समाज की सोच किस तरह से बदलती है, इसका एक अच्छा उदाहरण मशहूर लेखक, उपन्यासकार और नाटककार रोम्यां रोलाँ से जुड़ा है, जिन्हें 1918 में स्पैनिश फ्लू की महामारी ने दबोच लिया था।
धर्म विश्वास और दिव्य रहस्योद्घाटन पर निर्भर है जबकि विज्ञान प्रयोग और तर्क पर निर्भर है। अगर हमें प्रगति करनी है तो हमें धर्म छोड़कर विज्ञान को अपनाना चाहिए।
अब प्रधानमंत्री मोदी के जिगरी यार डोनल्ड ट्रम्प के देश से भी कड़ी टिप्पणी आ गई है। अमेरिकी संस्था यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम ने अपनी रिपोर्ट में भारत में मुसलमानों के उत्पीड़न पर चिंता ज़ाहिर की है।
हिटलर के नाज़ी मंत्री गोएबल्स का एक सिद्धांत था 'जितना बड़ा झूठ होगा, वह उतनी ही आसानी से जनता द्वारा निगला जाएगा'। क्या भारतीय अधिकारियों का एक बड़ा वर्ग और हमारे ज़्यादातर बेशर्म और बिके हुए भारतीय मीडिया गोएबल्स के वफादार शिष्य हैं?
लॉकडाउन के कारण जब अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट है, ऐसे समय में प्रधानमंत्री का कहना है कि हमारी अर्थव्यवस्था अच्छी है, उनके इस बयान का क्या आधार है, कुछ पता नहीं।
दुनिया आज जब कोविड-19 की महामारी से जूझ रही है तब उसके पास मानवता की रक्षा के लिए जन-जन की सेवा करने वाला न कोई महात्मा गाँधी है और न ही कोई मदर टेरेसा।
केंद्र सरकार ने कर्मचारियों के महँगाई भत्ते पर क़रीब डेढ़ साल के लिए रोक लगा दी। पेंशनरों को भी नहीं छोड़ा। मगर अब जब बड़े दौलतमंदों पर टैक्स लगाने का सुझाव दिया गया तो वह बौखलाई हुई है।
यदि समय रहते चुनाव करवाने के एक संवैधानिक प्रावधान को लॉकडाउन में टाला जा सकता है तो फिर मुख्यमंत्री के विधायक होने की शर्त को निलम्बित क्यों नहीं किया जा सकता?