मनोहर पर्रीकर संघ के थे, लेकिन उनमें वह कट्टरता नहीं दिखती थी, जो कई अन्य में दिखाई देती है। एक मायने में वह वाजपेयी और मोदी का मिश्रण थे। वाजपेयी जैसा सबको साथ लेकर चलने का हुनर और मोदी जैसी राजनीतिक चतुराई।
अन्ना आये, अनशन आया, 2014 में नयी सरकार आयी लेकिन लोकपाल नहीं आया। पाँच साल तक ठाट से चौकीदारी चलाने के बाद अचानक मोदीजी ने इस सबसे सम्मानजनक पद को `सहकारिता आंदोलन’ में क्यों बदल दिया?
मोदी को चुनौती देने वाली विपक्षी पार्टियाँ उन मुद्दों को उठाना भूल गई हैं जिन पर लोकसभा का चुनाव होना चाहिए था और उनके भाषणों पर प्रतिक्रिया देने की ड्यूटी निभा रही हैं।
सवाल यह है कि क्या भारतीय विमानों ने पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करने में कामयाबी पाई है। हम यही जानना चाहते हैं ताकि हम अपना मुँह मीठा कर सकें।
देश अपना काम करेगा। पर क्या देश के नेता राजनीति करने से बाज़ आएँगे? हमारा बहादुर जवान विंग कमांडर अभिनंदन जब पाकिस्तान की गिरफ़्त में थे तब नेता बेशर्मी की सारी हदें पार कर रहे थे।
सन 1831 में बालाकोट में महाराजा रणजीत सिंह के सिख लड़ाकों ने सैयद अहमद बरेलवी समेत 300 से ज़्यादा मुजाहिदीन हलाक कर दिये थे। सैयद अहमद बरेलवी शुरुआती वहाबी जिहादी थे।
सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक 2 की गई। अभी तो खेल शुरू हुआ है। अगर पाकिस्तानी कुछ और बेवक़ूफ़ी करते हैं तो दूसरे मोर्चे पर पूर्ण युद्ध की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
मेरी पहली प्रतिक्रिया उन तसवीरों को देखकर यही है, जिनमें प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी इलाहाबाद के कुम्भ में 5 सफ़ाई कर्मचारियों के पैर धो रहे रहे हैं। मेरा सवाल है कि मोदी जी ने 5 ही सफ़ाई कर्मियों के क्यों पैर धोए?
सफ़ाईकर्मी को पाँव नहीं धुलवाने हैं, उसे उनके पेशे से जुड़ी सुविधा चाहिए, नज़रिया साफ़ करिए, पाँव ख़ुद साफ़ हो जाएँगे लेकिन इसके लिए ख़ुद के पाँव ज़मीन पर रखने होंगे।
पुलवामा हमले में भारतीय ख़ुफ़िया-तंत्र की विफलता पर कोई सवाल न उठाकर, कश्मीरियों को इसका ज़िम्मेदार क्यों माना जा रहा है? उन्हें मार-पीट कर खदेड़े जाने की घटनाएँ क्यों हो रही हैं?
इस समय भारत ही नहीं, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के भी ग़ुस्से का शिकार कौन हो रहा है- पाकिस्तान। ईरान के 27 फ़ौजी जवानों को पाक आधारित आतंकी गिरोह ने मार डाला है।