जमाते-तब्लीग़ी का दोष बिल्कुल साफ़-साफ़ है लेकिन इसे हिंदू-मुसलमान का मामला बनाना बिल्कुल अनुचित है। लेकिन मौलाना साद ने अपनी करतूतों के लिए पश्चाताप नहीं किया और माफ़ी नहीं माँगी है।
जिन सवालों के जवाब माँगे जाने चाहिए उन्हें कोई पूछने की हिम्मत भी नहीं कर रहा है, विपक्ष भी नहीं। और जो कुछ कभी पूछा ही नहीं गया उसके जवाब हर तरफ़ से प्राप्त हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने दिये जलाने का आह्वान तो कर दिया लेकिन उन्होंने डॉक्टर्स-नर्स को ज़रूरी चीजों के मुद्दे पर, लॉकडाउन से ग़रीबों को हुई परेशानी के बारे में बात क्यों नहीं की।
84,000 लोगों पर एक आइसोलेशन बेड, 36,000 लोगों पर एक क्वरेंटाइन बेड, प्रति 11,600 भारतीयों पर एक डॉक्टर और 1,826 भारतीयों के लिए अस्पताल में एक ही बेड। ऐसे में कोरोना से कैसे निपटेंगे?
कोरोना वायरस संक्रमण के ख़तरे के चलते जारी लाॅकडाउन की वजह से रामनवमी बिना किसी राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक शोरशराबे, भीड़भाड़ और कर्मकांडी तामझाम के मनी।
बिहार की इतनी बड़ी आबादी के लिए सिर्फ़ तीन जगह कोरोना वायरस के जाँच के इंतज़ाम हैं। आरएएमआरआई, आईजीएमएस और दरभंगा मेडिकल कॉलेज। आँकड़े कहते हैं कि प्रति एक लाख आबादी पर सिर्फ़ तीन लोगों की जाँच की सुविधा है।