चीन ने फिर भारत को भरोसा दिलाया है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा तक अपने सैनिकों को पूरी तरह पीछे हटा लेगा, वह वास्तविक नियंत्रण रेखा के पीछे के इलाकों में उकसाने वाले भारी सैन्य जमावड़े को भी हटा लेगा। लेकिन चीन के पिछले रवैये को देखते हुए यह विश्वास नहीं होता कि चीन अपने वादे के अनुरूप पूर्वी लद्दाख के घुसपैठ वाले इलाक़ों से अपने सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा तक वापस कर लेगा।
शुक्रवार को हुई बैठक में दोनों पक्ष इस बात पर भी सहमत बताए गए कि सीमांत इलाक़ों में शांति बहाली के लिये पूर्ण सैन्य वापसी के लिये दोनों सेनाओं के कमांडरों की बैठक फिर होगी, जिसमें अगले कदमों के बारे में फ़ैसले लिये जाएंगे।
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चीन ने इस तरह का वादा पिछली 10 जुलाई की बैठक के बाद भी किया था, लेकिन तनाव वाले चार में से तीन इलाकों पर सैन्य तनातनी का माहौल बना हुआ है।
सवाल यह उठता है कि क्या चीन वार्ता टेबल पर कुछ बोलता है और ज़मीन पर वह अपना रवैया बदल लेता है?
भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों के संयुक्त सचिव स्तर की शुक्रवार को हुई बैठक 17वीं थी, जबकि ताज़़ा विवाद के दौरान यह पाँचवीं बैठक थी।
वादाख़िलाफ़ी
चीन ने डोकलाम में सैन्य अतिक्रमण के दौरान भी ऐसा ही किया था। जून, 2017 के पहले डोकलाम में चीनी सेना मौजूद नहीं थी। इस इलाक़े से चीनी सेना ने जब भारतीय इलाक़े तक सड़क बनानी शुरू की और भारत ने उसे रुकवा दिया, उसके बाद चीनी सेना ने डोकलाम में अपना स्थायी निवास बना लिया।क्या इस बार भी चीन के उसी तरह के इरादे हैं। चीन का पिछला रवैया यह भरोसा नहीं दिलाता है कि वह पूर्वी लद्दाख के देपसांग औऱ पैंगोंग त्सो झील इलाक़े की फिंगर-4 चोटी से पीछे अपने सैनिकों को हटा लेगा।
देपसांग इलाक़े पर कब्जा कर चीन दौलतबेग ओल्डी रोड पर प्रभुत्व स्थापित कर सकता है और भारत को गिलगिट-बालटिस्तान और चीन पाक आर्थिक गलियारे पर नज़र रखने से रोक सकता है।
चीन के लिए शर्मिंदगी
यही सोचकर चीन ने पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में घुसपैठ की थी, इसलिये चीनी सेना घुसपैठ के इलाक़ों से पीछे लौटने लगती है तो यह चीन के लिये शर्मिंदगी की बात होगी।भारत के साथ सैन्य तनातनी का रिकार्ड चीन ने तोड़ दिया है। पिछली बार जून, 2017 में भूटान के डोकलाम इलाके में भारतीय सेना के साथ 73 दिनों तक सैन्य तनातनी के रेकार्ड को चीन ने पूर्वी लद्दाख में चीन ने पीछे छोड़ दिया है औऱ अब 80 दिन हो गए हैं जब चीनी सेना पूर्वी लद्दाख के इलाकों में आमने सामने की स्थिति में तैनात है।
तनातनी
पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार भारतीय इलाक़े में घुसने के बाद जब चीन के आला सैन्य कमांडरों और राजनयिकों के बीच अलग- अलग बातचीत हुई तो चीन ने वादा किया कि उसके सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा तक लौट जाएंगे। चीनी सेना ने 5-9 मई के बीच पूर्वी लद्दाख के चार इलाक़ों- गलवान घाटी, गोगरा-हॉट स्प्रिंग, देपसांग और पैंगोंग त्सो झील- में घुसपैठ की थी और तब से ही तनातनी बनी हुई है।ऐसा लगता है कि पिछले करीब पौने तीन महीनों के दौरान चीन ने सैन्य और राजनयिक स्तरों पर चार दौरों की बातचीत कर भारत को धोखे में रखने की कोशिश की है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव दूर करने के लिये प्रतिबद्ध है।
कथनी-करनी में अंतर
चीन की कथनी और करनी में भारी फर्क दिख रहा है। गत 5 जुलाई को दोनों देशों के सीमा मसले पर नियुक्त विशेष प्रतिनिधियों की बातचीत में भी चीन ने वादा किया था कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करेगा और पहले की यथास्थिति बहाल करेगा।चीन अपना असली रंग इस तरह दिखा रहा है कि बातचीत चलाकर मसले सुलझाने का भरोसा देना चाहता है, बातचीत की आड़ में भारत को धोखे में रखना चाहता है। भारत को झांसा दे कर वह अपनी समर नीति और सैन्य विस्तारवाद की नीति को लागू कर रहा है।
भारत के सामने दुविधा है कि ऐसे झांसेबाज चीन से कैसे निबटे। चीन की समर नीति इस तरह चलती है कि वह दो कदम आगे बढ़ कर एक कदम पीछे चला जाता है और कहता है कि उसने अपने कदम पीछे कर लिये।
दो कदम आगे, एक कदम पीछे
चीन ने इस रणनीति के तहत पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी, गोगरा हॉट स्प्रिंग, देपसांग और पैंगोंग त्सो झील इलाक़े में घुसपैठ की और कथित समझौते के तहत अपने पाँव केवल गलवान घाटी से पीछे हटा लिये। वह गोगरा- हॉट स्प्रिंग, पैंगोंग त्सो झील इलाक़े से पीछे हटने को तैयार नहीं है।चीन के इस टालमटोल के रवैये का भारत ने दृढ़ता से जवाब देने का राष्ट्रीय संकल्प जाहिर किया है और सीमांत इलाकों में चीनी सैन्य धमकियों का जवाब देने के लिये समान तरह की अपनी सैन्य तैनाती कर ली है।
क्या करेगा भारत?
सीमांत इलाकों में चीनी सेना के सामने डटे रहने का संकल्प भारत ने दिखाया है। सीमांत इलाकों में चीनी सैन्य बंदरघुड़की का जवाब देने के लिये भारतीय लड़ाकू विमान सुखोई-30, मिराज-2000 और मिग-29 उड़ान भर रहे हैं। भारत की थलसेना अपने सैनिकों को आधुनिकतम शस्त्र प्रणालियों से लैस कर वहां तैनात कर चुकी है।लेकिन भारत युद्ध नहीं चाहता और संकेत दे रहा है कि वहाँ बर्फीले मौसम के बावजूद कई महीनों तक अपने सैनिकों को तैनात रखेगा। इसके साथ भारत यह कह रहा है कि वह बातचीत से मसले का हल खोजना चाहता है।
शायद इसी वजह से चीन को लग रहा है कि भारत सैन्य कार्रवाई के लिये तैयार नहीं है और वह चीनी सैन्य ताक़त के आगे डरा हुआ है।
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