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क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा का चुनाव हार रहे हैं? यह सवाल काफ़ी लोगों को नागवार गुज़रेगा पर इस सवाल को पूछने का सही वक़्त आ गया है। इसका कारण है मोदी का वह बयान जिसमें वह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के पिता राजीव गाँधी पर भद्दी टिप्पणी करते हैं। ऐसी टिप्पणी जिसकी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति से उम्मीद नहीं की जाती। मोदी, राहुल गाँधी पर तंज कसते-कसते सारी मानवीय सीमायें लाँघ जाते हैं। एक रैली में वह कहते हैं - ‘आपके पिताजी को आपके राज-दरबारियों ने गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था। लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नम्बर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया।’ मोदी यह बात बोफ़ोर्स कांड के संदर्भ में कह रहे थे।
बोफ़ोर्स कांड में राजीव गाँधी पर आरोप लगा था कि उन्होंने 64 करोड़ की दलाली खायी थी। इस आरोप पर 1989 का चुनाव लड़ा गया और 1984 में चार सौ से अधिक सीटें जीतने वाली कांग्रेस चुनाव हार गयी। राजीव गाँधी सरकार से बाहर हो गये। दलाली का यह आरोप आज तक साबित नहीं हो पाया। अदालत से उन्हें क्लीन चिट मिल गयी। लेकिन बोफ़ोर्स का दाग राजीव गाँधी पर ऐसा चिपका कि फिर कभी नहीं छूटा।
1991 में राजीव गाँधी की मौत के बाद भी यह कलंक रह-रह कर नेहरू-गाँधी परिवार को सालता रहता है और बीजेपी बोफ़ोर्स की आड़ में कांग्रेस और वह भी ख़ासतौर पर नेहरू-गाँधी परिवार पर तीख़ा से तीख़ा हमला करने से नहीं चूकती। लेकिन मोदी की मौजूदा टिप्पणी एक घटिया टिप्पणी है और यह हिंदू संस्कृति या फिर भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खाती।
वैचारिक मतभेद के बावजूद यह कहा जाता है कि निजी टिप्पणियों से बचना चाहिये। आलोचना से कोई नहीं रोकता। पर व्यक्तिगत होकर हमला करना भारतीय परंपरा का हिस्सा नहीं है।
राजीव गाँधी से मैं एक बार मिला हूँ। वह जब राजनीति में आये थे, तब मैं कॉलेज में था। बेहद ख़ूबसूरत व्यक्तित्व के धनी। एक नौजवान शख़्स। पायलट थे। राजनीति में कभी नहीं आना चाहते थे। छोटे भाई संजय गाँधी की असमय मौत के बाद माँ इंदिरा के आग्रह को वह टाल नहीं पाये। तब सोनिया गाँधी ने राजीव के राजनीति में आने का पुरज़ोर विरोध किया था।
सोनिया ने राजीव को राजनीति में जाने से रोकने की बहुत कोशिश की पर अंत में जब उन्होंने देखा कि राजीव गाँधी माँ इंदिरा और उनके बीच बुरी तरह से बिख़र गये हैं तो मजबूरन उन्हें राजनीति में जाने का राजीव का फ़ैसला मानना पड़ा।
राजीव गाँधी को जो प्यार देश की जनता ने दिया और जिस तरह से उनको हाथों-हाथ लिया वैसा बहुत कम राजनेताओं को नसीब होता है। यहाँ तक कि जब राजीव प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार अमेरिका गये थे तो अमेरिकी जनता ने उनकी तुलना जान एफ़ कैनेडी से की थी। तब किसे मालूम था कि कैनेडी की तरह राजीव भी असमय मौत का शिकार हो जाएँगे।
1989 में राजीव चुनाव हार गये। वीपी सिंह बेहद चालाक नेता थे। उन्होंने अपने मित्रों के ज़रिये मीडिया में राजीव गाँधी की मिस्टर क़्लीन इमेज पर दाग लगवाये और देखते-देखते देश को यक़ीन हो गया कि राजीव गाँधी ने बोफ़ोर्स में दलाली खायी है।
राजीव की मौत एक बड़ा हादसा थी। तमिल आतंकवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे) के आत्मघाती दस्ते ने 1991 के बीच चुनाव में राजीव गाँधी की हत्या कर दी। मोदी इस हत्या का ज़िक्र कर रहे हैं जब वह कहते हैं कि राजीव भ्रष्टाचारी नंबर एक के तौर पर मरे। जब राजीव की मौत हुई तब उनपर भ्रष्टाचार के आरोप थे। पर इस घटना के तीस साल बाद जबकि कुछ भी साबित नहीं हो पाया है, तब इन शब्दों का प्रयोग करना देश के प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता।
सबसे बड़ी बात यह कि जिस तरह के शब्दों का चयन मोदी ने किया है वह तो और भी अशोभनीय है। वह एक साथ न केवल राजीव गाँधी को भ्रष्टाचारी बता रहे हैं बल्कि उनकी मौत का भी मजाक उड़ा रहे हैं। नहीं, मोदी जी, आपकी भाषा न केवल ग़लत है बल्कि घटिया भी है।
मोदी ने कहा, “मेरी छवि को ख़राब कर, मुझे छोटा साबित कर ये लोग एक अस्थिर और कमजोर सरकार देश में बनाना चाहते हैं।” उनके इस बयान से स्पष्ट है कि वह अपनी छवि पर लगे दाग से परेशान हैं और उन्हें लग रहा है कि यह उनके लिये घातक हो सकता है। यानी वह चुनाव हार भी सकते हैं।
मोदी लोगों को डरा रहे हैं कि अगर वह हारे तो देश में एक कमजोर सरकार आयेगी। जो ज़्यादा दिन नहीं चलेगी। आत्मविश्वास से भरा नेता कभी भी चुनाव के मौक़े पर इस तरह की भाषा का प्रयोग नहीं करता।
1 मई को मोदी मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में एक रैली में बोल रहे थे। इस दौरान वह बोलते-बोलते बोल गये - “सोचिये, कांग्रेस वालों को आपके मोदी से इतनी नफ़रत हो गयी है कि वे मोदी को मारने तक के सपने देखने लगे हैं।” अपनी मौत का ज़िक्र कोई नेता तभी करता है जब वह अंदर से बुरी तरह से बेचैन हो, उद्विग्न हो और उसे जनता का दिल जीतने या वोट लेने के लिये कोई और रास्ता या उपाय न सूझ रहा हो।
नेता जब हारने लगते हैं तो अक़सर या तो वे माफ़ी माँगने लगते हैं या फिर ये कहते फिरते हैं कि यह उनका आख़िरी चुनाव है। नेताओं को जनता को भावनात्मक तरीक़े से ब्लैकमेल करने का यह सबसे कारगर हथियार लगता है, ख़ासतौर पर उन नेताओं को जो जनता में लोकप्रिय रहे हों।
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