भारत की अधिकांश जनता राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को मानने वाले हैं, तो दूसरी ओर उनसे नफ़रत करने वाला वर्ग भी है। इस वर्ग का तर्क है कि राष्ट्रपिता होने का पैमाना क्या और क्यों? यह वर्ग बापू महात्मा गाँधी के विरुद्ध झूठे व मनगढ़ंत कुतर्कों को संगठित रूप से प्रचारित भी करता है। तकनीकी युग वाट्सऐप और सूचना क्रांति से यह और भी आसान हो गया है।
गाँधी जी के प्रति तीन तरीक़े के लोगों में भ्रांति है, पहला वो जो जातीय मानसिकता से स्वयं को उच्च मानने वाले अल्पज्ञानी हैं। दूसरा तबक़ा तकनीकी रूप से शिक्षित परंतु मानविकी और इतिहास के अल्पज्ञान वाले लोग हैं, ऐसे लोग आपको कॉरपोरेट और मल्टी-नेशनल कंपनियों में भरपूर मिलेंगे। यहाँ तक कि विदेशों में ब्रिटेन, अमेरिका, साऊथ अफ्रीका, सिंगापुर, मॉरीशस में अच्छे पदों पर काम करने वाले मिलेंगे।
तीसरा वर्ग वो जो इन अफवाहों का मूल स्रोत है। भारत को हिन्दूराष्ट्र बनाने की कल्पना के लिए संघर्षरत लोग जिनके रास्ते में गाँधी हिमालय की तरह बाधा बन कर खड़े हैं।
बिडम्बना देखिए लंदन की संसद के आगे, अमेरिका में न्यूयॉर्क के यूनियन स्क्वायर पार्क, गाँधी मेमोरियल सहित कई जगहों पर मूर्तियाँ लगी हैं। विश्व के 12 से ज़्यादा देशों में गाँधी की मूर्तियाँ और सड़कों के नाम इनके सम्मान में हैं। जर्मनी, रूस, चीन, साउथ अफ्रीका, घाना, जॉर्जिया जैसे देशों में गाँधी को पूजा जाता है। अगर आप विदेश जाते हैं तो आपका परिचय गाँधी के देश के नागरिक के तौर पर ही होता है। यही कारण है कि दक्षिणपंथी संगठन से होते हुए और नहीं चाहते हुए भी गोडसे-सावरकर पूजक नरेन्द्र मोदी गांधी के सामने सिर झुकाते हैं।
सर्वविदित है कि महात्मा गाँधी ने कभी प्रचार माध्यमों का इस्तेमाल करके प्रसिद्धि हासिल नहीं की, उनका जीवन विश्व के लिए प्रेरणादायक रहा है। चाहे अल्बर्ट आइंस्टीन हों या मार्टिन लूथर किंग द्वितीय हों या बराक ओबामा, सब गाँधी के सामने नतमस्तक हुए। राष्ट्रगान जन गण मन के रचयिता नोबेल सम्मानित गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को 'महात्मा की उपाधि' दी और भारत छोड़ो आंदोलन के दरम्यान सुभाष चंद्र बोस ने रेडियो शिलॉन्ग से गाँधी जी को "बापू और राष्ट्रपिता" कह कर संबोधित किया। शहीदे आज़म भगत सिंह भी गाँधी के प्रसंशक थे। भीमराव आंबेडकर गाँधी के बड़े आलोचक होते हुए भी गाँधी के योगदान को स्वीकार करते थे।
भारत की आज़ादी के घोर विरोधी और गाँधी को असली दुश्मन समझने वाला विंस्टन चर्चिल उनके मरने की दुआ मांगता है, तो नंगा फ़क़ीर भी बुलाता है। अंतिम वायसरॉय माउंटबेटन ने महात्मा गाँधी की हत्या पर ब्रिटिश राज को इस कलंक से मुक्त बताया तो दूसरी तरफ़ अपने ही लोगों द्वारा हत्या किए जाने पर घोर आश्चर्य व्यक्त किया।
अब सवाल उठता है कि आज भी गाँधी जीवंत और प्रासंगिक क्यों हैं? और गाँधी की हत्या क्यों की गई?
