कोविड-19 ने बड़े-बड़ों की ज़िंदगी में भूचाल ला दिया। मार्च में जो तबाही शुरू हुई वो अभी भी थमने का नाम नहीं ले रही। अब भले ही ऑक्सीजन की मारा-मारी कम हुई है लेकिन मौतों का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। ऊपर से संक्रमण अब छोटे नगरों और गांवों तक पहुँच गया है। इस सबके बावजूद सभी सरकारें एक अलग ही उन्माद में हैं। ना तो वैक्सीन का ठिकाना है ना सही से जांच हो रही है। खास तौर पर भारत सरकार का रवैया लोगों की समझ से परे है।
जनता ने सरकार से आस छोड़ कर खुद के भरोसे कोविड में नैयापार लगाने की कोशिश की। ‘माँझी’ फिल्म के डायलॉग को अगर थोड़ा सा बदल दें तो एकदम सही बैठता है- “सरकार के भरोसे मत बैठो, क्या पता सरकार तुम्हारे भरोसे बैठी हो”।
इतने खस्ता इंतजाम कि पूरे संसार में जग-हँसाई हो गई लेकिन भूल-स्वीकारना या भूल-सुधार तो दूर, सरकार पूरी दुनिया को ही मोदी का बैरी बताने में तुली है।
सरकार की ख़ुशफ़हमी
लोकतंत्र में हर सरकार चुनाव से बहुत डरती है। अगर किसी भी घटना में बुराई होने लगे तो उसका सीधा असर अगले चुनावों पर दिखता है। इसके बावजूद भारत सरकार के कान पर जूँ रेंगती नहीं दिखती। मोदी सरकार मान चुकी है कि कोविड-प्रबंधन उससे अच्छा और कोई नहीं कर सकता था। दिल को बहलाने के लिए ग़ालिब खयाल अच्छा है!
आखिर क्या वजह है कि सरकार आश्वस्त है कि सब ठीक है और बीजेपी 2024 में अच्छा प्रदर्शन करेगी। आखिर कैसे सरकार अभी भी लोगों को पॉजिटिव (positive) रहने का सुझाव देती रहती है।
सरकार के तर्क
1. आखिर सरकार किस ख़ुशफहमी में है- अमेरिका, ब्रिटेन और ब्राजील जैसे देश भी कोविड से निपटने में बुरी तरह नाकाम हुए हैं। भारत सरकार लगातार कम मृत्यु-दर को अपनी विजय के प्रतीक के रूप में दिखाने में लगी है। उनके पास अच्छा बहाना ये है कि जनवरी तक तो सब ठीक ही था, ये तो नए वायरस स्ट्रेन की वजह से हालात खराब हो गए।
2. दूसरी वेव (लहर) में उच्च-मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। पिछली वेव में गरीब और मजदूरों पर ज्यादा असर हुआ था शायद इसलिए कोरोना से जुड़े मुद्दे सिर्फ औपचारिक बहसों तक सीमित थे। जैसे ही उच्च-मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग इसके चपेट से बाहर निकलेगा, सारा रोष और द्वेष फिर से कम हो जाएगा।
जनता की जिम्मेदारी?
3. ये भी प्रचारित किया जा रहा है कि सरकार जनता को दिशा-निर्देश ही दे सकती है, नियम पालन करने के लिए बोल सकती है, और आखिर में सारे नियमों का पालन (मास्क पहनना हो या सामाजिक दूरी का पालन करना) जनता को ही करना है। कोरोना और लॉकडाउन के बावजूद शादी-ब्याह, पार्टियां, धार्मिक अनुष्ठान इत्यादि लोगों ने सब जानते हुए भी किया। अभी भी कई लोग कोरोना का अस्तित्व नहीं मानते।
ऐसे में सरकार यह बोल कर निकल लेगी कि जब लोगों ने नियम का पालन नहीं किया तो दोष भी लोगों का है। बल्कि कई सरकारी समर्थक ये बात फैलाने भी लगे हैं।
जनता सरकार के साथ!
4. नोटबंदी (demonetization) और अन्य नीतियों के विफल होने पर भी जनता ने भूतकाल में सरकार का साथ दिया है। सरकार के बढ़े हुए आत्मविश्वास का एक कारण यह भी है। विश्लेषकों को ये समझना होगा कि जनता मूलतः विकास चाहती है और वो इसके लिए अतिरिक्त चार कदम चलने से नहीं झिझकेगी।
यही कारण है कि जनता ने शास्त्री और जेपी का साथ निभाया था। जब-जब कोई राजनेता जनता को यह यकीन करवाने में सफल होगा कि उनके साथ के बिना विकास संभव नहीं है, तब तक जनता साथ देगी। मोदी यह विश्वास बनाने में कामयाब हुए, बाकी नेता यह नहीं कर पा रहे।
बीजेपी समर्थक ख़ुश
5. हाल-फिलहाल के सभी बड़े फैसले, चाहे वो धारा 370 से जुड़ा हो या तीन तलाक से, बीजेपी का समर्थन करने वाले प्रखर तबके को ध्यान में रख कर किया गया। यही तबका सरकार का सबसे बड़ा वोटर भी है। राम मंदिर और सी.ए.ए. ने तो इस वोटर समुदाय को अपार खुशी दी है और उनके तथा अधिकतर मीडिया वालों की नजर में सरकार का रिपोर्ट कार्ड बहुत अच्छा है। उन्हें और कुछ नहीं चाहिए। इतना काफी है 2024 में वोट डालने के लिए।
मुसलमान ‘औकात’ में रहें
6. हिन्दुओं का एक तबका मानता है कि जल्द ही मुसलमान संख्या में उनसे ज्यादा हो जाएंगे और यह उनके लिए खतरे की बात हो जाएगी। इसलिए ऐसी नीतियाँ जिससे मुसलमान अपनी ‘औकात’ में रह सके उन्हें अधिक खुशी देती है बजाय ऐसी नीतियों के जिनसे स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार हो सके।
फिर बढ़ेगी मोदी की रेटिंग?
7. सरकार को अच्छी तरह ज्ञात है कि अभी भी जनता का बहुत बड़ा तबका उसके समर्थन में है। मोदी की लोकप्रियता कम जरूर हुई है किन्तु बाकी नेताओं के मुकाबले अभी भी बहुत ज्यादा है। ‘मॉर्निंग कन्सल्ट’ के अनुसार अभी भी मोदी की रेटिंग 63% है जो कि पहले के मुकाबले कम होते हुए भी बहुत है।
आप सोचिए, जब चारों ओर लोग अस्पताल और ऑक्सीजन के लिए तरस गए, सरकार से उम्मीद छोड़ एक दूसरे का साथ निभाकर किसी तरह लोग जी रहे हैं, तब भी मोदी की रेटिंग 63%% है। सरकार को उम्मीद है कि अगले साल तक अधिकतर लोग टीका ले लेंगे और फिर से रेटिंग बढ़ जाएगी।
कमजोर विपक्ष
8. भारत में विपक्ष बहुत ही कमजोर और ढुलमुल है। विपक्षी दल या तो डरे हुए रहते हैं या सोये हुए। संसद में सही से आवाज नहीं उठाते, जमीन पर कुछ खास नहीं दिखते और ट्विटर पर ही मैदान जीतने का सपना देखते हैं। हालांकि अभी कई युवा नेता लोगों की मदद करते दिखे पर इनकी संख्या गिनी चुनी है।
विपक्ष शायद इस उम्मीद में है कि मोदी की गलतियों से तंग आकर अगले चुनाव में जनता उन्हें वोट दे देगी। वो भूल जाते हैं कि लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में बहुत अंतर है।
जीतने के हथकंडे
9. मोदी पिछली गलतियों से सीखते रहते हैं। वैसे भी 2024 में अभी 3 वर्ष हैं। बहुत समय है भूल सुधार और जनता को फिर से रिझाने के लिए। अन्य दलों कि तुलना में बीजेपी अधिक मेहनती है। हर जिला और वार्ड तक उनके कार्यकर्ता पहुंचते हैं। धन की भी कोई कमी नहीं। बीजेपी में जीतने की भूख है जो बाकी पार्टियों में नहीं दिखती और इसलिए बीजेपी-वाले साम-दाम-दंड-भेद जैसी कोई भी युक्ति का प्रयोग करने से नहीं चूकते।
पॉजिटिविटी का मंत्र
10. कोई भी अकस्मात घटना अभी रुष्ट हुए मोदी समर्थकों को फिर से साथ ला सकती है। पिछले चुनावों के पहले ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ इसका बेहतरीन उदाहरण है। कई विश्लेषकों का मानना है कि उस वजह से 2019 में बीजेपी को 40-60 अतिरिक्त सीट मिल गई।
किसी भी अप्रत्याशित घटना के होने पर, खास तौर पर अगर वह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो तो लोग किसी नए व्यक्ति की जगह मोदी को ही वोट देना पसंद करेंगे। कोई आश्चर्य की बात नहीं कि सरकार अपनी धुन में मस्त है। शायद इसलिए खुद भी पॉजिटिव है और सबको पॉजिटिव रहने को बोलती रहती है।
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