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काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर से हिंदू राष्ट्र का उदय?

देश के नागरिकों में अब यह जिज्ञासा प्रबल हो जाना चाहिए कि वे अपने प्रधानमंत्री को किस तरह के भारत-निर्माता के रूप में याद करना और उनके शासनकाल में पुनर्लिखित किस तरह के इतिहास को अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के हाथों में सौंपना चाहेंगे! 
श्रवण गर्ग

13 दिसम्बर, 2021 के दिन को ऐतिहासिक बनाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी का काशी विश्वनाथ कॉरिडोर अपने असंख्य हिंदू भक्तों को समर्पित कर दिया। इस अवसर पर उन्होंने कहा, "विश्वनाथ धाम का यह नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है। यह प्रतीक है हमारे भारत की सनातन संस्कृति का। यह प्रतीक है हमारी आध्यात्मिक आत्मा का। यह प्रतीक है भारत की प्राचीनता का, परम्पराओं का। भारत की ऊर्जा का, गतिशीलता का।"

कोई पाँच दशक पहले (22 अक्टूबर, 1963) ,देश के प्रथम प्रधानमंत्री और ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ के रचनाकार पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पंजाब में सतलुज नदी पर निर्मित भारत की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना राष्ट्र को समर्पित करते हुए कहा था, "मेरी आँखों के सामने एक नमूना हो जाता है ये काम, सारे हिंदुस्तान के बढ़ने का, हिंदुस्तान की एकता का। आप इसे एक मंदिर भी पुकार सकते हैं या एक गुरुद्वारा भी या एक मसजिद।" 

लगभग 284 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित तब के इस सबसे बड़े बांध के पूरा होने के पहले नेहरू तेरह बार निर्माण-स्थल पर गए थे।

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आधुनिक भारत के मंदिर!

एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक  राष्ट्र के नागरिक होने के तौर पर क्या हम यह विचार नहीं करना चाहते कि 1963 के बाद के लगभग 60 साल की विकास यात्रा के बाद आधुनिक भारत के मंदिरों के स्थान अचानक से क्यों और कैसे बदल गए? पौराणिक महत्व के मान्य स्थलों के जीर्णोद्धार/पुनरुद्धार के ज़रिए देश में धार्मिक क्रांति और आध्यात्मिक/साम्प्रदायिक पुनर्जागरण तो हो सकता है, आर्थिक-सामाजिक न्याय की कल्पना कैसे साकार की जा सकती है?

क्या भय नहीं महसूस होता कि आगे बढ़ने के स्थान पर देश को किसी ऐसे कालखंड में धकेला जा रहा है जो नागरिकों को किसी काल्पनिक मोक्ष की प्राप्ति तो करवा सकता है, साक्षात रोटी और रोज़गार नहीं दिला सकता!

सत्ता में बने रहने की लालसा

काशी-विश्वनाथ धाम की यात्रा से कोई दो सप्ताह पहले नवम्बर के अंतिम रविवार को प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने एक ऐसी बात कही थी जिस पर उन विशेषज्ञों ने भी ध्यान नहीं दिया जो अनंतकाल तक सत्ता में बने रहने की लालसा रखनेवाले शासनाध्यक्षों के मनोविज्ञान का बारीकी से अध्ययन करते हैं।

narendra modi raises kashi vishwanath temple issue for hindu nationalism - Satya Hindi

मन की बात’ कार्यक्रम में आयुष्मान कार्ड के ज़रिए इलाज करवाने वाले एक व्यक्ति ने जब मोदी को सत्ता में बने रहने का आशीर्वाद दिया तो प्रधानमंत्री ने जवाब दिया, "मुझे सत्ता में बने रहने का आशीर्वाद मत दीजिए, मैं हमेशा सेवा में जुटे रहना चाहता हूँ।"

 

