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रहीम और तुलसी का यह चित्र नरेंद्र गोइदानी के ब्लॉग से साभार

मिटाए से न मिटेगा रहीम और तुलसी का भारत 

हिंदी नीति काव्य में रहीम तुलसी और कबीर से बढ़ कर हैं। और जो तुलसी कबीर से बढ़ जाए वह सर्व श्रेष्ठ कैसे ना कहाए? लेकिन यदि आप यह जानें कि रहीम कवियों के विभाजन में "पुष्टि मार्गी वैष्णव" लिखे कहे जाते रहे हैं तो? अपना खून ना खौलाएं। इतिहास को समझने की कोशिश करें। सीखने का यत्न भी कर पाएं तो!

इन्हीं रहीम के पिता थे बैराम खां। मुगल शासन की स्थापना हुमायूं अकबर ने नहीं बैराम खान ने की थी। हेमू को पराजित करने के बाद उसकी हत्या बैराम ने की थी अबोध अकबर ने नहीं। हेमू नहीं हारता तो मुगल सत्ता स्थापित ना होती। तो क्या आप बैराम के बेटे रहीम को हिंदी कविता और वैष्णव परंपरा से रिजेक्ट करने का अभियान चलाएंगे। क्या यह आप संपन्न कर पाएंगे?

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मध्यकालीन राजनीति ने रहीम का खानदान मिटा दिया। सारे बच्चे बादशाह जहांगीर के संदेह में मारे गए। और रहीम को आगरा दिल्ली से राज्य बदर होना पड़ा। तब रहीम चित्रकूट आ कर रहे। तब रहीम ने यह दोहा कहा:

चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेस

जा पर विपदा पड़त है, सो आवत यहिं देस।।

रहीम अपने दुःख को श्रीराम के दुःख की तरह मानते हैं। अपने दुःख को श्रीराम के दुःख से जोड़ कर वे श्रीराम से दुःख का साझा करते हैं। क्या आप यह साझा करना रोक देंगे?

रहीम तुलसी के मित्र थे। मिलना जुलना उठना बैठना साथ था। उस प्रसंग को जानिए जिसमें काशी के किसी किसान की बेटी के विवाह में तुलसीदास जी ने रहीम से आर्थिक मदद दिलाई। एक रुक्का लिख कर उस किसान को दिया की रहीम से मिल लो। उस किसान ने रहीम को तुलसी का लिखा रुक्का दिया, जिस पर लिखा था:

सुर तिय नर तिय नाग तिय ये चाहत सब कोय!

तुलसी के मर्म को और इस सादा सी पंक्ति में छिपी कविता को रहीम ने बखूबी समझा और उस किसान को उम्मीद से कई गुना धन दिया। और उस रुक्के पर अपनी भावनाएं लिखीं:

गोद लिए हुलसी फिरें, तुलसी सो सुत होय।।

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अब प्रश्न यह उठता है कि यदि बादशाह अकबर और उसका एक प्रधानमंत्री अत्याचारी होते तो राम चरित के बेजोड़ गायक और श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसी उनके संपर्क में रहते? वे अत्याचारी रहीम से धन देने दिलाने को कल्पना भी करते! और रहीम ऐसे भक्ति प्रचारक विस्तारक तुलसी के कहे पर कुछ भी करते या पुलकित होकर वह पंक्ति लिखते।

यह सम्मिलित दोहा ही भारत का भविष्य है। यह उधार व्यवहार के लिए दो ज़रूरतमंद लोगों का पत्राचार नहीं है। यह दो पंक्तियों का साधारण मिलन नहीं बल्कि यह संस्कृतियों का संगम है। यही सम्मिलन और सम्मान भाव भारत का एक आधुनिक निर्माण होगा। जिसमें एक हिस्सा तुलसी का हो और एक रहीम का:

सुर तिय नर तिय नाग तिय ये चाहत सब कोय!

गोद लिए हुलसी फिरें, तुलसी सो सुत होय।।

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इस सम्मिलन को स्वाहा करना तुलसी और रहीम के स्वप्न को स्वाहा कहना है! यह प्रसंग तुलसी रहीम के जीवनी कारों ने दर्ज किया है। मैं तो मात्र स्मरण करा रहा हूं। याद दिलाना भी यदि गुनाह है तो यह गुनाह ही सही। ऐसे गुनाह करता रहा हूं करता रहूंगा।

(बोधिसत्व की फेसबुक वॉल से साभार)

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