भीकाजी कामा को हम यूरोप में रहकर राष्ट्रवादी मुहिम चलाने और सभी तरह के क्रांतिकारियों को एक झंडे तले लाने वाली शख्सियत के रूप में जानते हैं, लेकिन उनके जीवन में प्लेग की महामारी ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
कोरोना संकट की आड़ में जैसे श्रम क़ानूनों को लुगदी बनाया गया, क्या वैसा ही सलूक अब न्यायपालिका के साथ भी होगा? फिर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता क्यों कह रहे हैं कि देश के 19 हाईकोर्ट के ज़रिये ‘कुछ लोग समानान्तर सरकार’ चला रहे हैं?
देश के गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के ‘साठ साल पर मोदी के छह साल भारी’ कहकर पीठ थपथपाई है। मोदी सरकार के छह सालों का सफर देखें तो वह ‘अच्छे दिन के नारे से शुरू होकर आत्मनिर्भर बनने के नारे’ तक पहुँची है।
सरकार ने ऐसी घोषणा की है जिसे तालाबंदी का ख़ात्मा भी समझा जा सकता है और जिसे किसी न किसी रूप में तालाबंदी का जारी रहना भी माना जा सकता है। सरकारें और जनता, दोनों दुविधा में पड़े हैं कि अब तालाबंदी हट गई है या जारी है?
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण क्यों कहने लगीं कि प्रवासी मज़दूरों से सम्बन्धित कोई आँकड़ा देश में है क्या? वह कहती हैं कि बग़ैर आँकड़ों के सरकार ये कैसे तय कर सकती है कि उसे किन-किन लोगों तक मदद पहुँचानी है?
कुछ दिनों की तल्खियों के बाद चीन और नेपाल ने ने सीमा-विवाद के मामले में अपना रवैया नरम किया है। इन दोनों देशों के प्रति भारत सरकार का रवैया दृढ़ लेकिन संयमपूर्ण रहा है।
गुज़रे रविवार डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कोविड सम्बन्धी बायो मेडिकल कचरे के निबटान का विवरण माँगा है। उनका कहना है कि कचरे का निबटान ठीक से नहीं हो पा रहा है।
भारत और चीन के बीच मध्यस्थता की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की बुधवार को की गई पेशकश को इसलिये हलके में नहीं लिया जाना चाहिये कि वह नादानी में अक्सर ऐसा बोलते हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि नेहरू को अपने जीवनकाल में तो जनता से बेशुमार प्यार और सम्मान मिला लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनकी लगातार अनदेखी होती गई और उनकी प्रतिष्ठा में कमी आई।
बिहार की पंद्रह-वर्षीय बहादुर बालिका ज्योति कुमारी पासवान के अप्रतिम साहस और उसकी व्यक्तिगत उपलब्धि को अब सत्ता प्रतिष्ठानों से जुड़े हुए लोग लॉकडाउन की देन बताकर उसे सम्मानित और पुरस्कृत करना चाह रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि उन्हीं राज्यों में श्रमिकों को काम करने के लिए वापस भेजा जाएगा जो मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देंगे। क्या वह सच में मज़दूरों के लिए चिंतित हैं?