सत्ता के मुक़ाबले सेवा में जुटे रहने की बात प्रधानमंत्री के किसी स्क्रिप्ट लेखक के दिमाग़ की उपज हो सकती है, इसमें संदेह है। इस बात में भी शक है कि उनके किसी सलाहकार की इतनी हिम्मत हो सकती है कि नेहरू के क़द का कोई वाक्य ऐसी शख़्सियत के मुँह से प्रकट करा दे जिसने आधुनिक भारत के मंदिरों की परिभाषा को पूरी तरह से उलट दिया है। लगता यही है कि चर्चा के दौरान किसी कमजोर क्षण में इस तरह की बात मुँह से निकल गई होगी।

देश के नागरिकों में अब यह जिज्ञासा प्रबल हो जाना चाहिए कि वे अपने प्रधानमंत्री को किस तरह के भारत-निर्माता के रूप में याद करना और उनके शासनकाल में पुनर्लिखित किस तरह के इतिहास को अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के हाथों में सौंपना चाहेंगे!

हम किनके साथ

विश्व नागरिक रूप में हम इस समय जिस कालखंड के साक्षी हैं उसमें अमेरिका, चीन, रूस, ब्राज़ील, तुर्की, सीरिया आदि देशों के शासन प्रमुख अलग-अलग तरीक़ों से इतिहास बनाने में जुटे हैं। इनमें शायद ही कोई हो जो नेहरू, तब के युगोस्लाविया के मार्शल टीटो, मिस्र के अब्दुल गमाल नासर, अमेरिका के रूज़वेल्ट या कैनेडी, ब्रिटेन के चर्चिल के क़द का हो। अपने वर्तमान प्रधानमंत्री को हम किनके साथ रखना चाहेंगे?

चिंता के साथ कल्पना की जा सकती है कि आने वाले समय में देश की मूल समस्याओं को नागरिकों द्वारा भुला दिए जाने या उनसे इस आशय का अभिनय कराने के उद्देश्य से जीर्णोद्धार के काम के लिए नए-नए धार्मिक स्थलों की खोज उन मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में कराई जाए जिन्हें वाराणसी में विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया था। 

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हिंदू राष्ट्र 

भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुत्व की अपनी महत्वाकांक्षाओं को राष्ट्रीय चेतना के अलिखित घोषणापत्र में भी तब्दील कर सकते हैं। इसमें यह भी समाहित है कि किसी नए नामकरण के साथ ‘भारत’ एक हिंदू राष्ट्र के रूप में घोषित/स्थापित कर दिया जाए। चूँकि ऐसा करना हमारा अंदरूनी मामला होगा, किसी अन्य राष्ट्र को हस्तक्षेप का अधिकार भी नहीं होगा।

तर्क दिया जा रहा है कि “दुनिया में या तो ईसाई राष्ट्र हैं या फिर इसलामी। अतः एक हिंदू राष्ट्र भी क्यों नहीं हो सकता? जिस तरह ईसाई और मुस्लिम राष्ट्रों में दूसरे धर्मों और आस्थाओं के लोग रहते हैं उसी तरह से एक हिंदू राष्ट्र में भी रह सकते हैं। दुनिया में कोई एक हिंदू राष्ट्र भी होना चाहिए! (नेपाल किसी समय एक हिंदू राष्ट्र के तौर पर जाना जाता था पर हिंदू बहुल जनसंख्या के साथ 2008 से वह एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है।”

संघ और बीजेपी अगर मोदी को ऐसे बड़े हिंदू नायक के रूप में स्थापित करने का इरादा रखते हैं, जो अठारहवीं शताब्दी की महारानी अहिल्या बाई होलकर की तरह से देश भर में मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार करने वाले हैं, तो हम राष्ट्र के एक नए युग में प्रवेश करने की कल्पना से रोमांचित भी हो सकते हैं और सिहर भी सकते हैं।

तीन कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में ‘एक नई शुरुआत करने और नए सिरे से आगे बढ़ने’ की बात कही थी। जिस समय किसान सिंधु, ग़ाज़ीपुर और टीकरी बॉर्डर से अपने घरों को लौट रहे थे, काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर से देश में एक नई शुरुआत करने के स्वर और संकेत चारों दिशाओं में गूंज रहे थे।

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