कोरोना संकट से क्या साबित हुआ? इस सवाल को लेकर सभी के जवाब अलग-अलग हो सकते हैं। मसलन, यह कि देश की स्वास्थ्य सेवाओं में बहुत सुधार की जरूरत है। यह भी कि हमारे देश का सामाजिक ताना-बाना इतना कमजोर है कि लॉकडाउन के एक महीने के दौरान ही ग़रीबों का दाना-पानी ख़त्म हो गया।
यह भी साबित हो गया कि हम कैसा दिखावे का जीवन जी रहे हैं जिसमें मूल सुविधाओं पर तो 15-20 फीसदी ही खर्च करते हैं और बाकी सारा पैसा हवा में उड़ जाता है। यह भी साबित होता है कि अगर हमें फुर्सत मिल जाए और करने को कुछ नहीं हो तो फिर जीना ही मुहाल हो जाए। खैर, जितने मुंह उतनी बातें लेकिन एक बात पूरे देश में साबित हो गई कि शराब और शराबियों के बिना इस देश की अर्थव्यवस्था नहीं चल सकती।
खोलने पड़े शराब के ठेके
जी हां, यही सच है। तभी तो लॉकडाउन का तीसरा चरण शुरू हो गया लेकिन मंदिर नहीं खुले, रमज़ान के बावजूद मसजिद नहीं खुलीं, गुरुद्वारे नहीं खुले, स्कूल-कॉलेज नहीं खुले, स्पा और जिम नहीं खुले लेकिन शराब के ठेके खुल गए। देश के शराबियों ने 40 दिन शराब के बिना कैसे गुजारे, यह सोचकर शायद सरकार शर्मिन्दा थी और उसे शराब के ठेके तो खोलने ही पड़े।
दिल्ली सरकार के पास पैसे ख़त्म!
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल यह कहते नहीं अघाते कि यहां ईमानदार सरकार है और यहां पैसे की कोई कमी नहीं है। केजरीवाल के मुताबिक़, ‘दिल्ली सरकार रोजाना दस लाख मजदूरों और मजबूरों को खाना खिलाती है। चाहे इससे दुगुने लोग आ जाएं, उन्हें भी सरकार खाना खिला सकती है क्योंकि ईमानदार सरकार जनता का पैसा जनता पर ही खर्च कर रही है।’ लेकिन गजब हाल है कि सिर्फ एक महीने में ही इस सरकार के पैसे ख़त्म हो गए।
सैलरी देने तक के पैसे नहीं बचे
डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को कहना पड़ा कि सरकार के पास अब कर्मचारियों को सैलरी देने तक के पैसे नहीं बचे हैं। कैसी ईमानदार सरकार है कि सारी अर्थव्यवस्था एक महीने में ही ‘टैं’ बोल गई और आख़िर शराब की दुकानें खोलनी पड़ीं ताकि टैक्स के रूप में आमदनी हो तो फिर कम से कम कर्मचारियों को सैलरी तो मिल सके।
बात सिर्फ दिल्ली की ही नहीं है। उत्तर प्रदेश में तो रामराज्य स्थापित करने वाली योगी आदित्यनाथ की बीजेपी सरकार है लेकिन वह भी शराब की दुकान खोले बिना नहीं रह पाई। यहां तक कि रेड ज़ोन में भी शराब की दुकानें खोली जा रही हैं।
आमदनी होनी ज़रूरी
40 दिन का लॉकडाउन तो पूरा हो चुका है और अगर एक्सपर्ट्स की बातों पर यकीन कर लें तो मई के महीने में भी कोरोना कोई रहम नहीं करने वाला। ऐसी हालत में देश की अर्थव्यवस्था शून्य से भी कितनी नीचे चली जाएगी, कोई नहीं जानता। ऐसी हालत में जाहिर है कि कोरोना से निपटने के साथ ही कुछ ऐसे क़दम भी उठाने जरूरी हैं जिनसे सरकारों को कुछ आमदनी हो।
सरकारों की आमदनी में बड़ा हिस्सा जीएसटी का है लेकिन जब बाजार बंद हों, उद्योग बंद हों और तमाम गतिविधियों पर ताला लगा हो तो फिर जीएसटी देने कौन आएगा।
सिर्फ 15 फीसदी हुआ जीएसटी का कलेक्शन
जीएसटी आए तो केंद्र सरकार राज्यों के साथ फिफ्टी-फिफ्टी बंटवारा करे। अप्रैल महीने में तो एक लाख करोड़ में से सिर्फ 15 फीसदी जीएसटी का कलेक्शन हो पाया है। अब उसमें केंद्र क्या तो खुद नहाएगा और क्या निचोड़कर राज्यों को बांटेगा।
पेट्रोल-डीजल की बिक्री लगभग ठप
पेट्रोल-डीजल की बिक्री राज्यों की आमदनी का एक और बड़ा जरिया है। इसीलिए इसे जीएसटी में शामिल नहीं किया गया क्योंकि इसके बिना तो राज्यों का पहिया चल ही नहीं सकता। लेकिन पेट्रोल-डीजल की बिक्री भी 10 से 15 फीसदी तक ही रह गई है। यानी वहां भी खजाना खाली है। रियल एस्टेट बिजनेस तो पहले से ही ठप था, जहां से रजिस्ट्री के रूप में राज्यों को मोटी आमदनी होती थी। लॉकडाउन के दौरान तो वहां सन्नाटा ही छा गया है।
इन हालात में, चाहे कोई कितनी ही नैतिकता का रोना रोए, सच यह है कि शराब और शराबी ही इस समय देश की नैया को पार लगाने में सक्षम नजर आ रहे हैं। गुजरात और बिहार जैसे राज्यों को तो इस तिनके का भी सहारा नहीं है।
लोगों को कंट्रोल करना ज़रूरी
अब देखना यह है कि 40 दिन से प्यासे शराबियों को कैसे कंट्रोल किया जाता है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि अब लॉकडाउन में छूट देने का वक्त आ गया है। उनका कहना है कि अगर कोरोना के मामले बढ़ते हैं तो दिल्ली सरकार उसके लिए भी तैयार है और सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है। निश्चित रूप से उनका इशारा शराब की दुकानों पर लगने वाली भीड़ की तरफ है। अब इस भीड़ को वह कैसे कंट्रोल करेंगे, यह तो वही जानें। लेकिन अगर इस भीड़ से कोरोना फैला तो फिर ज़िम्मेदारी कौन लेगा?
थैंक्यू के हक़दार हैं शराबी!
मेरा तो यह कहने का भी जी चाहता है कि जिस तरह सारी सरकारों ने यह मान लिया है कि शराबी ही इस देश की और राज्यों की अर्थव्यवस्था को संभाल सकते हैं तो फिर शराबियों का भी आभार व्यक्त करने के लिए कुछ न कुछ तो किया ही जाना चाहिए। भले ही पुष्प वर्षा न हो, दीये न जलाए जाएं, थाली-कटोरी न बजाई जाएं, कम से कम उनके लिए एक थैंक्यू तो कहा ही जाना चाहिए।
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