नरेंद्र मोदी ने यदि विश्वनाथ कॉरिडोर बनाने का फ़ैसला लेने के पहले होमवर्क कर लिया होता, विशेषकर काशी के निर्माण का काल, काशी की बनावट-संरचना आदि आती है तो आज यह स्थिति न बनती।
चिदंबरम पर जूता उछालने वाले पत्रकार जरनैल सिंह बता रहे हैं कि सज्जन कुमार की सज़ा उनके लिए क्या मायने रखती है। वे लिखते हैं कि इससे भारतीय न्याय व्यवस्था में उनका विश्वास लौटा है।
जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कैलाश विजयवर्गीय ने सोनिया गाँधी के लिए किया है, उससे यही सवाल खड़ा होता है कि उनके जैसे लोग क्या हिंदू संस्कारों को समझते भी हैं?
विधानसभा चुनावों के नतीजों से कांग्रेस तो उत्साह से लबरेज़ है ही, दूसरे दलोें के लोग भी राहुल गाँधी करी तारीफ़ कर रहे हैं। पर क्या वे 2019 में ब्रांड मोदी को पछाड़ पाएंगे?
जनता की समस्याओं पर ध्यान देने के बजाए योगी आदित्यनाथ का पूरा ज़ोर हिन्दू उत्थान पर केंद्रित लगता है। विधानसभा चुनाव में योगी के सहारे ध्रुवीकरण की बीजेपी की कोशिश फ़ेल हो गई।
एक साल पहले राहुल कांग्रेस अध्यक्ष बने थे। उन्होंने साबित कर दिया कि वे बेमन से राजनीति कर रहे व्यक्ति से जनता की नब्ज़ पकड़ने वाले परिपक्व नेता बन रहे हैं।
पाँच राज्यों के चुनावी नतीजे कांग्रेस के पक्ष में हैं, लेकिन कई जगहों पर कांग्रेस को भी नुक़सान हुआ है। जीत-हार पर दोनों दल जश्न और गम में न डूबें, बल्कि आगे के चुनावो के लिए सबक लें।
पाँच राज्यों में एग्ज़िट पोल के नतीजे बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। तो क्या राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नतीजों का असर लोकसभा चुनाव पर होगा?
टीवी चैनलों पर एग्ज़िट पोल की बहार है। एग्ज़िट से नतीजों के बारे में कोई तसवीर साफ़ होने की बात तो दूर, माहौल और भी पेचीदा हो गया है। क्यों, पढ़कर ख़ुद ही तय करें।
डॉ. अांबेडकर के नाम पर राजनीति करने वालों को इतना तो मालूम है कि बाबासाहेब जाति व्यवस्था के ख़िलाफ़ थे लेकिन बाक़ी चीजों पर ज़्यादातर लोग अन्धकार में हैं।
आरोपी बजरंग दल, बीजेपी और विहिप के पदाधिकारी हैं, ये भीड़ का हिस्सा थे और मरने-मारने पर उतारू थे। बुलंदशहर हिंसा से यूपी की शासन व्यवस्था पर सवालिया निशान लग गया है।