आज तक के अकादमिक विमर्श में गाँधी की हत्या के लिए पाकिस्तान के निर्माण, मुसलिम परस्ती, पाकिस्तान के हिस्से का 55 करोड़ रुपया दिलवाना मुख्य मुद्दा बनाया गया है। चूँकि गाँधी की हत्या के समय देश की साक्षरता दर 8% थी और कोई ऐसा नेता भी नहीं था जो सच्चाई जनता को बता पाए और न ही इस पर कोई रिसर्च हुआ।
और यह झूठी अफ़वाह फैला कर हिंदूवादी भावनाओं को तुष्ट किया गया और तार्किक बताया गया। जबकि गाँधी की हत्या के पीछे उपरोक्त कोई कारण जिम्मेवार नहीं था। गाँधी की हत्या का मुख्य कारण था अस्पृश्यता उन्मूलन। मतलब हिंदूवादी उच्च अहम भावना जिस अस्पृश्यता के कारण बाबा साहब भीम राव आंबेडकर गाँधी की आलोचना करते हैं और उनका यह भाव इसलिए कठोर था क्योंकि महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण और महार दलितों के बीच जो नफ़रत के भाव थे, उसकी प्रतिक्रिया एक तरफ़ आंबेडकर कर रहे थे तो दूसरी तरफ़ चितपावन ब्राह्मण। इसलिये 1932 के पूना पैक्ट के बाद ही गाँधी की हत्या की साज़िश होने लगी।
सबको पता है कि गाँधी की हत्या के 6 प्रयास किये गये थे जो अंततः 30 जनवरी 1948 को संभव हुआ। परंतु यह प्रक्रिया 1932 से ही शुरू हो गयी थी। गाँधी के एम्बेसडर पर बम फेंकना हो या शौच (पाखाना) फेंकना मनुवादियों की ही प्रतिक्रिया थी।
इसलिए आंबेडकर को आज़ादी की जल्दी नहीं थी। वो अंग्रेजों को ब्राह्मणवादियों से बेहतर मानते थे। दूसरी तरफ़ हिन्दू राष्ट्र के चाहने वाले आज़ादी के आंदोलन में भागीदार न होकर अंग्रेजों के पक्ष में थे।
आरएसएस प्रमुख एम एस गोलवलकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जो मुसलिम लीग के साथ मिलकर बंगाल सरकार में मंत्री थे। सावरकर जो द्विराष्ट्र सिद्धांत के प्रणेता थे, जिसे बाद में मुहम्मद अली जिन्ना ने अपना हथियार बनाया। तात्पर्य यह कि हिन्दू राष्ट्र के सपने में मनुवादी व्यवस्था लागू करने वाले अस्पृश्यता उन्मूलन के विरोध के कारण गाँधी की हत्या करना चाहते थे, परंतु यह स्वीकार नहीं करना चाहते थे। अतः गाँधी की हत्या को जायज ठहराने के लिए मुसलिम परस्ती और पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया जबकि गाँधी की हत्या की साज़िश 1932 के बाद ही प्रारंभ हो गयी थी।
गाँधी हिन्दू मुसलिम एकता के पक्षधर थे और भारत विभाजन के विरोधी थे, अतः हिन्दू भावना को तुष्ट करने के लिए मुसलिमों को दुश्मन घोषित किया गया, जबकि उद्देश्य मुसलिमों को देश से बाहर कर मनुवादी व्यवस्था लागू करना था। गाँधी इन दोनों के विरुद्ध हिन्दू मुसलिम एकता, दलित सवर्ण सामंजस्य बिठाकर एक भारत बना रहे थे, गाँधी पूरे देश का भ्रमण करके देश की नब्ज और अंत:मन को समझ चुके थे, इस एकता से सभी छ्द्म एजेंडे को ख़तरा था। यह एकता न तो अंग्रेज होने देना चाहते थे, न हिन्दूवादी संघ, न मुसलिम लीग न आंबेडकर।
इन सबके सामने गाँधी हिमालय बन कर खड़े थे और अभी भी हैं। भारत निर्माण की जितनी समझ गाँधी की थी उतनी किसी की नहीं, इसीलिए गाँधी, महात्मा बुद्ध, बाबा तुलसीदास, कबीर, सम्राट अशोक और अकबर के समतुल्य समन्वयवादी आधुनिक भारतीय लोकतंत्र के रचयिता है। जिसके सामने विश्व नतमस्तक है। हालाँकि उनके चरित्रहनन का प्रयास तथाकथित धर्मसंसद सजा कर किया जा रहा है।
भारत की आत्मा भगवान बुद्ध, तुलसीदास, महात्मा गाँधी, स्वामी विवेकानंद की आत्मा है, विवेकानंद जी के शिकागो धर्मसंसद के भाषण का गहन अध्ययन उन भगवा विचारकों को करना चाहिए जो स्वामी जी के विचारों की हत्या कर उनका फ़ोटो अपने पोस्टरों पर लगा रहे हैं।
स्वामी जी और गाँधी जी दोनों के विचार में “हिन्दुधर्म सर्वधर्म समभाव”, “वसुधैव कुटुम्बकम” है जो अस्पृश्यता को पाप समझता है।
अतः प्रगतिशील और लोकतांत्रिक मूल्यों के पोषकों को दलितों और मुसलमानों के आपस में संबंध मज़बूत कर एक दूसरे का हितरक्षक बनाना होगा। यही गाँधी को सच्ची श्रद्धांजलि और विवेकानंद, भगत सिंह के सपनों का भारत होगा।
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