानून पर पुनर्विचार की याचिका स्वीकार कर ली है, जिसका उद्देश्य था- भारत के मंदिर-मसजिदों के विवादों पर हमेशा के लिए तालाबंदी कर देना। अब इस क़ानून को एक वकील अश्विन उपाध्याय ने अदालत में चुनौती दी है।
अख़बारों में ख़बर है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के पूजास्थल क़ानून के ख़िलाफ़ दायर एक याचिका को स्वीकार कर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। आख़िर ऐसा क्यों किया?
क्या इसका मतलब यह है कि केजरीवाल ने मोदी से कुछ पैंतरे उधार लिए हैं और दक्षिणपंथी हो गए हैं? क्या इसका यह मतलब भी है कि यह केजरीवाल का वह पहलू है जिसे अब तक एक बड़े वर्ग ने देखा नहीं था और जो आरएसएस जैसा ही है?