लोकतंत्र के लिए सत्ताधारी पार्टी का महत्व बहुत ज़्यादा है, पर विपक्ष की भूमिका भी कम नहीं है। विपक्ष के बहुत सारे नेता सत्ताधारी पार्टी में शामिल होना चाहते हैं। क्या यह देश की राजनीति के लिए सही है?
पाक की कमेटी में कई ऐसे सिख हैं, जो खालिस्तान का समर्थन करते हैं। ऐसे में डर यह है कि कहीं करतारपुर के बहाने वह खालिस्तान की माँग को फिर से उठाने की कवायद तो नहीं कर रहा।
लोकसभा में एनआईए क़ानून पेश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अगर पोटा क़ानून ख़त्म न किया गया होता तो मुंबई हमला भी न होता। यदि क़ानून बनाने से आतंकवाद से निपटा जा सकता है तो पूरी दुनिया में क़ानून क्यों नहीं बनाया जाता?
‘आर्टिकल 15’ वर्तमान भारत को न केवल झकझोरती है बल्कि उसके सामने एक ऐसा नंगा सच सामने लाकर खड़ा कर देती है जिससे सिर्फ़ आँखें ही चुराया जा सकता है। लेकिन इस फ़िल्म का संदेश क्या है? क्या ऊँची जाति ही दिला सकती है दलितों को इंसाफ़?
साक्षी मिश्रा और उनके दलित पति अजितेश के एंगल से कहानी को समझें तो यह साफ़ हो जाता है कि दोनों का ही मक़सद ख़ुद को किसी अनहोनी से बचा कर सुरक्षित ढंग से अपने प्रेम विवाह को जीने का है। साक्षी मिश्रा की कहानी में आख़िर मेरा-आपका रोल क्या है?
भारत में पश्चिमी शिक्षा की नींव रखने का श्रेय लॉर्ड मैकाले को जाता है। इस शिक्षा के कारण ही भारत में पुनर्जागरण हुआ और उसका ही नतीजा था कि भारत में अंग्रेज़ी दासता से मुक्त होने की सुगबुगाहट शुरू हुई।
‘जय श्री राम’ के नारे और गाय के नाम पर ‘भीड़ हिंसा’ की घटनाएँ एक के बाद एक क्यों लगातार बढ़ती जा रही हैं? इसका जवाब हाल की एक अमेरिकी रिपोर्ट, इस पर सरकारी रवैया और अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों में मिल जाएगा।
अगर कोई यह पूछे कि भारत में सबसे ज़्यादा पैंतरेबाज़ राजनीतिज्ञ कौन है तो शायद कुछ लोग लालू यादव का नाम लें तो कुछ मायावती या फिर मुलायम सिंह यादव को भी याद कर सकते हैं। लेकिन मोदी और केजरीवाल का क्या?
कर्नाटक और गोवा में हुए राजनीतिक घटनाक्रम ने नेताओं की कार्यशैली को लेकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। दल-बदलू विधायकों के संबंध में सख़्त क़ानून बनाया जाना चाहिए।