मुरादाबाद के एक मोहल्ले में स्वास्थ्य कर्मियों और पुलिसवालों पर कुछ मुसलमानों ने हमला कर दिया। कुछ ही समय पहले इंदौर में भी ऐसी ही घटना हुई थी। तब भी इसे मुसलमानों को एक जाहिल वर्ग की हरकत मान कर निन्दा की गयी थी।
देश में एक के बाद एक लॉकडाउन लागू किये जा रहे हैं। क्या हमारी केंद्र व राज्य सरकारें सिर्फ़ लॉकडाउन के भरोसे कोरोना से लड़ाई जीतने की उम्मीद लगाये बैठी हैं।
पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेने वाली कोरोना वायरस महामारी भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों की जेलों में बंद कैदियों के लिये वरदान साबित हो रही है।
समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है कि राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री के चौथे सम्बोधन के बाद भी उम्मीदों की रोशनी किस तरह से ढूँढी जानी चाहिए? तीन सप्ताह के ‘लॉकडाउन’ को लगभग तीन सप्ताह (19 दिन) और बढ़ा दिया गया है।
आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर (14 अप्रैल 1891 से 6 दिसंबर 1956) ने भारत की एकता और अखंडता का सपना देखा। उनका मानना था कि जातिवाद और जातीय घृणा की वजह से देश का पतन हो रहा है।
केंद्र सरकार के दफ्तरों में मंत्री लोग और बड़े अफ़सर दिखाई पड़े हैं, उससे आप पक्का अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अब यही साहस राज्यों की सरकारें भी दिखाना शुरू कर देंगी।
देश को आहिस्ता-आहिस्ता ‘लॉकडाउन’ से बाहर निकालने की तैयारियाँ चल रही हैं। महामारी से जूझने के दौरान चारों ओर हृदय-परिवर्तन की जो लहर दिखाई दे रही है वह क्या स्थाई होने जा रही है।
राजीव गाँधी जब प्रधानमंत्री थे तो एक दिन वो काम करके घर लौटे और टीवी देखने लगे। दूरदर्शन पर चलनेवाले कार्यक्रमों से उनको निराशा हुई। फिर उन्होंने रामायण, महाभारत जैसे कार्यक्रम शुरू करने की सलाह दी।
5 मार्च 2020 से ले कर 11 अप्रैल 2020 तक विश्वविद्यालयों को जारी पत्रों ने यह साफ़ किया है कि भारतीय विश्वविद्यालयों को शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि सरकार की मात्र एजेंसी समझा जा रहा है।
कोरोना वायरस पर काबू पाने की तैयारियों पर प्रधानमंत्री की राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग में केरल मॉडल पर सहमति बन रही है। अगर ऐसा होता है तो क्या मार्क्सवादी मुख्यमंत्री के केरल मॉडल को प्रधानमंत्री मोदी अपनाएँगे?
अंदाज़ लग रहा है कि तालाबंदी अभी दो सप्ताह तक और बढ़ सकती है। इस नई तालाबंदी में कहाँ कितनी सख्ती बरती जाए और कहाँ कितनी छूट दी जाए, यह भी सरकारों को अभी से सोचकर रखना चाहिए।
कोरोना का संकट तो देर-सबेर टल ही जाएगा। हो सकता है लाखों या फिर करोड़ों लोगों की जान लेकर ही कोरोना देवी का ग़ुस्सा शांत हो। लेकिन क्या कोरोना के बाद की दुनिया वैसे ही रहेगी जैसी कोरोना के पहले थी?