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शाह और खेर में जूतम-पैजार, दोनों ने एक-दूसरे पर की घटिया टिप्पणी

सत्ताधारी दल की नीतियों का विरोध करना क्या ईश निंदा है? यह सवाल खड़ा किया है प्रसिद्ध सिने अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने। उन्होंने कहा, ‘मुझे इस माहौल से डर नहीं लगता बल्कि ग़ुस्सा आता है।’ नसीरुद्दीन शाह ने अपने इस ग़ुस्से की वजह देश के विश्विद्यालयों में विद्यार्थियों पर हो रहे हमले और नागरिकता संशोधन क़ानून, नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) का विरोध करने वाले लोगों के ख़िलाफ़ हो रही पुलिसिया कार्रवाई तथा फ़िल्मों के माध्यम से एक अलग तरह का पॉलिटिकल नैरेटिव थोपने की बात एक वेबसाइट को दिए गए साक्षात्कार के दौरान कही। 

अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, जैसी फ़िल्मों में राजनीतिक हालात पर सवाल खड़े करने वाले नसीरुद्दीन शाह ने 'रील लाइफ़ से हटकर रियल लाइफ़' में देश के वर्तमान राजनीतिक हालात पर बयान दिया तो उस पर प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक ही था। 70 और 80 के दशक में देश की सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं से सरोकार रखने वाली तथा उन पर सवाल खड़ा करने वाली फ़िल्में जिन्हें 'कला फ़िल्मों' का आंदोलन कहा जाता है, में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नसीरुद्दीन शाह ने फ़िल्म इंडस्ट्री के लोगों को भी कठघरे में खड़ा किया है। शाह ने पूछा है कि 'वे अपनी फ़िल्मों के जरिये कौन सा इतिहास लिखने की कोशिश कर रहे हैं।’ 

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शाह ने इतिहास की पृष्ठभूमि पर बनने वाली इन फ़िल्मों को 'फ़िक्शन' का दर्जा देते हुए कहा कि ये समाज को गुमराह करने का काम ज्यादा कर रही हैं। फ़िल्म इंडस्ट्री के बड़े नायक या महानायकों की इस मुद्दे पर चुप्पी पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कभी अपने साथी कलाकार रहे अनुपम खेर के ट्वीट्स के बारे में कहा कि उन्हें गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, वह एक जोकर जैसे हैं। शाह ने कहा था कि एनएसडी और एफ़टीआईआई का कोई भी उनका समकालीन यह बात कह सकता है कि खेर का व्यवहार चापलूसी भरा है और यह उनके खून में है। 

नसीरुद्दीन शाह ने फ़िल्म इंडस्ट्री में चल रहे आतंरिक द्वंद्व पर भी बयान दिया। उन्होंने कहा कि इस माहौल में ‘अच्छा सृजन’ क्यों नहीं हो रहा है। अच्छी कृतियाँ और साहित्य इस माहौल से निकलकर आना चाहिए जो हकीकत को आम जनता के समक्ष लाये। 

यह पहला अवसर नहीं है जब नसीरुद्दीन शाह ने अपने ग़ुस्से का इजहार किया है। दिसंबर, 2018 में भी उन्होंने देश में मॉब लिंचिंग में मारे जा रहे लोगों पर चिंता ज़ाहिर की थी। नसीर ने कहा था कि ऐसा माहौल देखकर उन्हें चिंता होती है कि कहीं उनकी औलाद से कोई यह न पूछ दे कि वे हिन्दू हैं या मुसलमान। उन्होंने कहा था, ‘मेरे बच्चे ख़ुद को क्या बताएंगे क्योंकि उन्हें तो धर्म की तालीम ही नहीं दी गई।’ नसीरुद्दीन के इस बयान पर उस समय भी हंगामा खड़ा हो गया था। 

पाकिस्तान जाने की दी थी सलाह

बीजेपी के राज्यसभा सांसद तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े राकेश सिन्हा ने ट्वीट कर कहा था, ‘नसीरूद्दीन शाह भी भारत को बदनाम करने वाले गैंग में शामिल हो गये हैं, कौन सा देश आपके लिए अधिक सुरक्षित है और 80% हिंदुओं ने आपका धर्म नहीं देखा, आपको शौहरत दी, आपने अटूट धन कमाया पर अब देश को बदनाम करने की साज़िश का हिस्सा बन रहे हैं।’ सोशल मीडिया पर कई लोग नसीर को पाकिस्तान चले जाने की सलाह देने लगे थे। इस बार भी उनके बयान को लेकर विवाद खड़ा हो रहा है क्योंकि उन्होंने सत्ताधारी दल के ‘विरोध को बर्दाश्त नहीं करने वाली’ नीति पर हल्ला बोला है। 

शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाया और कहा कि वह विद्यार्थियों की बातें क्या इसलिए नहीं समझ पा रहे हैं क्योंकि वह कॉलेज नहीं गए?
नसीरुद्दीन शाह ने इस बात पर चिंता जताई की विद्यार्थियों के साथ जानवरों की तरह व्यवहार किया जा रहा है। हमने हाल में देखा है कि नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध करने वाले लोगों के ख़िलाफ़ सत्ताधारी दल का कोई भी नेता खड़ा होकर गोली मार देने, देश से निकाल देने जैसे बयान देने लगता है। 
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इसके बाद अनुपम खेर ने पलटवार किया और एक वीडियो जारी कर उन्हें जवाब दिया। खेर ने कहा, ‘मैं आपको और आपकी बातों को सीरियसली नहीं लेता। मैंने कभी आपकी बुराई नहीं की लेकिन अब कहना चाहूंगा। आपने इतनी कामयाबी मिलने के बाद भी पूरी जिंदगी हताशा में गुजारी है। अगर आप दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, शाहरुख खान और विराट कोहली की आलोचना कर सकते हैं तो मुझे लगता है कि मैं फिर सही कंपनी में हूं।’

खेर ने आगे कहा, ‘इनमें से किसी ने भी आपके बयान को गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि हम सब जानते हैं कि वर्षों से आप जिन पदार्थों का सेवन करते हैं, उनकी वजह से क्या सही है और क्या गलत आपको इसका अंतर ही नहीं पता चलता।’ उन्होंने आगे कहा, ‘और आप जानते हैं मेरे खून में क्या है? मेरे ख़ून में है हिंदुस्तान, इसे समझ जाइए बस।’
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संजय राय
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