दूसरी कड़ी: हिन्दू मुसलिम- पार्ट 2: दोनों धर्मों की मान्यताओं में बहुत एकरूपता है!
इस बात में किसी को संदेह नहीं हो सकता कि इस वक़्त विश्व में जितने भी धर्म हैं उनमें सबसे पुराना धर्म सनातन (हिन्दू) धर्म है और इस बात से भी कोई इंकार नहीं कर सकता कि सबसे पहले सनातन धर्म ने ही संसार को सत्य-असत्य, मानवता-दानवता, पाप-पुण्य, और करुणा- क्रूरता जैसे शब्दों का फ़र्क़ बताया। सनातन धर्म ने ही सबसे पहले संसार को यह बताया कि अच्छे काम करने वाले स्वर्ग और बुरे काम करने वाले नर्क के भागी होंगे। इसी धर्म ने अप्सरा और यमदूत जैसे नामों से परिचित करवाया।
क्या यह बस एक संयोग है कि हज़ारों वर्ष बाद भारत से हज़ारों मील दूर अरब की धरती से भी यही सब बातें कही गईं, इसलाम ने सत्य-असत्य को सच और झूठ, मानवता-दानवता को इंसानियत और हैवानियत, पाप-पुण्य को गुनाह और सवाब, और करुणा- क्रूरता को रहम दिली और ज़ुल्म ही कहा? स्वर्ग को जन्नत और नर्क को जहन्नुम मुसलमान भी कहते हैं। जिस तरह हिन्दू स्वर्ग में रहने वाली कन्याओं को अप्सरा कहते हैं वैसे ही मुसलमान जन्नत में रहने वाली लड़कियों को हूर कहते हैं। हिन्दू धर्म में किसी के भी प्राण लेने के लिए यमदूत आते हैं तो मुसलमानों में जिस्म से रूह निकालने के लिए मलक उल मौत आते हैं।
मुसलमान जब हज पर जाते हैं तो पवित्र काबा के 7 चक्कर लगाते और सफ़ा तथा मर्वा नाम की दो पहाड़ियों के भी 7 चककर लगाते हैं। जबकि हिन्दू धर्म के मानने वाले कुछ मंदिरों में सात बार परिक्रमा करते हैं। दैनिक पंजाब केसरी में छपे एक आलेख में कहा गया है कि ‘ये तो सब जानते हैं कि हिंदू धर्म की प्राचीन परंपराओं के अनुसार मंदिर में भगवान की पूजा के बाद उनकी परिक्रमा करना अति आवश्यक होता है। कोई यह परिक्रमा 3 की गिनती में करता है तो कोई 7 की गिनती में।’
इसी तरह अपना जीवन साथी चुनने के बाद उसके संग सात फेरे लिए बिना विवाह सम्पन्न हो नहीं सकता। क्या आपको कभी किसी ने यह बात बताई कि ऋग्वेद में जुआ खेलने और शराब पीने से रोका गया है (ऋग्वेद 7*.*86*.*6 – अंतरात्मा की आवाज़ को सुनकर किया गया कर्म, ‘पाप’ की ओर नहीं ले जाता। परन्तु, इस आवाज़ को अनसुनी कर उसकी अवहेलना करना ही दुःख और निराशा लाता है, जो हमें नशे और जुए की ही तरह बरबाद कर देते हैं।)
इसलाम ने भी इन दोनों चीज़ों को प्रतिबंधित किया है जबकि अरब से शुरू होने वाले दो अन्य धर्मों में शराब पीने पर कोई प्रतिबंध नहीं है बल्कि यहूदी धर्म के ग्रंथों में तो शराब की तारीफ़ की गई है।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के सभी त्यौहार चन्द्रमा (चाँद) के कैलेंडर के अनुसार ही मनाये जाते हैं।
उल्लेखनीय बात यह है कि इसलाम ने कभी नहीं कहा कि हज़रत मोहम्मद के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति ईश्वर का प्रतिनिधि बन कर इस धरती पर नहीं आया बल्कि हर मुसलमान को इस बात पर विश्वास रखना अनिवार्य है कि अल्लाह (ईश्वर) ने इस संसार में एक लाख चौबीस हज़ार पैगंबर (संदेश वाहक, दूत या प्रतिनिधि) उतारे। इसी कारण कई मुसलिम उलेमा यह भी कहते हैं कि शायद राम चंद्र जी, कृष्ण जी और गौतम बुद्ध भी पैगंबर (ईश्वरीय दूत) रहे हों इसलिए उनका सम्मान किया जाना चाहिए।
यहाँ पर एक महत्वपूर्ण बात कहना है कि कई विद्वानों ने यह बात लिखी है कि वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में हज़रत मोहम्मद के आने की भविष्यवाणी भी की गई है। दैनिक जागरण की वेबसाइट पर ‘वेद, पुराण और उपनिषद में पैगम्बर मोहम्मद’ के शीर्षक से प्रकाशित एक लेख में कहा गया है, ‘वेदों के अनुसार उष्ट्रारोही का नाम ‘नराशंस’ होगा। ‘नराशंस’ का अरबी अनुवाद ‘मुहम्मद’ होता है। नराशंस: यो नरै: प्रशस्यते। (सायण भाष्य, ऋग्वेद संहिता, 5/5/2)। मूल मंत्र इस प्रकार है –‘‘नराशंस: सुषूदतीमं यज्ञामदाभ्यः। कविर्हि ऋग्वेद में भी कहा गया है कि ‘अहमिद्धि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि।।’
सामवेद में भी है: ‘आहमिधि पितुः परिमेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि।। (सामवेद प्र. 2 द. 6 मं.) अर्थात, अहमद (मोहम्मद) ने अपने रब से हिकमत से भरी जीवन व्यवस्था को हासिल किया। मैं सूरज की तरह रौशन हो रहा हूँ।’ जबकि इसमें तो मोहम्मद के दूसरे नाम “अहमद” को भी स्पष्ट किया गया है। “महाऋषि व्यास के अठारह पुराणों में से एक पुराण ‘भविष्य पुराण’ है। उसका एक श्लोक यह है: ‘‘एक दूसरे देश में एक आचार्य अपने मित्रों के साथ आयेंगे। उनका नाम महामद होगा। वे रेगिस्तान क्षेत्र में आयेंगे। (भविष्य पुराण अ0 323 सू0 5 से 8)”
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