नोटबंदी क्या भारत की राजनीति में बोला गया सबसे बड़ा झूठ है? क्या नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुँचा दिया? 8 नवंबर को देश नोटबंदी की तीसरी बरसी झेल रहा है।
जलियाँवाला बाग़ में ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए जघन्य हत्याकांड के 102 साल हो गए। इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि भारत के राजनेताओं ने इससे क्या सीखा है और क्यों इसकी बहुलतावादी परंपरा पर ख़तरा मंडरा रहा है।
भारत ने आरसीईपी पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है। डेरी उत्पादों पर आशंका है कि देश के किसान बर्बाद हो जाएँगे। आख़िर क्यों न्यूज़ीलैंड से जैसे छोटे देश के आगे टिकने के काबिल नहीं हैं?
सस्पेंस ख़त्म हो गया है। आख़िरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैंकॉक में एलान कर दिया कि भारत आरसीईपी के समझौते पर दस्तख़त नहीं करेगा। यानी दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक सहयोग समूह में भारत शामिल नहीं होगा।
आख़िर क्यों कुछ युवकों ने महात्मा गाँधी की प्रार्थना सभा का विरोध किया। विरोध पर गाँधी प्रार्थना सभा छोड़कर चले जाते थे लेकिन अगले दिन वह फिर पहुंच जाते थे।
सरदार वल्लभ भाई पटेल पटेल ने गाँधी के सपनों का भारत बनाने की दिशा में देश के एकीकरण के लिए अथक प्रयास किये और इसीलिए उन्हें लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है।
अगर मौजूदा कामकाजी आबादी का सही उपयोग न हुआ तो देश जनसांख्यिकीय लाभांश गँवा देगा। क्योंकि देश के शहरी इलाक़े और कई राज्य चीन की तरह ही बूढ़े होने की ओर बढ़ रहे हैं।
दुनिया में मुसलमानों की आबादी भारत में सबसे ज़्यादा है पर इसलामिक स्टेट से इक्का-दुक्का ही भारतीय मुसलमान जुड़े। जबकि इंग्लैंड और दूसरे यूरोपीय देशों में काफ़ी अधिक संख्या में मुसलमान युवा इसलामिक स्टेट में शामिल हुए और आतंक का रास्ता पकड़ा।
भारत की जनता ने महाराष्ट्र, हरियाणा के चुनाव परिणाम से देश की सरकार को सबक सिखाया है कि अगर सरकार ने अपना ढर्रा नहीं बदला तो वह बग़ावती तेवर अख़्तियार कर लेगी।