चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला
आगे
चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला
आगे
कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय
पीछे
किसी भी दल या धर्म विशेष के प्रति प्रतिबद्ध किंतु परम्परागत रूप से सहिष्णु नागरिकों को अगर सुनियोजित तरीक़े से समझा दिया जाए कि राष्ट्र की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए धार्मिक ‘असहिष्णुता’ का ‘औचित्यपूर्ण’ इस्तेमाल अब आवश्यक हो गया है तो बिना किसी सैन्य हस्तक्षेप अथवा मदद के भी नितांत अहिंसक हथियारों के ज़रिए ही एक जागृत प्रजातंत्र को संवेदनशून्य अधिनायकवादी व्यवस्था में बदला जा सकता है।
अन्यान्य कारणों से लगातार विवादों/सुर्ख़ियों में बनी रहने वाली सिने तारिका कंगना रनौत जब बिना किसी तर्क के यह कहती हैं कि देश को असली आज़ादी 1947 में (गांधी के नेतृत्व में) नहीं बल्कि 2014 में (नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में) मिली है और जब जाने-माने विधिवेत्ता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सलमान ख़ुर्शीद तार्किक आधार पर चिंता ज़ताते हैं कि ‘राजनीतिक’ हिंदुत्व हमारे संतों और ऋषि-मुनियों द्वारा प्रतिपादित हिंदुत्व से भिन्न है तो हम वर्तमान में अपने आसपास घट रहे घटनाक्रम को आसानी से समझ सकते हैं।
हमें कंगना के कहे के पीछे छिपे मज़बूत राजनीतिक-धार्मिक समर्थन को इस तरीक़े से समझना चाहिए कि एक सफल सिने तारिका के तौर पर वे केवल एक लिखी और समझाई गई स्क्रिप्ट को ही व्यावसायिक अथवा क्रूर तरीक़े से पेश कर सकती हैं। आज़ादी की लड़ाई को लेकर कंगना जो कुछ भी कह रही हैं उसमें और संघ तथा बीजेपी के अनुभवी वक्ता अपनी सधी हुई ज़ुबान और विनम्र अन्दाज़ में जो व्यक्त करते हैं उसमें ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है। कंगना को अपने मन की बात कहने का हुनर जब पूरी तरह से हासिल हो जाएगा तो फिर उनके किसी कहे पर उतनी उग्र प्रतिक्रिया नहीं होगी जैसी कि अभी हो रही है।
राजनीति में फ़र्क़ इस बात से भी पड़ता है कि कौन सी बात कौन कह रहा है! मसलन हिंदुत्व को लेकर सलमान ख़ुर्शीद की कही बात अगर शंकराचार्यों की श्रेणी का कोई प्रतिष्ठित हिंदू विद्वान कह देता तो इतना बवाल नहीं मचता।
सलमान के लिखे के प्रति हो रहे विरोध में यह समाहित है कि एक मुसलिम को हिंदुत्व की व्याख्या करने का अधिकार किसने दे दिया? यही कारण है कि जब राहुल गांधी ‘हिंदुत्व’ और ‘हिन्दुवाद’ के बीच का फ़र्क़ समझाते हैं तो कोई हल्ला नहीं मचता। ऐसा इसलिए कि कांग्रेस के नायक ने खुद को बतौर एक जनेऊधारी हिंदू के भी सार्वजनिक जीवन में स्थापित करवा लिया है।
कोई मुसलिम तो कंगना की ज़ुबान में यक़ीनन कह ही नहीं सकता कि देश को आज़ादी 1947 में नहीं बल्कि 2014 में प्राप्त हुई है। वह हक़ीक़त में क्या कहना चाहेगा उसका केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।
कंगना ने जो कुछ भी कहा उसके प्रति शोक व्यक्त करने के बजाय ज़्यादा ख़ौफ़ इस बात का होना चाहिए कि सम्भ्रांत नागरिकों की जो जमात ‘टाइम्स नाउ’ के शिखर सम्मेलन के दौरान एंकर के साथ उनकी बातचीत को सुनने के लिए हॉल में उपस्थित थी वह क्या प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही थी! यह जानना इसलिए ज़रूरी है कि ‘अकेली’ कंगना नहीं हैं बल्कि ‘अकेले’ वे तमाम लोग हैं जो इस समय सोशल मीडिया पर सिने तारिका का विरोध करने में जुटे हुए हैं।
चैनल की एंकर नाविका कुमार ने जब सावरकर को लेकर सवाल किया तो कंगना ने उलट कर पूछ लिया: ‘सेक्युलर क्या होता है? सेक्युलर का मतलब यही होता है कि यह ज़मीन (देश) किसी की नहीं है। न आपकी, न मेरी, हरेक आदमी की! यह ज़मीन किसी की भी नहीं है। ठीक? कांग्रेस के नाम पर अंग्रेज जो छोड़ गए हैं, ये वह है। ये (कांग्रेस) अंग्रेजों के ही पुछल्ले (एक्सटेंशन) हैं।’ कंगना ने जैसे ही यह कहा हॉल में पीछे की तरफ़ बैठा नागरिक समाज तालियाँ बजाने लगा। कंगना ने जब यह कहा कि 1947 में जो मिला वो आज़ादी नहीं थी भीख थी और जो आज़ादी प्राप्त हुई है वह 2014 में मिली है तो हॉल में तालियाँ और भी ज़ोरों से गूंज उठीं।अग्रिम पंक्तियों में बैठे लोग भी तालियाँ बजाने वालों में शामिल हो गए। पूरे हॉल में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जो खड़ा होकर विरोध करने की हिम्मत दिखा सके।
कंगना के कहे को ‘राजनीतिक’ हिंदुत्व के इस आशय की तरह स्वीकार किया जाना चाहिए कि जो ‘आज़ादी’ 2014 में प्राप्त हुई है अब उसकी हिफ़ाज़त उस तरह से नहीं की जा सकती जिस तरह से 1947 में आज़ादी (‘भीख’ में) प्राप्त हुई थी।
कंगना वही कर रही हैं जो कट्टर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के समर्थक गांधी की अहिंसा के औचित्य को ख़ारिज करते हुए सावरकर के अनन्य भक्त गोडसे के कृत्य का विरोध नहीं करते। सवाल यह है कि ‘हिंदुत्व’ के नए ‘राजनीतिक’ अवतार के बारे में क्या कभी संघ या बीजेपी का कोई नेता सलमान ख़ुर्शीद की तरह से किताब लिखना चाहेगा? शायद नहीं। ऐसा इसलिए कि सलमान ख़ुर्शीद ने स्वयं के इसलाम धर्म के संदर्भ में आयसिस और बोको हरम के इसलाम को जिहादी इसलाम बताने का साहस दिखाया है। सलमान उसी ओर इशारा कर रहे हैं जिस ओर कंगना संघ और बीजेपी के हिंदुत्व के नेतृत्व में देश को 2014 में मिली आज़ादी की ओर इशारा कर रही हैं।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें