प्रधानमंत्री मोदी अपने चुनावी भाषणों में भी आचार संहिता के उल्लंघन जैसी बातें कहते आए हैं लेकिन चुनाव आयोग ने एक बार भी उनके ख़िलाफ़ कोई ऐक्शन नहीं लिया है! आख़िर मोदी बच क्यों निकलते हैं?
जलियाँवाला बाग़ क़त्लेआम में 381 शहीदों में से 222 हिन्दू, 96 सिख और 63 मुसलमान थे। साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन एक साझा आंदोलन था। यह भारत के इतिहास का एक गौरवशाली सच था, लेकिन यह सब फ़ाइलों में बंद पड़ा है।
बाबा साहब का मानना था कि ‘किसी भी देश की तरक्की को उस देश की महिलाओं की तरक्की से आँका जाना चाहिए’ और इसीलिए उन्होंने देवदासियों की लड़ाई लड़ी, हिन्दू कोड बिल में महिलाओं के अधिकारों को पुनः स्थापित किया।
वायु सेना के लिए रफ़ाल विमान ख़रीद के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार साफ़ तौर पर फँसती नज़र आ रही है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने फ़ैसले में साफ़ कर दिया है कि सरकार को राहत नहीं दी जा सकती है।
आडवाणीजी आज ब्लॉग लिख कर बीजेपी और मोदी जनता पार्टी का फर्क बता रहे हैं। लेकिन ‘भावनाओं के सवाल’ को बवाल बनाने की कोशिश तो आडवाणीजी की पीढ़ी ने ही शुरू की थी।
कुछ दिन तक पहले तक जिस भारतीय मीडिया की तारीफ़ उसकी निडरता और निष्पक्षता के लिए होती थी, वह यकायक प्रधानमंत्री के सामने दीन-हीन क्यों है? क्यों उसने घुटने टेक दिए हैं?
2019 के चुनाव में अपने अनुयायियों के साथ वोट माँगनेवाले सभी नेताओं को यह याद रखना चाहिए कि हमें विरासत में मिली बहुमूल्य उपलब्धियों को सहेजना और अगली पीढ़ी को सौंपना आज के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी है।
प्रियंका गाँधी अपनी ओर ध्यान खींचने में सफल रही हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश की अपनी पहली यात्रा के समय भी, अहमदाबाद के अधिवेशन में भी, दलित नेता चन्द्रशेखर से मिलने के समय भी और प्रयाग से वाराणसी की गंगा यात्रा में भी।
आडवाणी को एक ऐसे शख़्स के तौर पर याद किया जाएगा जिसने आरएसएस की विचारधारा हिन्दुत्व को भारत की राजनीति में न केवल स्वीकार्य बनाया, बल्कि उसे मजबूती के साथ स्थापित भी किया।
अयोध्य विवाद के निपटारे के लिए बनी मध्यस्थता समिति के सामने दोनों पक्ष समझौते के लिए कितना झुकेंगे यह कहना मुश्किल है, क्योंकि आज भी वे अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए हैं।
कौन से स्वार्थ उठ खड़े होते हैं कि लोग ख़ून ख़राबे पर उतर आते हैं? क्या वे ही ये लोग हैं जो आज के दिन ढफ ढोल बजाकर फागें गा रहे थे, क्या वे ही लोग जो हर एक दरबाजे पर जाकर फगुआ ले रहे थे?
किसी भी शताब्दी के शायर हों सभी शायरों ने अवाम को सबसे ऊपर रखा और लोक संस्कृति को बनाए, बचाए रखने की जमकर पैरोकारी भी की। ख़ुद भी रंगे और जमाने को भी रंग दिया।