बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने गत दिवस संसद में कहा है कि हमने कभी चुनाव हारने पर ईवीएम का रोना नहीं रोया। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि जब वह चुनाव में जीतता है तब कुछ नहीं कहता और हारने पर ईवीएम का रोना रोने लगता है।
हैरानी की बात है कि नड्डा भूल गए कि 2014 से पहले उनकी पार्टी लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने पर मोटे-मोटे आँसुओं से रोती थी।
तब के ‘लौह पुरुष’ लालकृष्ण आडवाणी से लेकर पूरी पार्टी खिसियानी बिल्ली की तरह ईवीएम का खम्बा नोचती थी।
भारतीय जनता पार्टी 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव अटल-आडवाणी के नेतृत्व, इंडिया शाइनिंग, फील गुड के भौकाल के बावजूद हार गई थी। पार्टी लगातार दो बार की हार से बौरायी हुई थी तब उसने ईवीएम का खम्बा ढूंढा और उसे रो-रो कर नोंचना शुरू किया।
भारतीय जनता पार्टी देश की पहली पार्टी है जिसने बाक़ायदा ईवीएम का खुलकर विरोध किया।
उसका बाक़ायदा अभियान शुरू हुआ 2009 में बीजेपी (एनडीए) की हार के बाद। आरोप वही थे, जो आज कांग्रेस, सपा, बसपा आदि लगा रही हैं। सबसे पहले लालकृष्ण आडवाणी ने निर्वाचन आयोग को चिट्ठी लिखी और कहा कि ईवीएम सुरक्षित नहीं हैं।
इसके बाद इन इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के ख़िलाफ़ बोलने की कमान संभाली थी किरीट सोमैया और जीवीएल नरसिम्हा राव ने। सौमैया और नरसिम्हा राव दोनों ही बीजेपी के ज़िम्मेदार नेता हैं।
किरीट सोमैया तो बाक़ायदा ईवीएम में गड़बड़ी की कहानी अलग-अलग शहरों में जाकर सुनाया करते थे। किरीट सोमैया के साथ में एक आईटी विशेषज्ञ भी हुआ करता था, जो कम्प्यूटर-लैपटॉप पर दिखाता था ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी कैसे हो सकती है।
यह किताब 2010 में प्रकाशित हुई थी। इसकी भूमिका और प्रस्तावना लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी। इसमें एन. चंद्रबाबू नायडू का संदेश भी छपा। जैसा कि शीर्षक ही बता रहा है बीजेपी को ईवीएम पर बिल्कुल भरोसा नहीं था और पार्टी इन मशीनों को 'लोकतंत्र के लिए ख़तरे' के रूप में देख रही थी।
जीवीएल नरसिम्हा राव ने इस पुस्तक में उस मामले की भी चर्चा की है जिसमें हैदराबाद के तकनीकी विशेषज्ञ हरि प्रसाद ने मिशिगन यूनिवर्सिटी के दो शोधार्थियों के साथ मिलकर ईवीएम को हैक करने का दावा किया था।
नरसिम्हा राव ने मांग की थी कि दुनिया के तमाम विकसित देशों की ही तरह ईवीएम से मतदान बंद कराया जाए या इसके साथ अमेरिका की तरह Voter Verified Paper Audit Trail (VVPAT) प्रणाली की व्यवस्था की जाए। क़िताब में निर्वाचन आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं।
एक हैं प्रोफेसर सुब्रह्मण्यम स्वामी… बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खासमखास। (आजकल विरोध में ट्वीट करने के शग़ल में लगे हैं)। प्रो. स्वामी ने बाकायदा सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम के ख़िलाफ़ याचिका लगाई और इसके ज़रिए गड़बड़ी की संभावनाएँ विस्तार से बताईं। प्रो. स्वामी के दसियों वीडियो नेट पर उपलब्ध हैं, जिनमें वह ईवीएम के ख़िलाफ़ जमकर बोलते हुए दिखाई दे जाएँगे।
सुप्रीम कोर्ट ने तो सुब्रह्मण्यम स्वामी से सुझाव भी माँगा था कि ईवीएम में गड़बड़ी न हो इसके लिए क्या किया जा सकता है। प्रो. स्वामी अमेरिका और यूरोप के कई देशों के नाम गिनाते हैं, जहाँ आज भी बैलेट पेपर से मतदान होता है।
मज़े की बात यह है कि जब मई 2019 में 21 विपक्षी दलों ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे तब अमित शाह ने भी इसी तरह खिल्ली उड़ाई थी। तब उन्हें भी याद नहीं रहा कि उनकी पार्टी ही सबसे पहले ईवीएम के ख़िलाफ़ ताल ठोक कर मैदान में आई थी।
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