इसमें अचम्भा कैसा कि वह लड़का पिट रहा था! लड़के की उम्र मुझे पन्द्रह से सोलह साल तक लगी थी। कपड़ों से ही ग़रीब नहीं, वह अपनी शक्ल सूरत से ही दीन-हीन लग रहा था। हाँ उसे किसी भी सामान्य इंसान की तरह प्यास लगी थी। प्यासा शायद वह बहुत देर से था और प्यास की उस सीमा तक आ चुका था, जहाँ आदमी का हलक सूखने लगता है। ऐसा न होता तो वह कहीं से भी पानी पीने की जुर्रत न करता। प्यास उसे कहीं भी देखने की मोहलत नहीं दे रही थी। बस नज़र ने खुद ब खुद पानी का स्त्रोत ढूँढ लिया।
फिर क्या था, वह पागलों की तरह पानी की ओर भागा। मेरे ख़्याल में उसे पानी के अलावा कुछ और दिखाई भी नहीं दे रहा था। पानी उसे किसी नदी या तालाब में दिखा होता तो ख़ैरियत रहती। नदी तालाब अपने विस्तार के चलते बहुत उदार होते हैं। पानी उसे एक नल में दिखा। नल? नल था। उसकी निगाहों में वह नल ही अब पानी था। पानी की धारा उसके कंठ में जाती महसूस हुई। वह नल के नीचे अँजुरी लगाकर पानी पीने लगा। पेट भर पानी पिया तो जैसे ज़िन्दगी वापिस आई। तब उसने इधर उधर देखा। मगर वह नहीं देखा जो देखना चाहिये था। और देख भी लेता तो भी क्या अपनी प्यास पर उसका बस चलता?
पानी पीकर वह अपने रास्ते जाने लगा।
अनमोल सौग़ात
रास्ता वही था जहाँ से सब आते जाते हैं, जो हर राहगीर को उसके घर तक पहुँचाता है। रास्ता उसे अच्छा लग रहा था। अब तो उसने पानी भी पी लिया था, रास्ते पर चलना कठिन नहीं लग रहा था। लोग भी उसी की तरह आ जा रहे थे। उसे लगा जैसे उनमें से कोई प्यासा नहीं है। अगर कोई प्यासा हो तो वह उसे नल का पता बता सकता है। नल की जानकारी उसके पास अनमोल सौग़ात की तरह थी जिसे वह हर प्यासे को देना चाहता था और यह उसके लिये कम ख़ुशी की बात नहीं थी।
यह कच्ची उम्र का राहगीर चला ही जा रहा था कि सामने से आता एक आदमी दिखा। उसने पानी पीते हुये उसे देखा होगा। वह लड़के से पूछ रहा था- पानी पिया? लड़के ने उत्तर दिया - हाँ। और नल की ओर इशारा कर दिया। मतलब कि उसने नल से पानी पिया है। लड़के ने क्या कहा और आदमी ने क्या सुना, इसकी पड़ताल करने की ज़रूरत नहीं, वीडियो में दिख रहा है कि उस आदमी ने लड़के को पीटना शुरू कर दिया। इतना पीटा, इतना पीटा कि मैंने अपनी आँखें बन्द कर लीं। वीडियो को कैसे देखूँ!
पानी का धर्म
आँखें बन्द, मगर कब तक? जब सोशल मीडिया पर जाऊँ तभी यह आदमी लड़के की चमड़ी उधेड़ता नज़र आये। इतनी क्रूरता के साथ उस इकहरी देह के बच्चे को मारना कि कोई ढोर पशु को भी कभी नहीं पीट सकता। निर्दयता की सारी सीमाओं को लाँघ गया राक्षस जैसे वह नरभक्षी हो। लड़के की पीठ पर वार हो रहे थे और मैं दर्द से बिलबिला उठी। लड़के की बाँहें मरोड़ी जा रही थीं और मेरी मांसपेशियों में दर्द की ऐंठन पड़ने लगी। खून रिसने लगा उस किशोर की देह से और मैं खूनी धारियाँ देखकर चीखने को हुई - बस कर दरिंदे बस कर।
लड़का पढ़ा लिखा था या नहीं, उसने नहीं देखा कि नल के पानी के लिये क्या लिखा है। उसने नहीं जाना कि यह नलका हिन्दू है और वह खुद मुसलमान है। नलके का पानी हिन्दू है और लड़के, तेरी प्यास मुसलमान है।
लड़के, तू प्यासा और ऐसा प्यासा था कि नहीं देखा नलका मंदिर के पास है और मंदिर हिन्दू है। हिन्दू मंदिर के नलके के लिये सावधानी लिखी है - मुसलमान यहाँ पानी नहीं पियेंगे। बस इस असावधानी के नतीजे में तुझे सजा मिली। ऐसी सजा जिसमें देह चमड़ा कर दी जाती है।
वे जमाने कहाँ गये?
पानी? वे जमाने कहाँ गये? हाँ हमारे पूर्वजों के जमाने जब रास्तों में जगह जगह प्याऊ लगा दी जाती थी और वहाँ राहगीरों को पानी पिलाने के सिवा किसी का कोई अन्य धर्म नहीं होता था। राहगीरों को पानी पिलाना पुण्यकर्म माना जाता था। उस जमाने तरक्कियाँ कम भले रही हों, मानवीयता भरपूर थी।
यह कैसा हत्यारा समय आया है कि आदमी मनुष्य से दरिन्दा बस इसलिये बन रहा है कि तेरा धर्म मेरा धर्म करते हुये अपना ही मनुष्य धर्म भूल रहा है और आज दो चुल्लू पानी की एवज़ आदमी की जान लेने पर उतारू है। यह किस मज़हब में लिखा है कि पानी भी हिन्दू और मुसलिम होता है!
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