नागरिकता (संशोधन) क़ानून, 2019 के जरिए आरएसएस/बीजेपी के शासकों ने संविधान की मूल-आत्मा, देश के लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष चरित्र और उसकी बुनियाद पर गहरा आघात किया है।
प्याज है तो सिर्फ़ सब्जी, पर जब इसे शुद्ध सनातनी विचारों से जोड़ा जाता है तो यह मामूली सब्जी नहीं रहता, यह हिन्दुत्व का प्रतीक बन जाता है। इसकी कीमत गौण हो जाती है और बचा रहता है इसका हिन्दू होना।
अगर आपको अपने घर के बाहर चार-पाँच साल का कोई बच्चा ठंड से ठिठुरता हुआ दिख जाए तो आप उसे अपने बेटे का पुराना स्वेटर देने से पहले क्या यह सोचेंगे कि वह किस धर्म या जाति का है?
हैदराबाद एनकाउंटर को जिस तरह समाज के विभिन्न तबक़ों का व्यापक समर्थन मिला, वह दरअसल एक तरह से हमारी न्याय व्यवस्था पर कठोर टिप्पणी है। इसका क्या होगा असर?
रुढ़िवादी, कट्टर धार्मिक सोच के पिछड़े लोगों ने फ़िरोज़ ख़ान को संस्कृत पढ़ाने के योग्य क्यों नहीं माना? क्या भाषा किसी धर्म और जाति में बँधी हुई है? ऐसे में क्या कोई भाषा ज़िंदा रह पाएगी?
नागरिकता विधेयक पर बहस के दौरान देश के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि यह कांग्रेस थी जिस ने देश को धर्म के आधार पर विभाजित कराया, हमने नहीं। क्या यह सफेद झूठ नहीं है?
महिलाओं की आज़ादी के पैरोकार आम्बेडकर के देश में कभी हैदराबाद तो कभी उन्नाव तो कभी कहीं और महिलओं के बलात्कार व हत्याओं के मामले सामने आ रहे हैं। आम्बेडकर क्या ऐसा भारत बनाना चाहते थे?
नागरिकता संशोधन विधेयक पर हंगामा क्यों? अगर बीजेपी अखंड भारत की बात करती है तो पड़ोसी देशों से आए किसी भी धर्म के शरणार्थी को उसी अखंड भारत का हिस्सा माना जाना चाहिए, फिर धर्म के आधार पर भेदभाव क्यों?