तो क्या नागरिकता क़ानून और एनआरसी मोदी-शाह के काम नहीं आया? क्या झारखंड की जनता ने बीजेपी की राष्ट्रवाद-हिंदुत्व की नीति को नकार दिया है? क्या आर्थिक मसले चुनावों में ज़्यादा हावी हो रहे हैं? क्या बीजेपी के नेताओं का अहंकार ले डूबा?
सरकारों को उच्चतम न्यायालय की व्यवस्थाओं के मद्देनर आन्दोलनों के दौरान सार्वजनिक तथा निजी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने वालों की पहचान करके उनसे इसकी वसूली करनी चाहिए।
नागरिकता क़ानून को लेकर चल रहे जोरदार विरोध के अलावा अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी हालात ठीक नहीं हैं। लोगों में ग़ुस्सा है और नरेंद्र मोदी को इसे समझने की ज़रूरत है।
करोड़ों लोगों को किन दस्तावेज़ों के बूते लाइनों में लगकर अपनी ‘भारतीयता’ साबित करने को कहा जा रहा है? नोटबंदी में तो वे दूसरों के ’काले को’ लाइनों में लगकर सफेद कर रहे थे।
गृह मंत्री अमित शाह के ज़ोर देकर यह बोलने के बाद कि पहले वह नागरिकता क़ानून में संशोधन करेंगे और उसके बाद पूरे देश में एनआरसी लागू करेंगे, यह विवाद बढ़ा।
क्या मोदी सरकार भारत देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की तैयारी मैं है? इस सवाल से कुछ लोग चौंकेंगे, कुछ ख़ुश होंगे तो कुछ निराश। यह एक सवाल है जिसका इंतज़ार लंबे समय से संघ परिवार कर रहा था।
देश के पंद्रह से भी ज्यादा राज्यों के विभिन्न शहरों में बीस से भी अधिक बड़े विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा से संबंधित प्रतिष्ठित संस्थानों के छात्र सड़कों पर निकल आए हैं।
बीजेपी तीन तलाक़, अनुच्छेद 370, अयोध्या मामला, एनआरसी और नागरिकता क़ानून जैसे मुद्दे को ज़ोर-शोर से क्यों उठाती रही है? क्या ये सभी सत्ताधारी बीजेपी के हिंदू एजेंडे का हिस्सा नहीं हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने जामिया विश्वविद्यालय में हुई पुलिसिया कार्रवाई पर सुनवाई करने से इनकार क्यों कर दिया, यह कहते हुए कि जब तक उपद्रव नहीं रुकेगा, वह सुनवाई नहीं करेगा?
राष्ट्रपति की मुहर लगते ही नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 अब क़ानून बन चुका हैI लेकिन ग़ैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारें विरोध कर रही हैं तो केंद्र सरकार इसे कैसे लागू करा पाएगी?