मध्य प्रदेश में प्रचंड जीत दर्ज़ करने वाली भाजपा में नए मुख्यमंत्री को लेकर कवायद तेज़ हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी बड़ा दांव खेल कर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश का मुखिया बना सकते हैं। सिंधिया की ताजपोशी के साथ पार्टी नेतृत्व एक तीर से कई निशाने साधना चाहता है।
सूत्रों के मुताबिक़ भाजपा के अंतःपुर में प्रदेश का मुखिया चुनने के लिए मंथन शुरू हो गया है। चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा केंद्रीय मंत्रीगण ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जैसे प्रबल दावेदारों के नाम सामने आ चुके हैं। इस बीच वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज बयान जारी करके कह दिया है कि वह पार्टी के साधारण कार्यकर्ता हैं। पार्टी जो जिम्मेदारी सौंपेगी उसे निभाएंगे। राजनीतिक हल्का में शिवराज सिंह के बयान को उनके मुख्यमंत्री बनने के दावे से पीछे हटने के रूप में देखा जा रहा है। उधर नतीजे आने के बाद इंदौर से जीते कैलाश विजयवर्गीय के पक्ष में आवाज उठने लगी है।
विजयवर्गीय के खासमखास विधायक रमेश मेंदोला ने बाकायदा मांग की है कि कैलाश विजयवर्गीय को मुख्यमंत्री बनाया जाए। उन्होंने दावा किया है कि पूरे मध्य प्रदेश की जनता चाहती है कि इस बार कैलाश विजयवर्गीय मुख्यमंत्री बनें। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के पक्ष में भी आवाज़ उठने लगी है। एक और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी मुख्यमंत्री बनने के दावेदार हो सकते हैं लेकिन फ़िलहाल उनके पक्ष में कोई लामबंदी खुलकर सामने नहीं आई है। चुनाव के बीच उनके पुत्र के लेनदेन संबंधी वीडियो वायरल होने के बाद वे और उनके समर्थक खुल कर मुख्यमंत्री बनने के लिए सक्रिय नहीं दिख रहे हैं।
इन सब दावेदारों में से कुछ ने दिल्ली दौड़ भी लगा ली है।
इस बीच केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम पर बीजेपी आलाकमान विचार विमर्श कर रहा है। सिंधिया को मुख्यमंत्री बनकर मोदी - शाह की जोड़ी एक तीर से कई निशाने साधना चाहती है।
एक तीर कई निशाने
एक: मोदी-शाह शिवराज सिंह चौहान को पांचवीं बार मुख्यमंत्री बना कर उनके कद में ऐसा इजाफा नहीं करना चाहते जिसे भविष्य में कतरना मुश्किल हो जाए। देश में बीजेपी की तरफ़ से सबसे लंबे समय तक और सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड शिवराज सिंह पहले ही बना चुके हैं।
पांचवीं बार मुख्यमंत्री बना कर शिवराज को 2024 के प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखा जा सकता है इसलिए मोदी-शाह शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते। यद्यपि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए शिवराज जैसे लोकप्रिय नाम और चेहरे की उपयोगिता से भी बीजेपी आला कमान वाकिफ है।
तीन: मोदी शाह की जोड़ी ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनकर राजस्थान में सिंधिया घराने की ही वसुंधरा राजे को रोकना चाहते हैं। वसुंधरा के साथ मोदी-शाह की रार किसी से छुपी नहीं है। अपने दबंग तेवरों से लगातार आंखें तरेरती रहीं वसुंधरा राजे का दावा ज्योतिरादित्य के मुख्यमंत्री बनते ही स्वतः समाप्त हो जाएगा क्योंकि कोई भी पार्टी एक परिवार के दो लोगों को मुख्यमंत्री नहीं बन सकती। वैसे भी वसुंधरा जैसी तेज़तर्रार नेता के बजाय ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी शाह के लिए ज्यादा मुफीद रहेंगे।
ज्योतिरादित्य को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा आलाकमान पार्टी की संस्थापक सदस्यों में से एक राजमाता विजयाराजे सिंधिया के उपकार को भी चुका सकती है।
चार: कांग्रेस से दल बदल करके भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर कांग्रेसी नेता लगातार कहते रहे हैं कि भाजपा सिंधिया को कभी मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। बीजेपी आला कमान सिंधिया को ही मुख्यमंत्री बनाकर एक तरह से कांग्रेस और उसके बड़े नेताओं को आइना दिखाना चाहती है। मोदी शाह की जोड़ी इससे पहले असम में भूतपूर्व कांग्रेसी हिमंत बिस्व सरमा और कर्नाटक में बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बना चुकी है।
अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते हैं तो वे सिंधिया घराने के दूसरे व्यक्ति होंगे जो इस कुर्सी पर पहुंचेंगे। उनकी सगी बुआ वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। उनके पिता माधवराव सिंधिया का नाम भी एक बार मुख्यमंत्री पद के लिए चला था लेकिन वे बन नहीं सके थे। माधवराव कांग्रेस सरकारों में मंत्री रहे थे।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया आज़ादी के बाद सन 1967 तक कांग्रेस में थीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र से विवाद के कारण उन्होंने 1967 में पार्टी छोड़ दी थी। कांग्रेस की सरकार गिरा कर भी विजयाराजे सिंधिया स्वयं मुख्यमंत्री नहीं बनी थीं और गोविंद नारायण सिंह को मुखिया बनवा दिया था।
ज्योतिरादित्य अपने पिता की मृत्यु के बाद राजनीति में आए। कांग्रेस के टिकट पर चार बार सांसद, दो बार केंद्रीय मंत्री रहे। 2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद सन 2020 में अपने साथियों के साथ कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए। राज्यसभा में पहुंचे और अभी मोदी सरकार में मंत्री हैं।
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