loader

क्या प्रधानमंत्री के बयान ने देश को मनोवैज्ञानिक रूप से हरा नहीं दिया है?

गलवान के संवेदनशील मसलों पर वक्तव्य देने के लिए प्रधानमंत्री को सलाह कौन दे रहा है! विदेश मंत्री एस जयशंकर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित कुमार डोभाल, या चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ़ बिपिन रावत या फिर गृह मंत्री अमित शाह? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं है कि प्रधानमंत्री सुनते तो सबकी हैं पर करते और कहते वही हैं जैसा कि वह चाहते हैं, जैसी कि उनकी स्टाइल और उनका ‘राजधर्म’ उन्हें अंदर से निर्देशित करता है?
श्रवण गर्ग

ज़मीनी युद्धों को जीतने के लिए हमारे पास चाहे जितनी बड़ी और ‘सशक्त’ सेना हो, कूटनीतिक रूप से हारने के लिए बस एक ‘कमज़ोर’ बयान ही काफ़ी है! क्या प्रधानमंत्री के केवल एक वक्तव्य ने ही देश को बिना कोई ज़मीनी युद्ध लड़े मनोवैज्ञानिक रूप से हरा नहीं दिया है? क्या चीन ने अपना वह लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लिया है जिसे वह हमसे लड़कर कभी भी हासिल नहीं कर सकता था? पंद्रह जून की रात हमारे बहादुर सैनिक कथित तौर पर निहत्थे भी थे और साथ ही उनके हाथ अनुशासन ने बांध भी रखे थे वरना गलवान घाटी में स्थिति 1962 के मुक़ाबले काफ़ी अलग हो सकती थी। हम अपने सैनिकों की शहादतों का बदला लेने के लिए अब क्या करने वाले हैं? क्या केवल चीनी वस्तुओं के बहिष्कार से ही हमारे सारे ज़ख़्म भर जाएँगे?

ताज़ा ख़बरें

पंद्रह जून की रात गलवान घाटी में हुई घटना के चार दिन बाद (19 जून को) विपक्षी दलों के नेताओं के साथ हुई वीडियो वार्ता में प्रधानमंत्री को यह कहते हुए प्रस्तुत किया गया कि : ‘ना वहाँ कोई हमारी सीमा में घुस आया है और ना कोई घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के क़ब्ज़े में है।’ प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के बाद बवाल मचना ही था और वह मचा भी हुआ है। पूछा जा रहा है कि अगर हमारी सीमा में कोई घुसा ही नहीं तो फिर हमारे बीस सैनिकों की शहादत कहाँ और कैसे हो गई? क्या चीन के क्षेत्र में हो गई? ऐसा है तो क्या हमने एलएसी पर वर्तमान स्थिति को स्वीकार कर लिया है?

प्रधानमंत्री के वक्तव्य के कोई घंटे भर बाद ही नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने एक बयान जारी कर दिया कि गलवान घाटी एलएसी में चीन के हिस्से वाले भाग में स्थित है। उसके बाद देर रात भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय की ओर से प्रधानमंत्री का संशोधित वक्तव्य जारी हुआ जिसमें सिर्फ़ इतना कहा गया कि : ‘ना कोई घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के क़ब्ज़े में है।’ पर तब तक जो भी क्षति होनी थी हो चुकी थी। उल्लेखनीय यह भी है कि वक्तव्य में चीन का नाम लेकर कहीं कोई उल्लेख नहीं किया गया।
प्रधानमंत्री के दूसरे कार्यकाल की पहली वर्षगाँठ जब सत्तारूढ़ दल द्वारा उपलब्धियों का भारी गुणगान करते हुए मनाई रही थी तब चीनी सैनिक सीमा पर जमा हो चुके थे। गलवान घाटी की घटना ने उनके पिछले छह वर्षों के पूरे कार्यकाल को ही लहूलुहान कर दिया।

दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम से एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि इस तरह के संवेदनशील मसलों पर वक्तव्य देने के लिए उन्हें सलाह कौन दे रहा है! क्या विदेश मंत्री एस जयशंकर, जो भारतीय विदेश सेवा में रहते हुए वर्ष 2009 से 2013 तक चीन में एक सफल राजदूत रहे, वहाँ की भाषा जानते हैं और चीनी नेताओं की ताक़त और कमज़ोरियाँ दोनों को बखूबी समझते हैं! 

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जो अटलजी के जमाने से केंद्र की राजनीति में माहिर हैं और कई महत्वपूर्ण मंत्रालय सम्भाल चुके हैं! राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित कुमार डोभाल जो 1999 के कंधार विमान अपहरण कांड में बातचीत करनेवाले तीन प्रमुख लोगों में एक थे और जिन्हें कभी भारतीय जेम्स बांड भी कहा जाता था या चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ़ बिपिन रावत या फिर गृह मंत्री अमित शाह? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं है कि प्रधानमंत्री सुनते तो सबकी हैं पर करते और कहते वही हैं जैसा कि वह चाहते हैं, जैसी कि उनकी स्टाइल और उनका ‘राजधर्म’ उन्हें अंदर से निर्देशित करता है?
विचार से ख़ास
पूछा यह भी जा रहा है कि चीनी घुसपैठ के मामले में पाँच मई से पंद्रह जून तक पैंतालीस दिनों का धैर्य प्रधानमंत्री ने कैसे दिखा दिया? पुलवामा में तो कार्रवाई तत्काल की गई थी और उसके नतीजे भी चुनाव परिणामों में नज़र आ गए थे। विपक्ष को भी घटना के चार दिन बाद विश्वास में लेने का विचार उत्पन्न हुआ। देश की जनता को तो अभी भी सबकुछ साफ़-साफ़ बताया जाना शेष है। ऐसा होने वाला है कि जनता का ध्यान लद्दाख घाटी से हटाकर किसी नए संकट के लॉकडाउन में क़ैद कर दिया जाएगा? प्रधानमंत्री के वक्तव्य के बाद सत्ता के गलियारों में इतना सन्नाटा क्यों पसरा हुआ है? महामारी के साथ बिना किसी वैक्सीन से मुक़ाबला करने वाले देश को क्या अब आत्मग्लानि से बीमार पड़ने दिया जाएगा?
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
श्रवण गर्ग
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें