कांग्रेस नेता मनीष तिवारी की हालिया रिलीज़ किताब के हवाले से बीजेपी कांग्रेस पर हमला बोल रही है। किताब में कहा गया है कि मुंबई पर हुए 26/11 हमले को सैन्य जवाब न देकर तत्कालीन मनमोहन सरकार ने कमज़ोरी दिखायी थी।
हक़ीक़त यह है कि 26/11 में कसाब के अलावा सभी हमलावर मारे गये थे। कसाब पर चले मुकदमे ने दुनिया के सामने हमले में पाकिस्तानी हाथ होने की पुष्टि की। पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने में मनमोहन सरकार क़ामयाब रही और उस पर आतंकवाद को प्रश्रय देने का कभी न मिट सकने वाला दाग़ लग गया।
कई बार सैन्य प्रतिक्रिया से बेहतर संयम होता है। संयम अगर कायरता है तो फिर संसद पर हमले के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने सेना को आपरेशन पराक्रम के तहत सीमा पर तैनात कर दिया था, लेकिन बिना कोई कार्रवाई किये सेना को वापस बुला लिया गया था। क्या यह संयम अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की कायरता थी?
दिसंबर 2001 में संसद पर हमला हुआ था। दिसंबर से जून 2002 तक सेना को तैयार रखा गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होने दी गयी। आपरेशन पराक्रम का नाम दिया गया लेकिन बिना कोई पराक्रम दिखाये सेना को वापस बुला लिया गया।
फरवरी 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी बस लेकर लाहौर चले गये थे..क्यों? जबकि मई में करगिल में हमला हो गया था। क्या यह वाजपेयी सरकार के खुफिया तंत्र की विफलता नहीं थी?
दिसंबर 1999 में भारतीय विमान को हाईजैक करके कंधार ले जाया गया था। अटल सरकार के मंत्री यात्रियों के बदले आतंकियों को खुद छोड़ने गये थे। क्या वह कायरता नहीं थी?
फिर करगिल हमले के योजनाकार जनरल मुशर्रफ के साथ आगरा में शिखर वार्ता हुई, क्या कायरता की निशानी थी?
पीएम मोदी खुद बिना बुलाये नवाज़ शरीफ़ के घर खाने गये थे। तोहफे भी ले गये थे। क्या यह कायरता थी?
मनीष तिवारी की किताब
और सबसे बड़ा सवाल मनीष तिवारी की उसी किताब में है। उन्होंने लिखा है कि-
“मोदी सरकार ने माउंटेन स्ट्राइक कोर बनाने की योजना को खत्म करके राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया है।
2018 में सरकार ने आर्थिक बाधाओं का हवाला देते हुए इस योजना को टाल दिया गया था।
अगर माउंटेन स्ट्राइक कोर होता तो एलएसी के संवेदनशील स्थानों पर उसकी तैनाती होती। चीन को समय पर जवाब दिया जा सकता था और 2017 में पैदा हुआ डोकलाम जैसा संकट भी नहीं होता।”
हक़ीक़त यह है कि चीन ने सैकड़ों किलोमीटर भारत की भूमि पर हाल के दिनों में क़ब्ज़ा कर लिया है, लेकिन पीएम मोदी ने चूं भी नहीं की। वे इसे मानने को भी तैयार नहीं हैं, जबकि ख़ुद बीजेपी के सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी भी ताल ठोंककर चीनी कब्जे की बात कर रहे हैं।
याद रहे कि गोवा से लेकर सिक्किम तक का भारत में विलय कांग्रेस सरकारों ने ही कराया। पाकिस्तान के दो टुकड़े करके बांग्लादेश का निर्माण इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में संभव हो सका जबकि अमेरिका जैसा महाबली खिलाफ़ खड़ा था।
कांग्रेस को आरएसएस और उसके संगठनों से राष्ट्रभक्ति सीखने की ज़रूरत नहीं है जो अंग्रेज़ो के खिलाफ़ युद्ध के समय उनके तलवे चाटते रहे।
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