विनायक नरहरि भावे यानी विनोबा भावे की बुधवार 11 सितंबर को जयंती
है। वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी ने भूदान आंदोलन के अगुआ विनोबा भावे को समर्पित यह लेख लिखा है। मौजूदा पीढ़ी के जो लोग विनोबा भावे को नहीं जानते, उनके लिए यह लेख एक जरूरी खुराक की तरह है।
मणिपुर में ताज़ा हिंसा शुरू होने और विरोध-प्रदर्शन के बाद इंफाल में कर्फ्यू लगा दिया गया। गृह मंत्रालय ने पूरे मणिपुर में पाँच दिनों के लिए इंटरनेट निलंबित कर दिया है। आख़िर ऐसी नौबत क्यों आई?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंगापुर के दौरे पर कहा है कि वह भारत में भी कई सिंगापुर बनाना चाहते हैं और वह इस दिशा में मिलकर कोशिश कर रहे हैं। क्या सच में भारत में सिंगापुर बनाने का माहौल है? या हालात कुछ और स्थिति की ओर इशारा करते हैं?
“द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर”, “इंदु सरकार”, “कश्मीर फाइल्स”, “द केरल स्टोरी”, ”उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक” जैसी फिल्में क्यों बनाई गईं? जानिए, क्या कंगना की फिल्म इमरजेंसी इससे कुछ अलग है?
कीव से नई दिल्ली वापसी के सिर्फ़ तीन दिन बाद ही रूस ने यूक्रेन पर अपना अब तक का सबसे बड़ा हमला कर दिया। देश को जानकारी मिलना बाक़ी है कि मोदी यूक्रेन क्यों गए थे?
अब्दुल गफ्फूर अब्दुल मजीद नूरानी का 93 साल की उम्र में गुरुवार को निधन हो गया। जानिए, उन्होंने किस-किस तरह की किताबें लिखीं और आरएसएस के प्रति उन्होंने क्या आगाह किया।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा ईडी के मामलों में हाल में दिए गए फ़ैसले क्या ईडी की निर्बाध शक्तियों को कम नहीं करते हैं? क्या अब सुप्रीम कोर्ट ने मोदी शासन के कोबरे की विषग्रंथि निकाल दी है?
स्मृति ईरानी की पूरी राजनीति राहुल गांधी के खिलाफ ही विकसित हुई है। जिन्होंने हमेशा राहुल गांधी का मजाक उड़ाया और अपमान किया, वे स्मृति ईरानी आज राहुल गांधी की राजनीति को गंभीरता से लेने की बात क्यों कर रही हैं?
बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार को राज्यसभा में पहली बार बहुमत मिला है तो क्या इसका वह बड़ा फायदा उठा पाएगी? लोकसभा में भी तो बहुमत होने बाद भी एक के बाद एक बिल वापस क्यों लेने पड़ रहे हैं?
क्या स्त्रियों की सुरक्षा को प्रतिद्वंद्वी राजनीति और सांप्रदायिक, हिंसक विमर्श के सहारे छोड़ देना चाहिए या उसके लिए किसी नई किस्म की राजनीति की दरकार है?
किसी अपराध के अपराधी को अदालत की चौखट पर ले जाने से पहले ही ‘बुलडोज़र न्याय‘ से क्यों गुजरना पड़ रहा है? ये बुलडोज़र किसी का मकान या प्रतिष्ठान तोड़ने से पहले क्या न्याय व्यवस्था को मलबा नहीं बना देते हैं?
बहुत सारे लोग शायद साठ साल पहले के वृंदावन की कल्पना नहीं भी कर पाएँ! मैं यहाँ सिर्फ़ उस ‘कुंज’ या ‘निधि वन’ की चर्चा करना चाहता हूँ जो कई छोटे-छोटे पेड़ों, लताओं से अच्छादित था।
लैटरल एंट्री से उच्च पदों पर नियुक्ति को लेकर फँसी मोदी सरकार आख़िर कांग्रेस के शासन में नियुक्तियों का हवाला क्यों दे रही है? क्या यह तुलना किसी भी रूप में सही है?