देश में नफ़रतें फैलाई जा रही हैं और धर्म के नाम पर तनाव फैला कर राजनीतिक लाभ उठाया जा रहा है। ऐसे में, हम सब का कर्तव्य है कि हिन्दू मुसलिम तनाव पैदा करने की कोशिश को नाकाम करें और वह सच सामने पेश करें जिससे दोनों वर्गों के बीच की दूरियाँ कम हों।
मैं, हिन्दुओं और मुसलमानों को बताना चाहता हूँ कि हम सब एक ही ईश्वर के मानने वाले हैं और हमारे पूर्वज एक ही थे। मैं इस तरफ़ भी लोगों को ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ कि धर्म इंसानों के कल्याण के लिए आया था लेकिन अब धर्म को इंसानों की जान लेने या उनको प्रताड़ित करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। विशेष कर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच बहुत नफ़रत फैलाई जा रही है जबकि इन दोनों का रिश्ता एक ही महापुरुष से जा कर मिलता है।
आपने क्या कभी सोचा कि यह ‘मनुष्य’ शब्द आया कहाँ से? कहा जाता है कि मनुष्य शब्द ‘मनु’ और ‘शिष्य’ शब्द से मिल कर बना है तो फिर हमको सोचना होगा कि मनु कौन थे और उनके शिष्य कौन थे? इस शब्द की उत्पति कैसे हुई, उसको जानने के लिए हमको जल प्रलय का क़िस्सा पढ़ना पड़ेगा।
भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार हज़ारों वर्ष पहले इस संसार में भयानक समुद्री तूफ़ान आया था जिसके कारण पूरी धरती डूब रही थी, इस बात की पूरी सम्भावना थी कि धरती से सभी जीव-जंतु ख़त्म हो जायेंगे। ऐसी चिंताजनक परिस्थिति में हमारे पूर्वज मनु ने समस्त प्राणियों को बचाने के लिये एक बहुत विशाल नाव बनाई और उसमें अपने शिष्यों और हर प्रजाति के जीव-जंतुओं के एक एक जोड़े को लेकर नाव में बैठ गये, और जब काफ़ी दिनों बाद धरती से पानी उतरा तो मनु के शिष्यों ने फिर से दुनिया को आबाद किया। समस्त नागरिकों को ‘मनुष्य’ प्रजाति का नाम मिला क्योंकि यह दुनिया मनु के शिष्यों ने आबाद की थी।
ख़ास बात यह है कि जल प्रलय का यह क़िस्सा सिर्फ़ हिंदुओं के धर्म ग्रंथों में लिखा हो, ऐसा नहीं है। यही क़िस्सा मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदी समुदाय के धर्म ग्रंथों में भी लिखा हुआ है, बस फर्क़ केवल इतना है कि विशाल नाव बना कर समस्त प्रजातियों को बचाने वाले उस महान व्यक्ति को भारतीय भाषाओं में ऋषि ‘मनु’ कहा गया है जबकि अंग्रेज़ी में ‘नोहा’ और अरबी भाषा में उन्हें ‘नूह’ कहा गया है।
इतिहासकारों का मानना है कि ये तीनों नाम एक ही महापुरुष के हैं। इतिहासकारों का यह भी मानना है कि भारत के लोग उस महान पुरुष को प्राचीन युग में महान ‘नूह’ ही कहते थे। मगर समय के साथ यह नाम सिर्फ़ मनु हो गया।
फ़्रान्स के शोधकर्ता Abbe J.A. Dubois ने (जिनको कर्नाटक के लोग डड्डा स्वामी भी कहते हैं) अपनी किताब हिंदू मैनर्स कस्टम्स एंड सेरिमनीज़ में लिखा है- ‘एक मशहूर व्यक्ति जिनसे हिंदू बहुत श्रद्धा रखते हैं और जिनको वह महानोव के नाम से जानते हैं जो (जो एक विशाल नाव बना कर तूफ़ान की) तबाही से बच निकले थे उस (नाव) में सात ऋषि भी सवार थे। महानोव दो शब्दों की संधि से बना है, महा का अर्थ विशाल और नोवो का मतलब बिना किसी सन्देह के नूह ही है।’
मुसलिम धर्म गुरु मौलाना शम्स नवेद उस्मानी ने भी अपनी किताब 'अगर अब भी हम न जागे' में यह बात लिखी है कि हज़रत नूह और ऋषि मनु एक ही व्यक्ति के नाम थे।
वेब दुनिया में प्रकाशित एक लेख में अनिरुद्ध जोशी शतायु ने भी लिखा है, “राजा मनु को ही हजरत नूह माना जाता है। नूह ही यहूदी, ईसाई और इसलाम के पैगंबर हैं। इस पर शोध भी हुए हैं। जल प्रलय की ऐतिहासिक घटना संसार की सभी सभ्यताओं में पाई जाती है। बदलती भाषा और लम्बे कालखंड के चलते इस घटना में कोई खास रद्दोबदल नहीं हुआ है। मनु की यह कहानी यहूदी, ईसाई और इसलाम में ‘हजरत नूह की नौका’ नाम से वर्णित की जाती है।“
नाम और क़िस्से में इतना कम अंतर होना क्या इस बात की दलील के लिए काफ़ी नहीं है कि हम सबके पूर्वज एक ही थे?
ध्यान रहे कि भारत के इतिहास में जिसको ‘जल प्रलय’ कहा गया उसे मुसलमान ‘तूफ़ाने नूह’ कहते हैं और अंग्रज़ी में इसको ‘Deluge’ कहते हैं तो फिर सोचिए कि आज मनु के एक शिष्य के वंशज मनु के दूसरे शिष्य के वंशज को प्रताड़ित करने को अपना धर्म क्यों समझ रहे हैं? क्यों हम एक दूसरे से नफ़रत कर रहे हैं? क्या हम सब वही नहीं हैं जिनको मनु का वंशज होने की वजह से मनुष्य कहा गया?
(जारी...)
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