ये सनसनीखेज़ सुर्खियां 5 अक्टूबर की सुबह से मुख्य मीडिया और वेबसाइट पर चल रही हैं। उत्तर प्रदेश की पुलिस के हवाले से ये सुर्खियां हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से एक दिन पहले दिए गये बयान को भी इन सुर्खियों से जोड़ा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था, 'जिन्हें विकास अच्छा नहीं लग रहा है, वह जातीय व सांप्रदायिक दंगा भड़काना चाहते हैं।'
जिन्हें विकास अच्छा नहीं लग रहा है, वह जातीय और सांप्रदायिक दंगा भड़काना चाहते हैं।
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) October 4, 2020
इन दंगों की आड़ में उन्हें राजनीतिक रोटियां सेंकने का अवसर मिलेगा,इसलिए वे नित नए षड्यंत्र करते हैं,इन षड्यंत्रों के प्रति पूरी तरह आगाह होते हुए हमें विकास की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाना है। pic.twitter.com/vbo7yUgH7H
सीएम का संकेत, थ्योरी हाजिर
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘राजनीतिक रोटियाँ सेंकने’ और ‘षडयंत्र’ जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया था। ऐसा लगा मानो वह विपक्ष के विरुद्ध राजनीतिक बयान दे रहे हों। मगर, कुछ घंटों में ही यह साफ हो गया कि सीएम योगी का यह बयान महज राजनीतिक नहीं था, बल्कि विपक्ष की घेराबंदी की पृष्ठभूमि थी।
बगैर साजिश को समझे, पकड़े और साजिश से परस्पर गुंथे तारों को जोड़े पुलिस ने ‘खुलासा’ कैसे कर दिया! क्या मक़सद है इसका? क्या ऐसा करके पुलिस और योगी सरकार ने दंगा कराने की साजिश करने वालों को सतर्क नहीं कर दिया है? किसी केस के अनुसंधान की प्रवृत्ति को नुकसान पहुंचाने वाला रवैया है यह।
शाहीन बाग वाले पैटर्न पर?
सुर्खियों में यह बात भी है कि शाहीनबाग की तरह हाथरस केस में भी विदेशी फंडिंग, पीएफआई जैसे ‘पाकिस्तान परस्त संगठनों की सक्रियता’ दिख रही है। सवाल है कि सत्ता और कथित षडयंत्रकारियों में कौन हैं शाहीनबाग वाले पैटर्न पर? शाहीन बाग के मामले में भी पुलिस के काम करने का यही तरीका था।
वही पैटर्न यूपी पुलिस और योगी सरकार भी हाथरस केस में दिखा रही है। पुलिस के आला अधिकारी, बीजेपी के नेता, बीजेपी की आईटी सेल खुलेआम कह रहे हैं कि हाथरस में कोई बलात्कार नहीं हुआ। इसी तरह योगी सरकार दोनों पक्ष का नार्को टेस्ट कराने की घोषणा कर पीड़ित पक्ष पर ही दबाव बना रही है।
हाथरस में भी, दिल्ली में भी
हाथरस से बीजेपी के पूर्व विधायक राजवीर सिंह पहलवान के घर जातीय पंचायत हुई है। इसमें राजवीर सिंह ने कहा है कि बलात्कार हुआ ही नहीं। लेकिन, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि राजवीर सिंह यह जानकारी देते हैं कि इस मामले में झूठ का पर्दाफाश करने के लिए सबका नार्को टेस्ट कराने और सीबीआई की जाँच की मांग उन्होंने ही की थी जिसे योगी सरकार ने मान लिया।
पीड़ित पक्ष से मुलाक़ात करने, उनसे सहानुभूति जताने, उनके लिए अधिक मुआवजे की मांग करने वालों के लिए मानदंड अलग है। उनके लिए धारा 144 है, महामारी एक्ट है, पुलिस की लाठियाँ हैं।
और, अब वह कथित साजिश भी है जो ‘सीएम योगी और पीएम मोदी को बदनाम करने के लिए’ चल रही है। इस साजिश में शामिल लोग ‘देशविरोधी’ भी होंगे क्योंकि इसमें ‘पीएफआई जैसे संगठन हैं जो पाकिस्तान परस्त’ हैं।
मीडिया बंटा हुआ है
मीडिया पहले ही बंट चुका है। जो हाथरस केस में पुलिस और योगी सरकार की साजिश थ्योरी के साथ हैं या फिर उसे आगे बढ़ाने वाले हैं वह ‘देशभक्त’ कहलाएँगे। जो मीडिया पीड़ित पक्ष के साथ होगा उसे साजिशकर्ताओं का सहयोगी कहा जाएगा। कहने की ज़रूरत नहीं कि इसी पैमाने और इसी तर्ज पर विपक्षी दल दंगाई और देशविरोधी करार दिए जाएंगे।
खुलासे का पैटर्न बदला
पुलिस और उसके ‘खुलासे’ का भी अजीबोगरीब पैटर्न है। पहले जब पुलिस कोई खुलासा करती थी तो अभियुक्त सामने होता था, सबूत सामने होते थे और पूरी स्टोरी एवं उससे जुड़े एक-एक तार सामने होते थे। अब ऐसा नहीं है। अब हुक्मरान पहले बयान देते हैं। उस बयान के हिसाब से केस दर्ज होता है। पुलिस का ‘खुलासा’ होता है। उस खुलासे में न तथ्य होते हैं, न सबूत और न ही मुकम्मल जाँच के बाद परस्पर गुंथे हुए तार। यह टास्क तो वे आगे पूरा करेंगे। पहले थ्योरी ले लीजिए।
क्या दब जाएंगे सवाल?
जाहिर है इन सुर्खियों में खो जाएंगे वे तमाम सवाल जो हाथरस रेप-मर्डर केस में वास्तव में जिन्दा रहने चाहिए थे। यह आम बलात्कार का केस नहीं है, जिसकी किसी अन्य केस से तुलना हो। यह दबंग पड़ोसी जिसका जातीय अभिमान बयान बनकर सामने है कि वे दलितों से दूरी बनाकर रहते हैं बलात्कार कैसे कर सकते हैं! मानो छुआछूत बलात्कार की वजह नहीं सुरक्षा की गारंटी हो!
लगातार छेड़छाड़ और फिर एक दिन सामूहिक बलात्कार। बिना कपड़ों में मुआहाल स्थिति देखकर भी बलात्कार का केस दर्ज नहीं होना, छेड़छाड़ का केस भी देर से दर्ज होना, बाद में गैंगरेप का केस, इलाज नहीं मिल पाने से लेकर मौत तक की कहानी और फिर गैंगरेप नहीं होने की बात से लेकर लाश को जबरदस्ती फूंक डालने तक का किस्सा भयानक है।
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