हिंदी के प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का आज जन्मदिन है। 23 सितंबर 1908 को जन्मे दिनकर की किताब ‘संस्कृति के चार अध्याय’ हर भारतीय को पढ़नी चाहिये। यह किताब भारत की सांस्कृतिक यात्रा है।
भारत में सरकारी शिक्षा, स्वास्थ्य, दूरसंचार और उड्डयन क्षेत्र के डूबने का भरपूर उदाहरण हमारे सामने है। सरकारी क्षेत्र में कमियाँ होती हैं, लेकिन प्राइवेट के आने से पहले और बाद में इन्हें और बढ़ाया जाता है।
कृषि विधेयकों पर राज्यसभा में समूची सरकार फँसी हुई थी, ऐसे में हरिवंश उसके संकटमोचक बन कर उभरे हैं। उन्होंने सदन की तरफ़ बिना आँख उठाए एक झटके में उस सरकार को उबार दिया जिसकी साँस अटकी हुई थी। यह कोई मामूली बात तो नहीं है।
गांधी के अनुयायियों ने उन्हें अलौकिक और देवदूत के रूप में प्रचारित किया था। गांधी जी को महात्मा और संत जैसी उपाधियाँ दी गयीं। इसका व्यापक प्रभाव भी हुआ।
नाम का चुनाव हर जगह आसान नहीं है। दुनिया के अलग-अलग देशों में कई नामों पर पाबंदी है और नागरिकों को अपना या अपने बच्चों का नाम रखने से पहले सरकार द्वारा प्रतिबंधित नामों की सूची को देखना होता है।
जस्टिस अजीत प्रकाश शाह ने जस्टिस सुरेश शाह मेमोरियल लेक्चर देते हुए एक आलेख पढ़ा, 'सुप्रीम कोर्ट का पतन, भूली हुई आज़ादी और घटे हुए अधिकार'। पेश है उसके मुख्य अंश का अनुवाद।
शिया-सुन्नी मतभेदों को बढ़ाने में जहां पश्चिमी ताक़तें सक्रिय रहती हैं, वहीं समय-समय पर अरब हुकूमत या अरब द्वारा प्रसारित वहाबी विचारधारा ने भी कई बार जलती आग में घी डालने का काम किया है।
बीजेपी- शासित राज्यों में इस तरह की नफ़रत फैलाने में पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने भी अहम भूमिका निभाई। विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपील जारी करनी पड़ी कि इस महामारी को किसी धर्म, संप्रदाय और नस्ल विशेष से जोड़ कर न देखा जाए।
एक तरफ संसद में रक्षा मंत्री और गृहराज्य मंत्री के बयान और दूसरी तरफ चीनी विदेश मंत्रालय का बयान, इन सबको एक साथ रखकर आप पढ़ें तो आपको पल्ले ही नहीं पड़ेगा कि गलवान घाटी में हुआ क्या था?