प्रधानमंत्री ने समूचे देश को आश्चर्यचकित करते हुए भाव-विभोर कर दिया। जनता इस तरह से भावुक होने के लिए तैयार ही नहीं थी। पिछले छह-सात सालों में ‘शायद’ पहली बार ऐसा हुआ होगा कि 130 करोड़ लोगों से उन्होंने अपने ‘मन की बात’ इस तरह से बाँटी होगी।
लॉकडाउन की घोषणा के बाद से ही महानगरों से गाँवों की ओर लोगों का पलायन लगातार जारी है। पलायन के दृश्यों को देखकर 1947 के भारत के विभाजन का समय याद आता है।
लॉकडाउन के कारण महानगरों को छोड़कर जा रहे मजदूरों की खिल्ली उड़ाने वाले लोग दंभ से भरे हुये हैं। शायद ये भूल गये हैं कि इन महानगरों को इन्हीं लोगों ने खड़ा किया है।
ऐसे समय में जब देश कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण बेहाल है, दिहाड़ी मजदूरों की कमर टूट चुकी है, मंत्रियों का रामायण देखते हुये फ़ोटो ट्वीट करना क्या जायज है?
कोरोना महामारी ने भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर फिर से ग़ौर करना आवश्यक बना दिया है। अभी भी भारत कोरोना के दूसरे स्टेज में ही है। कोरोना की तबाही को कैसे झेले पाएगी पहले से ही चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था?
दिल्ली के आसपास के शहरों में कमाई के अवसर शून्य हो जाने के बाद गाँव की तरफ़ पैदल जाने वालों का रेला इंसानियत को चुनौती दे रहा है। इतनी लम्बी दूरी पैदल तय करने की योजना बनाना इस बात का साफ़ सबूत है कि दिल्ली में रहना असंभव हो गया है।
एक बार फिर से चीन की चर्चा ज़ोरों पर है। चीन को गरियाने का काम लोग खुले दिल से कर रहे हैं। जैसे कि इस समय हमने कोरोना के बहाने उसे फिर से कोसना शुरू कर दिया है।
केंद्र सरकार ने असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों, दिहाड़ी मज़दूरों और शहरी तथा ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले ग़रीबों के लिए एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ के पैकेज की घोषणा की है।
कोरोना को देखते हुए 21 दिन का लॉकडाउन/कर्फ्यू है। ऐसे में कंपनियों के साथ मज़दूर वर्ग और समाज के कमज़ोर तबक़े को इस दौरान आंशिक मदद पहुँचाने की कवायद में केंद्र व राज्य सरकारों ने कई घोषणाएँ की हैं। ये कितनी कारगर होंगी?
हम भारतीय बड़े ख़ुशक़िस्मत हैं कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मैं कोई मोदी का भक्त हूँ। मैं इसलिए कह रहा हूँ कि मोदी जी ग़रीबी में पले और बड़े हुए हैं।